लाइसेंस
लाइसेंस
कथा-१ "आप इस उम्र में क्यों लाइसेंस लेना चाहते हैं, आपको किस से डर है?" हथियारों का लाइसेंस जारी करनेवाले बाबू ने जब उस वृद्ध दंपति से पूछा तो उन्होनें प्रत्युत्तर दिया, "दरअसल बात ये है कि एक तो हम वयोवृद्ध लोग हैं और आजकल वृद्धों के साथ क्या घट रहा है आपको पता ही है और हम दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं और आपको पता है कि न चाहते हुए भी अगर किसी मरीज़ को कुछ हो जाए तो सब फिर पिल पड़ते हैं हम डॉक्टरों पर!" बाबू ने उनकी बात सुनकर हामी में सिर हिलाया और उनके फॉर्म को देखने लगा कि अचानक फिर से उसे कुछ दिखा तो पुनः मन की उत्कंठा शांत करने हेतू बाबू ने उस दंपति से पूछ लिया, "ये फॉर्म तो आपके बेटे का है न इसके लिए बंदूक का लाइसेंस क्यों लेना चाहते हैं?" दंपति के पुरुष भाग ने प्रत्युत्तर दिया,"दरअसल, मेरा बेटा भी डॉक्टर है जो अब तक अमरीका में प्रैक्टिस करता था मगर अब वो अपनी प्रैक्टिस भारत में करना चाहता है तो आप समझ ही लीजिये... !" बाबू ने मुस्कुराते हुए फॉर्म पे मोहर लगा दी और दंपति अब सुकून से घर को निकल पड़े!
कथा-२ "सर! आप किस क्षेत्र में काम करते हैं या आपका पेशा क्या है?" ये उन्हीं बाबू का प्रश्न था जो हथियारों का लाइसेंस जारी करते हैं और इस बार उन्होंने ये प्रश्न एक तीस-पैंतीस साल के मध्य उम्रवाले व्यक्ति से किया था! उस व्यक्ति ने प्रत्युत्तर दिया, "मैं पेशे से एक स्कूल मास्टर हूँ!" विस्मयपूर्वक बाबू साहब ने पूछा, "आप न तो व्यापारी वर्ग से हैं, न ही पुलिस से संबद्ध हैं और न ही आप फ़ौज से रिटायर्ड कोई अफ़सर हैं, फिर ये बंदूक के लाइसेंस की क्या ज़रूरत आन पड़ी!" ज़ोर देकर जब ये सवाल बाबू ने पूछा तो थोड़ा सकुचाते हुए मास्टर जी ने बोला, "दरअसल मैं अभी कुछ दिनों पहले ही बाप बना हूँ...." बीच में ही उसकी बात काटते हुए बाबू ने बधाई दी और मिठाई खिलाने को कहा, झेंपते हुए मास्टर जी ने हाँ कर दी और अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "तो अभी हालिया दिनों में जब पिता बना तो बहुत ख़ुश था और हुई भी मेरे घर लक्ष्मी-स्वरूपा बेटी थी! मगर जब अखबार में छः-छः महीने की बच्चियों के साथ होते पैशाचिक कर्म की ख़बर पढ़ता हूँ तो डर लगता है इसलिए बंदूक के लाइसेंस के लिए ये अभ्यर्थना दी है!" बाबू सुनकर सकते में आ गए और एक फॉर्म अपने लिए भी निकालने लगे क्यूंकि उन्हें भी याद आया कि वो भी एक लड़की के पिता हैं! मास्टर जी के फॉर्म पे मोहर लगा दी गई!
कथा-३ "तुम! तुम्हें क्या ज़रूरत है बंदूक के लाइसेंस की?" बाबू ने एक मैले-कुचैले कपड़े पहने व्यक्ति से कहा और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "और तुम तो यहाँ ऑफिस के पास ही जो चौराहा है वहाँ बैठकर भीख माँगते हो, तुम्हें किस बात का खतरा?" भिखारी ने जवाब दिया, "साहब! आप लाइसेंस की फीस की चिंता मत करो, मैं इतना कमा लेता हूँ कि उसे भर दूँगा!" झल्लाते हुए बाबू ने कहा, "मैं पूछ क्या रहा हूँ और तुम कह क्या रहे हो? अरे भाई! क्यों चाहिए तुम्हें बंदूक?" थोड़ा झिझकते हुए भिखारी ने जवाब दिया,"साहब! आपको पता है न हमारे यहाँ चुनावों की घोषणा हो चुकी है..." बीच में उसकी बात काटते हुए बाबू ने कहा, "हाँ, तो?" प्रत्युत्तर देते हुए भिखारी ने कहा, "तो आप जानते हैं कई नेताओं ने प्रचार के लिए यहाँ घूमना चालू किया है, तो मुझे डर है मेरी भीख को वो चंदे के बक्से में डलवाकर मुझे लूटने का प्रयास करेंगे और स्वरक्षा के लिए मुझे हथियार चाहिए!" भिखारी का अकाट्य बाबू साहब का मुंह खुला का खुला रह गया! इन सब घटनाओं के बाद सुना है कि बाबू साहब, उन मंत्री के घर के बाहर मोर्चा डालकर बैठे हैं जिन्होंने उसका तबादला यहाँ किया था, कि उसका तबादला किसी और विभाग में किया जाए, नहीं तो वो ख़ुद की लाइसेंसी बंदूक से आत्महत्या कर लेगा!