जीव-हत्या
जीव-हत्या
मेरे एक जानकार पान की दुकान चलाते हैं और साथ ही में चाय की टपरी भी उन्होंने खोल रखी है! मकर संक्रांति अभी बस हाल ही में गई थी और मैं वहाँ टपरी पे चाय पी रहा था कि तभी मैंने उनसे पूछा:
"क्या भाईसाहब कैसी रही संक्रांति? खूब पतंग उड़ाई होगी आपने?"
"नहीं भाईसाहब! माँझे से जीव-हत्या के 'चान्स' बन जाते हैं इसलिए मैंने पतंग उड़ानी छोड़ दी"
तभी हमारे संवाद को भेदती इक आवाज़ आई, "भैया! गुटखा दीजियेगा!", उन्होंने उसे गुटखा पकड़ा दिया और मैं मुस्कुरा उठा! उन्होंने भी मेरी मुस्कराहट की वजह भाँप ली और वो थोड़े सकुचा गये! हम दोनों के मन में प्रतिगुंजित था एक ही वाक्य,"माँझे से जीव-हत्या होती है इसलिए पतंग उड़ानी छोड़ दी", मैं मुस्कुराये जा रहा था और वो शर्माये!
