"क्या खोया क्या पाया"
"क्या खोया क्या पाया"
"कोरोना " एक ऐसा शब्द, जिसने दुनिया में ऐसा बवंडर खड़ा कर दिया जिससे शायद ही कोई अछूता हो। इसने सबको उनकी जड़ों तक हिला कर रख दिया है। सबसे ज्यादा इसने हमारे देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को प्रभावित किया है। डेढ़ साल से बेचारे बच्चे अपने घरों में बंद होने को मजबूर हो गए हैं। पढ़ाई के साथ साथ उनके बचपन पर भी गहरा असर पड़ा है। बच्चों को स्कूल में जो ज्ञान मिलता है, उस ज्ञान से बच्चे महरूम हो रहे हैं। अध्यापकों की संगति व अनुशासन को बच्चे तरस रहे हैं। बच्चों का जीवन अनुशासनहीन हो गया है। ना उनके सोने का, ना जागने का, ना खाने पीने का, ना खेलने का कोई भी समय अब निश्चित नहीं है। अब बच्चे अपने मन का करते हैं। बच्चों के साथ साथ अध्यापकों की जीवन शैली भी अस्तव्यस्त सी हो गई है। परंतु अपनी चिंता ना करते हुए अध्यापकगण दिन रात अपने विद्यार्थियों की चिंता करते हैं। उन्हें हर पल ये चिंता रहती है कि कहीं उनके विद्यार्थी पढ़ाई में पीछे ना रह जाएं। इसलिए वे हर संभव प्रयास करते हैं की बच्चों की सभी शंकाएं दूर कर सकें, और सच में करते भी हैं। कोरोना में बच्चों का बचपन भी पिछड़ता प्रतीत हो रहा है। ईश्वर करे संसार को इस महामारी से निबटने की शक्ति मिले, ताकत मिले। हम सभी को ,चाहे हम विद्यार्थी हों, अविभावक हों, अध्यापक गण हों या कोई भी, हम सबको हाथ से हाथ मिलाना होगा और अपने देश को, अपनी दुनिया को इस महामारी संकट से उबारना होगा। सबका सहयोग अतुलनीय होगा।
