Vigyan Prakash

Abstract

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Vigyan Prakash

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दिल मिलते हैं ...

दिल मिलते हैं ...

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“आप बड़े दूर के लगते हो साहब, गाँव में काहे आये हो?” कई बार स्मृतियाँ यूँ ही आ जाती है, और जैसे ठंडी हवा का झोंका खिड़की की हल्की सी पोर से अंदर आ पूरे कमरे को भर देता है, वैसे ही यादें पूरे मन को भर देती है झंझावातों से!

दूर हिमाचल की पहाड़ियों में छुट्टियाँ मनाने की ये यादें बस कुछ पहाड़ों और झीलों तक सिमट जाती मगर उसके कारण आज भी वो याद आते ही मन में “ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मिली” बजने लगता है और मैं शशी कपूर की तरह नाचने लगता हूँ!

वो लम्बी चिकोटी नाक, लाल गाल, मद्धिम गुलाबी होठ और पतली सी चोटी में गुथे बाल! हिमाचल में जब उसके गाँव पहुँचा तो वहाँ ट्यूलिप के फूलों की क्यारीयों के बीच से वो जो निकली तो लगा मानो गा ही दूँ “खिलते हैं गुल यहाँ खिल के बिखरने को!

वो रात पूरी उस चेहरे को ट्यूलिप के क्यारियों से निकलते देखने में ही बीत गई। छोटे से ढाबे में लाईन से लगे बिस्तर पे कई तरह के लोग लेटे थे और बैकग्राउंड में “रात कली एक ख्वाब में आई बज रहा था!”

हम सोचे कल सुबह उसे कैसे भी कर गाँव में ढूंढेंगे और बस कह ही देंगे “रुप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना!” पर भरे गाँव से पिटने के ड़र से ये विचार छोड़ना पड़ा। मगर तलाश तो हमनें फिर भी की। छोटा गाँव था पर जैसे हर ओर मेला लगा हुआ था। हिमाचल वैसे भी जबरदस्त टूरिस्ट स्पॉट रहा है जहाँ लोग चारों ओर उंचे पहाड़ से घिरे झील का साँस रोक देने वाला नजारा देखने आते हैं! पर हमारी साँस तो कोई और रोके जा रहा था, लाल पारम्परिक हिमाचली कपड़े में। “ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाये!

भोर में उठ मानसरोवर की खुबसूरती को निहार चुका मैं उसकी आँखों को देख दिल की धक धक साफ सुन सकता था। “तुमको देखा तो ये खयाल आया!” वाला लूप बस बजने ही वाला था की वो जाने कहाँ ओझल हो गई।

ओ मेरे दिल के चैन चैन आये मेरे दिल को दुआ किजीये! टू रु रु रु टू रु रु रु टू रु रु रु”, गाते गाते हम पूरे दिन गाँव भर घूमते रहे। बड़ा खोज विचार कर अपनी मनोनीत प्रेमिका का घर मालूम किए जिसकी तस्वीर 2 मेगापिक्सल वाले नोकिया में उतार लिये थे हम!

बड़ी मसक्कत से लड़की के पिताजी को दिल की बात कहने के बाद हम कुटाई किए जाने का इन्तजार भर कर रहे थे की वो हाथ में कुल्हड़ लिये आई और सामने मेज पर रख दिया। “मिताली नाम है इसका, लेकिन ब्याह हमारी रीत से होगा!” सुनना भर था वो मुड़ के भाग पर्दे के पीछे ओझल हुई। “फिर सुहानी शाम ढली!

पिताजी की भरपेट गालियों और माँ के प्यार भरे ताने और “बहू यहाँ आयेगी तो फिर तेरी शादी धूम धाम से कराउँगी” की उलाहना और पिताजी की दोबारा दी गई नसीहतों के बाद हमनें शादी कर ली। वही शादी के दौरान कोई “प्यार दिवाना होता है!” बजा रहा था।

“अरे अकेले बैठे बैठे क्यूँ मुस्कुरा रहे हो?”

“अच्छा एक बात पूछूँ?” 

"पुछो ना” 

भीगी-भीगी रातों में, मीठी-मीठी बातों में ऐसी बरसातों में, कैसा लगता है?” 

“आज ये क्या हुआ तुमको?” 

“अरे बोलो ना कैसा लगता है” 

ऐसा लगता है, तुम बन के बादल मेरे बदन को भीगो के मुझे छेड़ रहे हो छेड़ रहे हो!


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