वहम या सच....
वहम या सच....
कल रात मैं अपने भाई के साथ संगरूर की मुख्य सड़क से जा रहा था। मौसम बहुत खुशगवार था। गाड़ी भी पूरी गति से आगे बढ़ रही थी। गाड़ी में बज रहा संगीत भी मानो गाड़ी की गति के साथ कदमताल कर रहा प्रतीत हो रहा था। आसमान में बिजली पूरी तेज़ी से गड़गड़ाहट कर रही थी मानो अभी टूट पड़ेगी। तभी बहुत तेज़ आंधी के साथ तेज़ बारिश होने लगी। हमारी गाड़ी अचानक रुक गई जिसका कारण हमें अभी तक पता नहीं चल पाया है। तभी पता नहीं कहीं से एक बहुत ही सुंदर लड़की हमारे पास आ कर लिफ्ट के लिए मदद मांगने लगी। वो इतनी खूबसूरत थी ,ऊपर से सुर्ख लब, घुटने तक लंबे बाल जो किसी को भी मदहोश करने के लिए काफी था। हम चाहकर भी उसे ऐसे मौसम में परेशान होने के लिए नहीं छोड़ सकते थे। कुछ सोचकर हमने उसे बैठा लिया। अजीब बात है ,उसके बैठते ही हमारी गाड़ी ठीक हो गई। हमें ये अच्छे संकेत लगे, हमने खुशी खुशी उसे बैठा लिया। कुछ दूर जाने पर हमने उसके घर का पता पूछा। वो रोने लगी। हमारे कारण पूछने पर उसने बताया कि उसका कोई घर नहीं है, वो पास के ही जंगल में संगरूर महल में अकेली रहती है।। उसने हमसे वहां चलने का आग्रह किया, हम। मना नहीं कर सके और उसके साथ चल पड़े। वहां पहुंचने पर वहां का नजारा देखकर हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। वो एक भुतिया खंडहर था, जिसके हर कोने में मकड़ी के जाले लगे हुए थे। भीतर से अजीबोगरीब आवाज़ें और भी डरावना मंजर पेश कर रहीं थीं। हमारा दिल बैठा जा रहा था। हमने कुछ पूछने के लिए जैसे ही उस लड़की की तरफ देखा तो वो भी कुछ डरावनी शकल में बदलती प्रतीत हो रही थी। हमने आव देखा ना ताव, हम गाड़ी में बैठ कर नौ दो ग्यारह हो गए। हमारे भीतर इतनी हिम्मत भी नहीं बची थी की हम पीछे मुड़ कर देख सकें। आज तक हमारी समझ में नहीं आया कि वो वहम था या सच।