Vigyan Prakash

Abstract Romance Tragedy

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Vigyan Prakash

Abstract Romance Tragedy

टूटते सितारे

टूटते सितारे

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क्षितिज पर टूटते सितारें को फिर से किसी पन्ने के बीच दबाने को बेचैन, जैसे एक मुट्ठी भर आसमान का हिस्सा ले लेना चाहता हो...

तुम्हारी याद आते ही अजीब से सवालों और खयालों से मन पगला सा जाता है !

बेजान होती चिट्ठियों में तुम्हारे बारे लिखी कुछ लाइनें शोर करती है जैसे सूखती कोई नदी से दूर भागते हंस...

किसी गुलाब की बेजान होती खुशबू जो कभी बेकश अपनी ओर खिंचती थी, तो किसी पन्ने पर उकेरी गई कुछ लाइनें जो कविता बनने की उम्मीद में दम तोड़ बैठी...

अब ऐसा अक्सर तो नहीं होता मगर कभी कोई दो चार रोज भी ऐसे नहीं जाते जिनमें कभी एक पहर को तुम्हारी याद ने रेगिस्तान में उठती लहर से मुझे काबू ना कर लिया हो !

खैर अबके ना आना, अब चले जाना ही बेहतर है...

मगर वो कैसे जाये जो हमेशा यही कही आपके पास बैठा होता है ?

तुम यही कही होती हो... कही किसी कोने में मेरे भीतर...

मेरी जिंदगी का कोई हिस्सा नहीं जिसे तुमने छुआ ना हो...

इस किनारे की हर रेत तुम्हारे हाथों से होके फिसली है, इस समंदर का हर मोती तुमने बनाया है।


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