Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Vigyan Prakash

Romance

4  

Vigyan Prakash

Romance

प्रेम की चाय

प्रेम की चाय

4 mins
417


डाइनिंग रुम साफ करते करते श्रीमती जी ने एक बार और आवाज लगाई। “चाय मिलेगी?” “बस आया रेणु!” “क्या सोचने लग जाते हो चाय चढ़ा कर?”

“कुछ नहीं बस यूँ ही”

“तुमने तो जैसे चाय उबालते हुए किसी नये दार्शनिक सिद्धांत को खोजने का मन बना लिया है। कैसे खोये रहते हो” “हाहा”

“ये लो चाय”

“बैठो न”

उम्र की ढलान पे काफी आगे निकल आये दोनो शादी के 40 साल बिता चुके रमा बाबू 65 के थे और रेणु 58 की। “जरा गाना लगाओ अब तो ये न्यूज देखने का जी नहीं करता”

“हूँ। रवि से बात हुई?”

“सुबह कॉल किया था आपके लाल ने। ठीक है वहाँ!”

“हूँ” हम दोनो दो प्रेमी.. गाना बज उठा!

“क्यूँ मुस्कुरा रहे हो इतना?” “ये गाना याद है तुम्हे?” चाय की सी रंगत उसके चेहरे पे फैल गई। इस उम्र में भी शर्म से झुक रही उसकी आँखे छुपाए गये असीम प्रेम की झलकियों को दिखा रही थी, वो जो अक्सर ढ़लती उम्र के साथ इस जीवन यात्रा में गाड़ी में कही पीछे बैठ जाता है जिम्मेदारी आगे।

“याद कैसे ना होगा” “रेणु उन दिनों की बड़ी याद आती है” “शादी की अगली सुबह ही तुम यहाँ आये थे नौकरी को और ट्रेन में खिड़की पे सामने सामने बैठ तुमने ये गाना गाया था। फिर गाओ ना!” रमा बाबू के चेहरे पे वो मुस्कान थी जो नये प्रेमी को प्रेमिका से पेहली बार बाहर मुलाकात करने पे होती।

“हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले…” “दुनिया की हम सारी रस्मे तोड़ चले…”

प्रेम ऐसा ही होता है और जिन्दगी भी। हल्की हल्की आंच पे पकने वाला प्रेम कड़क चाय की तरह होता है। धीरे धीरे खौलने से घुलने वाली चीनी जब सारे दुध में फैल जाती है तो पत्ती डाल उसमें रंग पैदा किया जाता है। प्रेम भी कुछ ऐसा ही होता है! हल्के हल्के गुलाबी नारंगी लाल हो वो उफन पड़ता है और फिर शांत हो जाता है। प्रेम में भी एक अवधी होती है जब वह उफान पर होता है। खैर कृत्रिम उफान बनाए भी जा सकते हैं!

“सुनो ना, गुलाब कुम्हला रहे है। इत्ती धूप हो रही है गमलों को थोड़ी छाँव में कर दो!” रमा बाबू को पूरी उम्र “सुनो जी” कहकर ही बुलाया गया। इस “सुनो जी” के प्रत्युत्तर में “आया रेणु” की आवाज ही जैसे प्रेम की पूर्णता थी। नाम तो रेणुका था पर रेणु में जो मिठास थी वो थी प्रेम। इश्क़ भी छाँव मांगता है! प्रेम स्थिरता चाहता है। वो प्रियतम का साथ के साथ एक निश्चित आजादी की भी इच्छा रखता है!

गुलाबों के गमलों को ठीक करते रमा बाबू को जाने क्या सूझा। “रेणु पीछे घुमना जरा” “क्या हुआ?” “सवाल छोड़ो न” “अरे बोलो तो” “तुम घुमोगी या नहीं?” “ये लो… अरे अरे ये…” “आज भी मधुबाला लगती हो!” बालों में गुथे लाल गुलाब की खुबसूरती से ज्यादा आज रेणु का चेहरा खुबसूरत था.

बार बार आईने में उस गुलाब को देख रेणु का चेहरा मानों गुलाब ही हुआ जा रहा था! प्रेम में ऐसे अनिश्चित अनायास किये प्रयास ही तो कहानियों को जन्म देते हैं! वो कहानियाँ जो जाने कितने जन्म याद रहती हैं!

“सुनो जी”

“आया रेणु”

“जरा ये बक्सा उतार दो”

“अरे अब ये क्या सुझी तुम्हें? सारे घर की सफाई करवा लो हमसे तुम”

“तुमको ना कह रही हूँ, मैंने खुद कर लुंगी। तुम बस उतार दो न”

“अच्छा बाबा ये लो”

पुराने बक्से टाईम मसीन होते हैं। उन्हे खोलते ही आप उस दौर में पहुँच जाते हैं जहाँ जिन्दगी आपके कुछ और करीब थी। कई बार ये टाईम मसीन खुद जान बुझ कर खोले जाते हैं!

“ये क्या है?”

“खुद पढ़ लो”

“अरे ये कहाँ थी? बक्से में?”

“हुम्म”

मेरी प्यारी रेणु, यहाँ आये महीना भर हो गया है। अब तुम्हारे बिना मन ना लगता है। फिक्र ना करना, जल्द आऊँगा। तुम्हारे दिए लड्डू अब खत्म होने को आये है। तुम्हारे हाथ की चाय की भी तलब होती है। मैं प्रेम लिखना नहीं जानता रेणु वरना बताता की कितना प्रेम है। तुम्हारा, रमाकांत

“रेणु”

“हुम्म”

“आई लव यू”

“धत्त पगला गये हो?”

“अरे तुम मुझसे प्यार नहीं करती?”

“नहीं करती तो चालिस साल नाहक झेलती तुमको?” रमा बाबू के चेहरे पे मुस्कान तैर पड़ी!

“चाय बनाओगी?”

खत का जमाना भी गजब था। प्रेमवाहकों का वो दौर कभी इतिहास में पढ़ा जायेगा किस प्रेमी ने सोचा होगा? उनके लिये तो वो विश्व की सबसे बड़ी खोज थी जो उनके प्रियतम का हाल उनतक ले आती थी। खत प्रेम का मूर्त रुप थे! चाय की चुस्कियों के साथ प्रेम को दोबारा उफान लेते देखना रमा बाबू के लिये एकदम नया अनुभव था। पुरानी एल्बम में एक दूसरे की अजीब तस्वीरों को मुस्कुरा रही रेणु ने अनुभव किया ‘जब यादें सुखद हो प्रेम खिलखिलाता है! “सुनो जी”

“आया रेणु” …


Rate this content
Log in

More hindi story from Vigyan Prakash

Similar hindi story from Romance