गुमशुदा.....
गुमशुदा.....
जेठ की तपती दुपहरी थी। अनु बाजार गई हुई थी, रात के खाने का जुगाड करने। अनु पास के ही निर्माणाधीन इमारत में मजदूरी करती थी। उसका पति शंकर भी उसके साथ उसका काम में हाथ बंटाता था। उनकी एक छोटी सी लड़की थी, मीनू। मीनू 9_10 साल की एक छोटी सी प्यारी सी गुड़िया थी, जिसके कपड़ों के छेदों से उसकी गरीबी झांकती थी। मुंह पर बाल बिखरे रहते थे। पढ़ने लिखने की उम्र में उस बेचारी को दूसरों के घर झूठे बर्तन साफ करने पड़ते थे। उस बेचारी को तो शायद यह भी नहीं पता कि स्कूल किस चिड़िया का नाम है। अनु की झोपड़ी भी उसी निर्माणाधीन इमारत के पास ही थी। आमतौर पर मीनू 4_5 बजे अपना काम निपटा कर घर आ जाती थी। लेकिन उस दिन 7:00 बज गए लेकिन मीनू का कोई अता पता ना था। मीनू के मां-बाप के मन में एक अनजाना भय आ जा रहा था। उसके साथ किसी अनहोनी के ख्याल मात्र से ही उनके शरीर में एक बिजली सी कौंध जाती थी। मीनू के मां बाप ने उसे आसपास हर घर में, हर गली में, हर नुक्कड़ पर ढूंढा। परंतु समस्या जस की तस थी। मीनू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था जिन जिन घरों में भी मीनू काम करने जाती थी वहां से भी यही पता लगा कि मीनू तो रोज की भांति 4:00 बजे अपना काम निपटा कर घर के लिए रवाना हो चुकी है। रात के 9:00 बज रहे थे अब मीनू के पिता का सब्र का बांध टूट रहा था। मीनू के पिता ने थाने जाकर मीनू की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी। पुलिस वालों ने भी आश्वासन देकर रिपोर्ट लिख कर उन्हें घर जाने को कहा। वो कहते हैं ना बेटी के मां-बाप को कहां नींद आने वाली थी। यही काम मीनू के मां-बाप के साथ भी था। उन्होंने पूरी रात आंखों में गुजार दी, परंतु कहीं से मीनू की कोई खबर नहीं आई। इसी प्रकार 2 दिन निकल गए। शाम का वक्त था। दो पुलिस वाले मीनू के मां बाप को ढूंढते हुए उनके घर आ पहुंचे। पुलिस को देख कर उन्हें कुछ खबर मिलने की उम्मीद हुई। पर ये क्या, उन्होंने ऐसी खबर सुनाई जिसको सुनकर उनका संसार ही उजड़ गया। उन्होंने कहा कि उन्हें गंदे नाले के पास मीनू की अधजली लाश मिली है। बस एक बार वहां चलकर शिनाख्त कर ले। मीनू के मां बाप अपने कलेजे पर पत्थर रखकर गए, तो वहां जाते ही उस लाश को अपनी छाती से लगा कर अनु विलाप करने लगी। पुलिस वालों ने बताया कि इसके साथ जलने से पहले गलत काम किया गया है। उस मां बाप पर क्या गुजरी होगी जिसकी फूल सी बच्ची को खिलने से पहले ही किसी ने मसल कर रख दिया हो। अनु रोते रोते बेहोश हो गई। उसने हत्यारे पर केस करने का फैसला लिया। वो केस अभी तक चल रहा है और उसके जैसे ना जाने कितने केस अधर में लटके हुए हैं, जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती। क्यों, मैं पूछती हूं आखिर क्यों और कब तक ऐसे ही मासूम लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया जाएगा? क्या इसका कभी अंत नहीं होगा? क्या हर * गुमशुदा* लड़की का यही अंजाम होगा? क्या कभी लड़कियों को खुलकर सांस लेने का मौका नहीं मिलेगा? हमें इस बारे में सोचना होगा इसका कोई ना कोई समाधान निकालना पड़ेगा नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ियां बेटी को, बहू को तरसेंगी।