Meenakshi Bansal

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Meenakshi Bansal

Abstract Drama Tragedy

जज़्बात Express ..

जज़्बात Express ..

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250


हर किसी की जिंदगी में कुछ ऐसे दर्दनाक दुख देने वाले लम्हे होते हैं जिनसे वह चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकता। वे लम्हे ताउम्र एक साए की तरह उस इंसान का पीछा करते रहते हैं। कहते हैं इंसान तो गलतियों का पुतला है। और गलतियां भी अक्सर इंसान से ही होती है।

तब क्या, जब बिना किसी गलती के किसी इंसान को ऐसी सजा दी जाए जिसका वह हकदार नहीं है, जिस से उसका कोई लेना-देना नहीं है। ऊपर से उस इंसान को यह एहसास करा दिया जाता है कि जो घटना घटी उन सबके लिए एकमात्र जिम्मेदार वही है। तो मैं समझ सकती हूं कि उस इंसान पर क्या गुजरती होगी। और तो और अगर वह बंदा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना भी चाहे तो हर कदम पर उसको फिर वही एहसास दिला दिया जाए कि अतीत में उसके द्वारा बहुत बड़ी गलती हो चुकी है, तो उस इंसान की स्थिति, उस इंसान का मन किस किंकर्तव्यविमूढ़ता में उलझ जाएगा इसका शायद ही कोई अनुमान लगा सकता है। ऐसी ही दुखभरी घटना का मुख्य पात्र हम में से कोई ना कोई अपने जीवन काल में जरूर बनता है। बात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं है अभी कुछ महीने पहले की ही है। मुझे कुछ समय पहले किसी विवाह समारोह में सम्मिलित होने का मौका मिला।

हम वधू पक्ष से थे। वधू पक्ष वाले हमारे परिवार के सदस्यों जैसे ही थे। रमेश अंकल की तीन बेटियों में से सबसे छोटी बेटी की शादी थी। सभी बड़ी उमंग में थे। सभी बहुत खुश थे। सभी काम सुचारू रूप से हो रहे थे। रमेश अंकल का स्वभाव थोड़ा गुस्सैल है। उन्हें जरा जरा सी बात पर गुस्सा आ ही जाता है। वह सामने वाले की छोटी से छोटी चूक को बर्दाश्त नहीं कर पाते। अंकल को लगता है सब काम उनके मन मुताबिक हो।अगर कोई बंदा अपनी मर्जी से कुछ करता दिखे तो यकीनन उसे रमेश अंकल के कोप का भाजन बनना ही पड़ेगा। शादी की सभी रस्में बहुत ही अच्छी तरह से संपन्न हो गई। और जिस घड़ी का इंतजार था वह करीब आ गई यानी कि अंकल की सबसे छोटी बेटी की शादी का दिन। क्योंकि शादी करने के लिए अंकल को दूसरे शहर जाना था इसलिए अंकल ने अपने परिवार वालों को सख्त हिदायत दे रखी थी कि सारे काम फटाफट निपटा कर हमें दूसरे शहर को निकलना है।

सही समय पर हमें अपने गंतव्य तक पहुंचना है। कुल मिलाकर शादी का समारोह भी बहुत अच्छे से संपन्न हो गया। अंकल के दिमाग में बहुत सारी परेशानियां थी, जिनके कारण उनका स्वभाव और भी अधिक चिड़चिड़ा हो गया था। बेटी की विदाई के बाद हमें अंकल का एक नया ही रूप देखने को मिला। वहां शादी में आए किसी विशेष अतिथि के साथ उनका झगड़ा हो गया और देखते ही देखते उस झगड़े ने आग का रूप धारण कर लिया। हालांकि बात कुछ भी नहीं थी अगर कोशिश की जाती तो बात तभी सुलझ सकती थी। लेकिन अंकल के दिल में कुछ परेशानियां, कुछ गुस्सा। जिसके कारण वहां का माहौल गमगीन हो गया। अंकल को खुद समझ नहीं आया कि उन्होंने उस अतिथि को क्या कुछ कह दिया और क्यों कह दिया। अंकल के इस रूप कि किसी ने कल्पना भी नहीं की थी और वो विशेष अतिथि, उसके मन में तो इतना गहरा आघात लगा था कि वह वहां से अपने परिवार सहित चला गया। कुल मिलाकर दोनों परिवारों के बीच बहुत कुछ बदल सा गया, बहुत कुछ टूट सा गया।

कुछ महीनों तक अंकल के परिवार की तरफ से कोई कोशिश नहीं की गई थी उस विशेष अतिथि को मनाया जाए ऐसे में उस विशेष अतिथि के दिल में यह बात घर कर गई कि मैंने ऐसा किया क्या है जो अंकल  ने इतनी बड़ी सजा मुझे दी। हालांकि गलती किसी की ना हो कर भी दोनों तरफ से थी। धीरे-धीरे उन दोनों परिवारों के बीच में एक दरार आ गई तो समय के साथ  वो दरार घटने की बजाय बढ़ती चली गई। कुछ महीने यूं ही गुजर गए। दोनों परिवारों के बीच आपस में मनमुटाव इतना था कि उनकी बोलचाल भी बिल्कुल बंद हो गई थी। कसक दोनों तरफ से थी। पहल कोई नहीं करना चाहता था। लेकिन उस विशेष अतिथि ने पहल की। ताकि दोनो परिवारों के बीच संबंध पहले जैसे हो जाएं। इसके बदले में अंकल के परिवार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया। दोनों परिवार अभी भी असमंजस की स्थिति में थे। तब पता नहीं अचानक एक दिन अंकल के दिल में यह बात आई कि मैं क्यों ना चल कर इस बात को आगे बढ़ने से रोका जाय। क्यों ना उनसे मिला जाए। ऐसा विचार कर अंकल ने अतिथि से बात की। उनके बात करने के बाद दोनों परिवारों को लगा कि अब संबंध सुधर गए हैं।

लेकिन कहीं ना कहीं आज भी उन दोनों परिवारों के बीच कसक है। अभी भी दोनों एक दूसरे को कसूरवार मानते हैं। जिस प्रकार कांच के टूटने पर वह पहले जैसा नहीं हो पाता, धागा एक बार टूट जाए तो बिना गांठ के जुड नहीं पाता, ठीक उसी प्रकार उनके रिश्तो में भी पहले जैसे मधुरता नहीं रही। और कदम दर कदम उस अतिथि को यह एहसास दिला ही दिया जाता है कि इन सब का कसूरवार वो अतिथि ही था। अतिथि के दिल पर बहुत गहरा बोझ है। वह भगवान से यही प्रार्थना करता है कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए। और वही खुशियां, वही उमंगे दोनों परिवारों के बीच हो जाए जो पहले थी। आज उस घटना को 6 महीने बीत चुके हैं। लेकिन रिश्तो में वह मधुरता अभी भी देखने को नहीं मिल रही है। और शायद कल को अगर दोनों परिवारों के बीच पहले की तरह रिश्ते सुधर जाएं, लेकिन उन रिश्तों में वो मिठास नहीं रहेगी। और इस चीज का बोझ, इस चीज का एहसास कि जो हुआ सिर्फ अतिथि के कारण हुआ ,यह एहसास उस अतिथि के मन में ताउम्र रहेगा और ना चाहते हुए भी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा।


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