जब सब थम सा गया (दूसरा दिन)
जब सब थम सा गया (दूसरा दिन)


लॉक डाउन दूसरा दिन
26.03.2020
प्रिय डायरी,
आज दूसरा दिन था और मैं रात भर ढंग से सो भी नहीं पाया क्योंकि नींद के लिए सुकून होना ज़रुरी है, लेकिन ये समय सुकून का तो कहीं से नहीं दिख रहा था। नवरात्री के चलते घर पे हर बार नौ दिन तक माँ की आराधना और अखंड ज्योत जलती हैं और ये परंपरा चली आ रही है। इसी उम्मीद के साथ की सब ठीक हो जाये दूसरा दिन भी जल्दी प्रारम्भ हो गया। मैं फिर अपने सोच मैं डूब गया और कोरोना संक्रमण से पीड़ित लोगो और ठीक होने वाले लोगो की संख्या संचार माध्यम से देख रहा था, जब किसी के अच्छे होने की खबर सुनता तो सुकून मिलता लेकिन किसी की मृत्यु की खबर मुझे दुखी कर देती और मैं फिर उदास हो कर रोने लगता। लेकिन और मैं कर भी क्या सकता था। जिस प्रकार मैं हमेशा खुश होकर सुबह उठता था आजकल भूल सा गया हूँ, उम्मीद की आस मैं बैठा हूँ की जल्दी सब वापिस ठीक हो जाये।
बिस्तर से उठकर जब मैं पूजा पाठ करके टेलीविज़न पर खबर देख रहा था तो बस यही देख रहा था कि लोग कहते हैं कि क्या तुमने भगवान देखा, तो माँ बाप और गुरु तो भगवान के साक्षात् रूप हैं लेकिन इस महामारी मैं डॉक्टर और पुलिस प्रशासन भगवान के सबसे महत्वपूर्ण अवतार धरती पर अपना कर्म कर रहे थे और दिन रात सबको बचा रहे थे और समझा रहे थे। लेकिन क्या कहे भारत के अनमोल रत्न हमारे कुछ भारतीय इसको मजे मैं ले रहे हैं, और खुद के साथ साथ सबको परेशान कर रहे हैं, क्योंकि सबसे दूरी बनाकर ही हम इस आपदा से बच सकते हैं पर क्या करे लातों के भूत बातों से नहीं मानते इसलिए ऐसे रत्नों को पुलिस द्वारा दूसरे रूप से समझाया जा रहा था।
मेरे मन में विचार आया की इसमें इनको क्या मजा मिल रहा है? लेकिन एक बात मुझे परेशान की जा रही थी की भूखे लोग खाना कैसे खाएंगे। लेकिन थोड़ी देर मे मुझे व्हाट्सएप्प से खबर मिलती हैं कि समाज के कुछ नेक लोग गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन फ़ोन करके सुचना देने पर पंहुचा रहे हैं । देखकर दिन को बहुत सुकून मिला और सोचा क्यों नई इनको संपर्क करके अपने से जो हो मदद की जाये। थोड़ी देर मैं मेरे छोटे भाई और सबसे अच्छे मित्र शुभमजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे मदद करने के लिए सुचना दी मदद कर के सुकून मिला। पुलिस के जवान और अधिकारी क़ानून व्यवस्था बनाने में लगे हुए थे,और जरूरतमंदों को खाना व मदद मुहैया करा रहे थे।
दोपहर में फिर से मैं कोरोना से संक्रमीत लोगो की संख्या देख रहा था साथ ही दुखी भी हो रहा था क्योंकि मारने वाला की संख्या भी तेजी से बढ़ रही थी।एक बहुत ही अच्छा विचार मेरे मन में आया की ये संक्रमण विदेश से ही आया हैं और जो लोग भारत छोड़कर विदेश जाने के लिए परेशान होते थे वो आज वापिस आ गए इसलिए नहीं की उन लोगों ने कोई विशेष काम किया हैं,बल्कि इसलिए की जो जगह उनको पसंद नहीं थी आज वही पर वो लोग सुरक्षित हैं।और यही देखते और सोचते मैं फिर सो गया।
शाम को में परिवार के सभी सदस्यों के साथ यही चर्चा हो रही थी की क्या जीवन हो गया हैं इस भागदौड़ के जीवन में सब थम सा गया हैं।लेकिन परिवार और बच्चो के बीच सुकून भी था, मेरी भांजी नायरा(गुपचुप) जो की 1.5 साल की हैं बहुत ही चंचल और समझदार हैं और जब भी देखो सबका मनोरंजन करती रहती हैं।साथ ही मेरी प्यारी भतीजी आरोही(तुलसी) जो की अभी मात्र 8 माह की हैं वो भी मनोरंजन करती रहती हैं।इन दोनों बच्चो के चलते मैं कुछ समय के लिए सबकुछ भूल जाता हूं और सुकून महसूस करता हूँ।शाम को मंदिर की आरती और माँ नवदुर्गा की आरती के बाद सभी लोग फलाहार करके अपने अपने कमरे में आराम करने के लिए चले गए। मैं ऊपर अपने कमरे के खिड़की से सुनसान सड़को और सन्नाटे को महसूस कर रहा था और अजीब सी उलझन से सर दर्द होने लगा तो मैं कमरे में सो गया। 20 मिनट बाद मेरी आँख खुली और ऐसा लग रहा था मानो मैं अकेला रह गया हूं। बहुत ही कष्टदायी घटना लग रही थी की अचानक फोन की घंटी बजी तो जीवन संगनी जी अपनी दिन भर की बातें मुझे बताने लगी। लेकिन मेरी उदास आवाज़ को सुनकर वो तुरंत बोली क्या हुआ आप ठीक तो हैं न? तो मैंने अपनी 20 मिनट के सपने की सारी बात उनसे बता दी। मैंने बताया कि मुझे लगा सब कुछ खत्म हो गया हैं, तो उन्होंने मुझे समझाया कि आप ज्यादा सोच रहे हैं कोरोना के बारे में इसलिए अच्छी बात सोचिए।मैंने तुरंत सोचा की मैं शिक्षक हूँ और सोचना हैं तो अच्छा सोचो बुरा तो हो रहा हैं हो सकता हैं अच्छे सोच से कुछ अच्छा हो जाऐ,और फिर मैं एपीजे अब्दुल कलाम साहब की जीवनी का दूसरा भाग पढ़ते पढ़ते सो गया।
इस तरह लॉक डाउन का दूसरा दिन समाप्त हुआ।लेकिन कहानी अगले भाग मैं जारी रहेगी............💐