झूठ का जंगल
झूठ का जंगल


मेरा एक मित्र एक विकृत मिथ्याभाषी है, यानि पैथोलॉजिकल लायर, अगर और इस चीज़ को सरल तरीके से लिखूं तो वो असत्यभाषण भी उसी सरल तरीके से करता है जितने सरल तरीके से वो सत्यभाषण करता है। इसलिए ऐसा व्यक्ति कब मिथ्यावादन कर रहा है और कब सच बोल रहा है, उन्हें पृथक या अलग कर पाना बहुत मुश्क़िल हो जाता है।
बचपन में उसकी इस आदत को बाल-सुलभ चंचलता समझ नज़रअंदाज़ किया जाता रहा मगर जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गयी ये बाल-सुलभता कब एक आदत में परिवर्तित हो गई पता ही नहीं चला। उसके पिताजी ने उस किशोर-वय व्यक्ति को पकड़ा और कहा,"आज से जब भी तू कोई बात कहेगा तो पहले मैं उसकी जाँच-पड़ताल करूँगा और अगर वो बात झूठ निकली तो सामने बिन जुते खेत में तुझे फावड़ा लेकर एक क्यारी बनानी होगी और पौधा लगाना होगा और हर रोज़ उसे पानी भी देना होगा। जितना झूठ बोलोगे उतनी ही मेहनत बढ़ती जायेगी!" शुरू में तो आदतवश उसने झूठ बोलना ज़ारी रखा और जब तस्दीक करने पे वो झूठ पकड़ा जाता तो पिता जी द्वारा पूर्वनिर्धारित सज़ा का सामना करना पड़ता। धीरे-धीरे समय बीतता गया तो सज़ा से बचने के लिए उसने झूठ बोलना काम करना पड़ा और पौध-रोपण भी धीमे-धीमे कम होता गया मगर रोपे गए हर पौधे का उसने ध्यान रखना नहीं छोड़ा!
समय बीतता गया और मुझे ग्रेजुएशन के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा, मगर किस्मत को और कुछ मंज़ूर था मेरा दाख़िला अमरीका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए हो गया। मैं जाने से पहले उसके पास गया तो वो रोपित पौधे अब वृक्षों में परिवर्तित हो चुके थे। उससे मिलकर और मन-भर बात करके मैं नज़दीकी हवाई-अड्डे पर पहुँच निर्धारित स्थान के लिए उड़ान भर गया। अमरीका में स्नातकोत्तर शिक्षा के पश्चात मैंने वहीँ नौकरी भी ढूँढ़ ली और धीरे-धीरे वहीँ रच-बस गया। एक दिन मेरे पास एक कार्ड आया जिसमें मेरे उसी मित्र के विवाह का निमंत्रण था क्यूंकि कंपनी में कार्यभार अत्यधिक था, मैं उसके विवाह में नहीं जा पाया अपितु एक तोहफ़ा खरीद उसे भिजवा दिया!
उस निमंत्रण-पत्र के प्राप्ति के ५ साल बाद मेरा स्वदेश आगमन हुआ और उतरते ही मैं गोली की रफ़्तार से मेरे मित्र के घर लपका। उसके आँगन में जैसे ही पैर रखा तो देखा उन रोपित वृक्षों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी इतनी कि वो खेत का भू-भाग अब एक लघु-वन में तब्दील हो चुका था। मैंने आश्चर्य-चकित होकर उससे पूछा, "यार, जहाँ तक मुझे ध्यान है, तेरे पिता जी ने तेरे उस झूठ बोलने की बीमारी का इलाज़ काफ़ी ढंग से किया था और अब इतने तादाद में ये वृक्ष कहीं तूने ध्यान देना तो बंद नहीं किया कि वृक्षों के फल गिरने से इनका इतना उद्विकास हो गया?" मित्र ने प्रत्युत्तर दिया, "नहीं यार इनका ध्यान मैंने बख़ूबी रखा है दरअसल तेरी भाभी की वजह से ये बगीचा इस जंगल में तबदील हुआ है!" मैंने पुनः प्रश्न किया, "वो कैसे?" उसने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया, "जब भी मैं शाम को पहुँचता हूँ तो उसके दो ही काम होते हैं या तो कोई नई ड्रैस दिखाएगी और पूछेगी कि वो कैसी लग रही है या फिर पूछेगी दफ़्तर में आज का दिन कैसा बीता? दोनों सूरते-हाल में कई बार झूठ बोलना पड़ता था और हर झूठ पर पित्राज्ञा अनुसार एक पेड़ रोपना पड़ता था!" जैसे ही उसने ये कहा कि मुझे जो हँसी आई, वो कुछ क्षण पश्चात पेट में दर्द की वजह से ही रुकी।
थोड़े दिनों पश्चात मैं अमरीका वापस आ गया और आने के ४-५ महीने बाद पता चला कि मेरे मित्र का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में शामिल किया गया है, सबसे बड़े मानव-निर्मित वन निर्माण के लिए और मैं मुस्कुरा रहा था कि इस वन के विकास के पीछे का असल कारण क्या है?