Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Vigyan Prakash

Abstract

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Vigyan Prakash

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जानते हो मैं कब मरा था?

जानते हो मैं कब मरा था?

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करीब 16 साल से हम गया में रहे हैं।वहीं गया जहाँ पिण्डदान होता है। जहाँ पितृपक्ष मेला लगता है।भगवान विष्णु की स्थली गया तारण भूमि है।रानी अहिल्याबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर बड़ा भव्य और सुन्दर है।नदी के किनारे होने के कारण अक्सर आते जाते रहने थे हम।एक बार की बात है हम शाम करीब 6 बजे मंदिर गये। ठंड के दिन थे सो अन्धेरा हो गया था।घर पे कोई नहीं था सो हम निठल्ले बने घूम रहे थे। फिर ऐसे में का ठंड और का हवा।

बड़ी देर मंदिर में बैठे रहे।जवान खून और माँ पापा नया नया अकेले छोड़ के गाँव गये थे सो हम खूब जोश में थे।मंदिर के कपाट समय पर बंद हो गये तो हमें बाहर निकलना पड़ा।मंदिर से लगे नदी तट पे शमशान घाट है।

मणिकर्णिका की तरह यहाँ भी अनवरत चिता जलती रहती है।काली रात में दूज के चांद के मद्धम रौशनी में सीना ताने हम घाट की ओर चल दिये। अभी बस हम उधर बढ़ ही रहे थे की “राम नाम सत्य है” की अनवरत गूँज सुनाई दी।हम हाथ जोड़ के खड़े हो गये।लाल साड़ी में पूरी श्रिंगार किये एक 40-45 साल की औरत की लाश अर्थी पे रखी थी। आगे में कंधा दिये एक लड़का लगातार रोए जा रहा था। शायद उसका लड़का था।एक बार को मैं उस औरत की शक्ल देखता रह गया।ऐसा लग रहा था मानों अभी उठ बैठेगी और अपने बेटे को गले लगा लेगी।जाने रात का असर था या किसी और बात का पर डर लगने लगा था।

थोड़ी देर रुक उन लोगों को गुजर जाने दिया और फिर मैं भी उधर ही बढ़ चला।आगे आगे अपने लक्ष्य की ओर जा रही एक देह थी और पीछे मैं।

रास्ते पे दो-एक लकड़ी, रस्सी, फूल आदि की दुकान थे बाकि कुछ नहीं। एक आध घर थे जो कब के छोड़े जा चुके थे।रात उस शांती में मेरा पिछा कर रही थी और मैं एक लाश और रात के बीच घिर गया था। करीब पाँच मिनट में हम घाट पर पहुँचे।एक कोने में दो चिताएँ जल रही थी। उठ रही लपटों के बीच मरोड़ खाती लाश देख ऐसा लगता था अभी उठ पड़ेगी।यही सुबह का वक्त होता तो जलती चिता से उठ रहे मुर्दे दिखा विदेशियों से खूब पैसे निकाले जाते पर रात में तो यहाँ खुद की जान सूख जाती है सो ये नाटक कौन दिखाये?मैं वहाँ चला गया जहाँ इस औरत की लाश को जलाया जाना था। लाल जोड़े, मंगलसूत्र, सिन्दूर लगाए उसे चिता पर लिटा दिया गया।

अब तक शरीर अकड़ना शुरु हो गया था। आँख अजीब चढ़ी हुई सी दिख रही थी और हाथ पैर मुड़ से गये थे।एक तो धुंधलका, मद्धिम चांद और उपर से ये चिता जलाने घाट के ओर आ गये थे।ऐसे में होना ये चाहिए था कि हम वहाँ से हट जाते पर जाने क्या हमारे अंदर हमको वही बैठाए रहा!

थोड़ा ढ़ीठ भी हो रहे थे हम।चिता को आग दी गई। पट पट की आवाज के साथ चमडी जलना शुरु हुई। हड्डीयों की अकड़ तोड़ती हुई आग की लपट पूरे शरीर को निगल रही थी।तभी लकड़ी हिली और वो औरत उठ गई!

उसका अधजला चेहरा लाल सुलगते हाथ और निकली हुई हड्डियाँ देख उसका बेटा धम्म से गिर गया।आस पास के लोग डर के मारे उसे उठा नहीं रहे थे।

लाल सुलगती आँखों को देख किसी की हिलने तक की हिम्मत नहीं हो रही थी।एक गेरुआ वस्त्र धारी महाराज आये जिन्होनें एक लकड़ी से मार लाश को बीच से तोड़ दिया जिससे वो गिर गई।बड़ी मेहनत से लड़के को उठाया गया। उसे अभी भी यकिन नहीं हो रहा था उसने जो देखा।यकीन तो मुझे भी नहीं हो रहा था। चिता जलते तो पहले भी देखी थी पर उठती हुई नहीं।लगभग 8-8:30 बजे तक हम चिता को जलते हुए देखे। उसके बाद उसके परिवार के सब लोग चले गये। अब उस घाट पर बस हम और वो महाराज थे।

हम अभी भी उस झटके से निकलने की कोशिश में थे जो हमको अभी लगा था की वो बोले ठंड नहीं लग रही है?ठंड तो लग रही थी पर माथे पर ठंडा पसीना भी था सो बस सर हिला दिये।आओ यहीं से आग ताप लो कहकर वो चिता के पास बैठ गये जहाँ दो चार मोटी लकड़ियाँ अभी जल रही थी और सुलग लाल हुई हड्डियाँ बिखरी थी।इतने आराम से उन्हें चिता की आग से हाथ सेंकता देख मैं कुछ बोल नहीं पाया।मेरी हालत समझ वो बोले ज्यादा मत सोचो।

हम तो यही रहते है दिन रात सो अब आदत हो गई है।हिम्मत कर के हम भी एक ओर बैठ गये। हाथ बढ़ाने की तो हिम्मत न थी पर पास बैठने से गर्मी जरुर लग रही थी।

अचानक से हवा तेज हो गई। धीमे धीमे जल रही लकड़ी में अचानक लपट तेज हो गई।महाराज ने घाट पर की कहानियाँ सुनानी शुरु की।

पता चला की वो करीब बीस साल से घाट पे है कितनी मौत देख चुके है।किस्सो कहानियों में गुम अचानक मैं आस पास के प्रति सजग हो गया। हवा रुक सी गई थी और मेरी साँस तेज हो गई थी।फोन निकाला तो देखा 10 बज गये थे।टन्न अचानक से घंटी की आवाज सुन लगा की मेरा दिल रुक जायेगा।

महाराज सिर झुकाये बैठे थे।तभी मैंने एक बात देखी महाराज के पैर एकदम काले थे। हाथ से अजीब सी गंध आ रही थी। अभी कुछ देर पहले जिस आदमी से मैं कहानियाँ सुन रहा था वो तो वो था ही नहीं।

मैं हकलाते हुए बोला, “जी …”चिता की लहराती लपट में दांत दिखाते हुए उसने कहा एक किस्सा सुनाऊ?

“जानते हो मैं कब मरा था?”


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