जेब की जुबानी
जेब की जुबानी
"चली आती हैं सबेरे-सबेरे मुझे परेशान करने के लिए। उफ्फ ! आपके चिपचिपे हाथों से मैं तंग हूँ! आपके हाथों से कभी धनिये की गंध आती है, कभी लहसुन की गंध तो कभी उसमें आटा लगा रहता है। हाथ घुसाने से पहले हाथ तो धो लिया कीजिए।
अपने भोले-भाले पतिदेव को देखिए, ये उन्ही का पतलून है। साहब मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। मुझमें केवल सुगंधित रुमाल और पर्स रखते हैं।आफिस से आने के बाद खुंटी पर अपने पतलून को लटकाकर ...वे नित्य मुझे प्यार से बोलते हैं , " अब तू भी आराम कर। "
पतलून से चिपके जेब ने मुस्कुराकर मुझसे कहा।
"अरे ! मैं घर चलाती हूँ, घर चलाना आसान काम नहीं होता है ! पर तू समझेगा कैसे! तुम्हें तो रोज घूमने का अभ्यास लग गया है , हमेशा इनके संग घूमते रहते हो ! कभी बाजार तो कभी आफिस। "
"हाँ,आपके इनके साथ मैं मजे से घूमता हूँ। " जेब ने दो टूक हँसकर जवाब दिया।
"परंतु , इनके किसी बात का तुझे जरा भी ख्याल नहीं रहता !कल इनका पर्स किसी ने मार लिया , उस समय भी तुम गुमसुम रह गये !"
"क्या करूँ! चाह कर भी कुछ नहीं कर सका! सच कहता हूँ , कल मुझे बहुत दुख हुआ था। जैसे ही दुकान से साहब सामान लेने लगे तभी किसी उचक्के ने उनका पर्स उड़ा लिया। और मैं ..हह ! मूक दर्शक की तरह सब देखता रह गया!
बेचारे, मायूस वापस घर आकर आपको सब बताया , लेकिन आप उन पर बरस पड़ीं। नाश्ता देना तो दू...र , आपने साहब को चाय के लिए भी नहीं पूछा!बिना चाय पीये वो मूड चेन्ज करने के लिए घर से बाहर निकल गये ...और उनके साथ मुँह लटकाये मैं भी !
मैं खाली था सो रास्ते में बनते गर्म समोसे, जलेबी को ललचाई नजरों से देखते हुए वापस घर आ गया।साहब तुरंत सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगे और मैं यह सोचकर काँपने लगा....कि कहीं घर में फिर से महाभारत न छिड़ जाए !
तभी प्लेट में हरी चटनी के साथ गोभी के पकौड़े लेकर आप उनके करीब आ पहुँचीं ,मुस्कुराकर उनसे कहा, " प्लीज खा लीजिए। छोड़िए इन बातों को,पर्स खोना था सो खो गया! जीवन में ऐसी घटनाएं होती रहती हैं।"
मैंने देखा, साहब मुस्कुराए और उन्होंने पकौड़े को उठा कर आपके मुँह में डाल दिये। सच कहता हूँ आप लोगों को प्रसन्न देखकर मेरा डर छू मंतर हो गया और मैं दाँत निपोड़ कर हँसने लगा।।