Vigyan Prakash

Romance

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Vigyan Prakash

Romance

नज़्म

नज़्म

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जब रोज शाम डूब रहा सूरज तुझसे विदा लेने आता और तू पाँच और मिनट मांग उसे बड़े सलीके से रोक लिया करती थी, जब मेरे होठ हर बेमुक्कमल साँस को पुरा करने को तेरी पेशानी को चूमने निकल पड़ते थे, जब हर अरदास को उठे मेरे हाथ मेरे लबों को छू खुदा से तुझे मांगने की जुस्तजू करते थे, और बेमुरव्वत रातों को तेरी बेतरतीबी से बिखरी जुल्फों (जो किन्हीं वजहों से बार बार तेरी होठों को छूने आती थी) की कहानियाँ सुनाया करता था, जब शांत पड़े उस गहरे झील का पानी भी मेरी सांसो के चलने की आहट सुनने खुद को समेट लिया करता था, जब मेरी आँखें हर रात एक ही ख्वाब पर जा कर अटक जाया करती थी, तब भी मैं खुद को इतना खुशनसीब ना मानता था की तू मेरे साथ है, मगर आज आज जब की वक़्त और हालात अलग तस्वीर बयाँ करते है, जब मेरी सांसे कहीं अंदर ही अटक जाती हैं, जब झील मेरी खामोशी सुन शांत नहीं रह जाती, जब रात को तेरी कहानियाँ सुनाने पे तारे टूटने लगते है, और हाथ अब दुआ को उपर नहीं जाते, अब मैं खुश किस्मत हूँ, मैं खुश किस्मत हूँ की मैं हर वक़्त जहन में तेरी तस्वीर लिए बैठा हूँ!


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