Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Neha Bindal

Abstract

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Neha Bindal

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जाना नहीं मीता

जाना नहीं मीता

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मैं आज घर पहुँचा तो घर बाहर से बंद था। अक्सर ऐसा होता नहीं, जब घर पहुँचता हूँ तो मीता मुस्कुरा कर दरवाजा खोलती है और गर्म गर्म चाय से मेरा स्वागत करती है। चाबी खोलकर अंदर आता हूँ, देखता हूँ घर बिखरा पड़ा है, अचंभा, ऐसा तो होता नहीं अक्सर। हमारी 5 साल की शादी में बमुश्किल एक दो बार ही घर इतना बिखरा मिला है मुझे। किचन में पहुँचता हूँ, देखा तो फ्रिज में कुछ भी खाने का सामान नहीं है। खैर भूख लगी थी तो मैग्गी बनाने रखी और मीता को फ़ोन लगाया। स्विटच्ड ऑफ! ऐसा तो कभी नहीं होता। एक और झटका, मीता फोन को लेकर बहुत पर्टिकुलर है, कुछ भी हो जाये फ़ोन बंद नही होने देती है। मन मे थोड़ी घबराहट आई किन्तु झटक देता हूँ, हो सकता है बैटरी खत्म हो गयी हो। घर को देख कर तो ऐसा ही लग रहा है जैसे बहुत जल्दी में कहीं गयी है वो। लेकिन कहाँ?

सोच में हूँ, लेकिन अभी कुछ कर भी नही सकता, मैग्गी बन गयी थी तो चाय के साथ लेकर बैठ जाता हूँ लेकिन आज सालों में अकेले खाते हुए अजीब लग रहा है। शाम के समय हमेशा मीता साथ होती है, सुबह के समय भी वो चाहे काम के कारण पास न बैठे लेकिन आसपास तो होती ही है। भले ही वो मेरे साथ नही खाती, मुझे खिला कर तब खाती है, पर मेरे साथ बैठती ज़रूर है। एकसाथ मन मे आया अकेले कैसे खाती होगी?

खैर जैसे तैसे खाना खाया और प्लेट्स किचन में रख आया। टी वी ऑन किया लेकिन मन नही लगा देखने में मीता के बगैर ,टी वी पर भले ही सिर्फ मेरी पसंद के प्रोग्राम चलते हो , जो उसे पसंद नही आते,लेकिन वो साथ तो देती ही है। हमेशा मेरे लिए कुछ न कुछ बनाकर लाती है और फिर मेरे साथ बैठ कर मेरी पसंद के प्रोग्राम देखती है। आज महसूस कर रहा हूँ कैसे अकेली देखती होगी वो सारा दिन टी वी मेरे बिना।

टी वी में मन नही लगा तो उठकर बालकनी में चला आया। कितना सुकून सा है यहाँ! मीता को यहाँ आकर बैठना बहुत पसंद हुआ करता था शादी के शुरुआती दिनों में लेकिन फिर उसने यहाँ बैठना छोड़ दिया, न जाने क्यों?

याद करता हूँ कि किस तरह, मेरे घर आने के बाद मेरे कंधे पर अपना सिर झुका वो बैठा करती थी यहाँ। मैं उसे झिड़कता कि सब देखते है मीता, क्या करती हो ? लेकिन वह फिर भी नही मानती। आखिर मैंने उसके साथ यहाँ बैठना ही छोड़ दिया। शायद उसके बाद वो भी यहाँ नही बैठी कभी।

आज उसकी बेचैनी और कुलबुलाहट महसूस दे रही है मुझे कुछ कुछ, कितना अजीब है यहाँ अकेले बैठना ।

यहाँ भी मन नही लगा, उठकर भीतर चला आया। अब झुंझलाहट सी हुई है उसपर, न जाने कहाँ चली गई। ऐसा कभी करती नही है वो। मन नही माना , उठकर पड़ोस में जाता हूँ। बेल बजाई तो पड़ोसन, मायरा, ने दरवाजा खोला। उससे मालूम चला कि मीता तो लगभग पिछले एक साल से उसके घर नही आई। उसने बताया कि पूरा दिन घर में ही रहती है। कहीं निकलते देखा नही है उसने कभी उसे। उसने बताया कि शुरू में उसने बहुत कोशिश की मीता से बात करने की लेकिन जब मीता ने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दी तो उसने भी मिलना छोड़ दिया मीता से।

हताश सा घर आया। मायरा ही तो उसकी सहेली थी पूरी कॉलोनी में, अब उससे भी नही मिलती। और मुझे खबर भी नही।

याद करता हूँ, कितने मित्र थे उसके, कितना बोलती थी। पकर पकर, बकर बकर हमेशा चलती रहती थी उसकी। कभी चुप नही होती थी। मैं परेशान हो जाता, झिड़क देता उसे। मुझे नही पसंद इतना बोलना। उसके मित्र भी नही पसंद थे मुझे। मेरे डांटने पर चुप हो जाती, थोड़ी देर बाद फिर शुरू हो जाती। मैं थक कर माथा पीट लेता और अपने कामो में लग जाता। ध्यान देना ही छोड़ दिया था मैंने उसपर।

याद करता हूँ, कितना कम हो गया है उसका बोलना। अब तो आंखों में ही जवाब दे दिया करती है। आज उसका न बोलना, उसकी गैरमौजूदगी बहुत खल रही है मुझे। न जाने क्यों?

एक साल, एक साल से मीता ने मायरा से नाता तोड़ लिया, मेरे प्रोजेक्ट को शुरू हुए भी तो एक ही साल हुआ है। मैं एक सीनियर आर्किटेक्ट हूं, काम में व्यस्त रहता हूँ, उसे समय नही दे पाता। लेट घर आना, जल्दी घर से जाना, वक़्त कहाँ है मेरे पास उसे देने को। सुबह निकलता हूँ तो रात में घर आता हूँ, फिर खाना और टी. वी .। टी वी देखते देखते ही सो जाता हूँ। मीता शुरू से अकेली रहती थी इस घर में, शुरू में वो बहुत शिकायत करती, बहुत लड़ती मुझसे, कभी भी आवाज़ ऊंची नही होती उसकी लेकिन फिर भी उसे यूँ अकेले रहना पसंद नही था। मेरे न सुनने पर उसने कहना धीरे धीरे बंद कर दिया था। मुझसे लड़ना, शिकायत करना उसने सब कुछ बंद कर दिया था। आज लग रहा है, कैसा महसूस होता होगा उसे अकेले?

उसके बिना जीवन कहाँ है मेरा। याद ही नही है मुझे, आखिरी बार कब उसके बिना रहा हूँ मैं, मायके भी तो नही जाती वो, मायके के नाम पर है भी क्या? माँ पिता तो उसके बचपन में ही गुज़र गए, भाई भाभी हैं, लेकिन मुझे वो पसंद नहीं। नही जाने देता मैं उसे। क्या करेगी जाकर? यहाँ उसके बगैर मैं कैसे रहूँगा? सुबह मुझे पलंग से उठने से लेकर रात को मेरा पसंदीदा हल्दी का दूध देने तक सब कुछ वही तो करती है। अगर वो न हो तो क्या हो मेरा? घड़ी, पर्स तक तो याद नही रहता मुझे लेना, वो भी वही याद दिलाती है। उसकी आदत हो गयी है मुझे।

मेरी पसंद का खाना बनाकर मुझे खिलाती है, लेकिन उसकी पसंद का खाना, उसकी पसंद क्या है?

दिमाग पर ज़ोर डालता हूं, अचानक ही उठ बैठता हूँ। मुझे तो पता ही नही है उसकी पसंद क्या है?

शुरू शुरू में वो बताती थी, मुझे ये पसंद है, वो पसंद है, मैने ध्यान नही दिया कभी। फिर उसने कहना छोड़ दिया। जो बनाती मेरे लिए , वह भी वही खा लेती थी। आज महसूस दे रहा है मुझे, क्या किया है मैंने?

घर खाने को दौड़ रहा है। कमी खल रही है उसकी। कभी नही देखा मैंने इस घर को इन पांच सालों में खाली, उसके बिना। एक एक चीज़ आज मुझे उसकी याद दिला रही है। जाने क्यों एक बेचैनी सी हो रही है मुझे। घड़ी देखता हूँ, 8.30 बज गए है, कैसे और किससे पता करूँ? कहाँ है? 100 बार फ़ोन लगा चुका हूं। फ़ोन लग ही नही रहा है। अब सच कहूं अगर तो टेंशन हो रही है मुझे। शॉपिंग के लिए भी जाती है अगर वो तो मेरे घर आने से पहले वापिस आ जाती है। मुझे पसंद नही कि जब मैं घर आऊं तो वो घर पर न मिले। साफ साफ कह रखा था मैंने उसे। पिछले एक साल तो मैं 9 बजे से पहले नही आता, लेकिन उससे पहले भी कभी वो मेरे घर आनेपर मुझे बाहर नही मिली। हमेशा दरवाजे के पास चक्कर लगाती रहती और एक बेल बजने पर ही गेट खोल दिया करती थी। आज मैं दरवाजे के पास चक्कर लगा रहा हूँ। अब समझ आ रहा है क्यों मेरे घर आते ही वो मेरे गले से लग जाती है, और मैं, मैं उसे झिड़क कर दूर हटा दिया करता हूँ। मुझे ये नौटंकी पसंद नही। प्यार करो तो जताना ज़रूरी है क्या? प्यार तो आंखों का इकरार है, ज़ुबान से इज़हार ज़रूरी नही। समझती ही नही वो।

लेकिन न जाने क्यों लग रहा है कि अभी आ जाये तो सीने से लगा लूं उसे।शॉपिंग पर भी गयी होती अगर तो अब तक तो आ जाना चाहिए था, शॉपिंग से याद आया, उसने तो मुझसे कई दिनों से पैसे मांगे ही नही। शॉपिंग पर कैसे जा सकती है?उठकर रूम में चला आया हूँ, कहीं मन नही लग रहा है। पलंग पर बैठा हूँ, याद करता हूँ, रात को सोते समय भी उसका पैर, तो कभी हाथ मुझपर आ ही जाता है। ऐसे ही सोती है वो, और मैं उसको सुना देता हूँ नींद में ही। कैसे चुपचाप सो जाती है हमेशा एक कोना पकड़ कर। उसके बिना ये पलंग कितना सूना है।

चलूं, कपड़े तो बदल ही लूं। अलमारी खोलता हूं, अरे मेरा नाईट सूट कहाँ है? कितना मुश्किल है ये सब ढूंढना, वो ही करती है हमेशा। च्च्च्च्च... इस अलमारी में तो नही है, उसकी अलमारी में देखता हूँ। अलमारी खोलते ही उसकी ख़ुशबू मेरी नाक के नथुनों पर पड़ती है, जैसे किसी और ही जहां में खो जाता हूँ। सूट ढूंढ रहा हूँ, मिल गया। देखो कितनी लापरवाह है, मेरा सूट अपनी अलमारी में क्यो रखा है?

अरे, ये क्या गिर गया?

लाल साड़ी, उसी की है। पहले करवा चौथ पर पहनी थी उसने, अभी भी याद है मुझे, कितनी खूबसूरत लग रही थी, परी सी है वो ,गुड़िया सी, जब घर आया और उसने दरवाजा खोला तो देखता ही रह गया था उसे। अपने को संभाल नही सका था। मैं उसे गोद मे उठाने को आगे बढ़ा तो उसने मुझे रोका और मुझे बाहर बालकनी में ले गयी। मुझे उसका रोकना नागंवार गुज़रा था। चाँद को देख जब थाली मेरे आगे की तब याद आया कि आज तो करवा चौथ है। तब समझ आया कि क्यो इतने पैसे चाहिए थे उसे, बहुत डांट डपटकर मैने पैसे दिए थे उसे। व्रत ढंग से तोड़ने भी नही दिया था उसे और इस कमरे में ले आया था। बिस्तर पर पहली बार उस रात उसकी आंख में आंसू देखे थे मैंने। आज तक नही समझ पाया हूँ कि क्यो रोई थी वो?

हद हो गयी अब तो, 9.30 बज गए हैं, अभी तक नही आई, अब नही रुक पा रहा हूँ, उठकर नीचे गया, वॉचमैन से पता किया, शाम 4 बजे निकली थी वो। कुछ समझ नही आ रहा है।

वापिस कमरे में आ जाता हूँ। उसके भाई को फ़ोन लगाया, मजबूरी थी मेरी वरना उससे बात करना पसंद नही मुझे। पता चला वहाँ भी नही गयी। उसकी तो अब और कोई दोस्त भी नही है। पुलिस के पास जाऊं क्या? शायद कुछ देर और इंतेज़ार करना चाहिए। क्या मालूम आती ही हो। अब मुझपर एक शंका सी हावी हो रही हैघर मे ढूंढता हूँ कुछ मिल जाये अगर, उसका कोई मेसेज या कुछ और। किचन में जाता हूँ।

किचन में कुछ खास नही मिला, बस समान की लंबी लिस्ट के सिवाय। झल्लाकर अंदर कमरे में वापिस आता हूँ, ड्रावर्स वगैरह को चेक करता हूँ, क्या पता कुछ मिल जाये! बाहर की ड्रावर्स में कुछ नही मिला पर एक अहसास हुआ कि कितना तरीके और करीने से घर रखती है वो। हर चीज़ कितनी साफ और सुंदर तरह से उसने रखी हुई है। चेक करते वक़्त सारा सामान इधर उधर कर दिया है मैंने, वापिस आएगी तो हैरान रह जाएगी। खैर आने दो तो वापिस, पहले तो मुझसे डांट ही खाएगी।

उसकी अलमारी की ड्रावर खोलता हूँ, फिर से उसकी खुशबू का अहसास होता है। झटक कर सिर को चेक करता हूँ कहीं कुछ मिल जाये। सबसे पहले हमारी शादी की एल्बम हाथ लगती है मेरे, लेकिन ये यहाँ क्या कर रही है? ये तो बेड में रखी रहती है न। शुरू में कई बार कभी भी लेकर बैठ जाती थी इसे। बार बार इन्ही तस्वीरों को देखना बोझिल सा लगने लगा था मुझे, एक दिन मैंने ही उठाकर बेड में डाल दी थी। कम से कम रोज़ के नाटक से छुटकारा मिल गया था। अब तो मुझे याद भी नही आखिरी बार कब उसके साथ इन तस्वीरों को देखा था मैंने। अब अचानक ही इसपर हाथ जा रहा है। खोलकर देखने का मन कर रहा है। और मैं सबकुछ भूल कर एल्बम देखने बैठ जाता हूँ।

क्या खूबसूरत लग रही थी वो अपने लाल हरे जोड़े में! मेरी ही पसंद का तो था वो। हाँ भले ही मैंने ज़ुबान से न कहा हो लेकिन मेरा इशारा समझ गयी थी वो, इसी जोड़े पर हाथ रखा था उसने। यही खासियत है उसकी, मेरी छोटी छोटी पसंद जानती है वो।उस दिन किसी की नज़र नही हट रही थी उसपर से। मैं खुद उस दिन उसकी काजल भरी नज़रो की गिरफ्त में था। शादी के बाद हम कहीं घूमने नही गये थे। ये हनीमून वगैरह के चोंचले मुझे नही पसंद, हालांकि उसने दबी ज़ुबान में कहा था लेकिन मुझे नही पसंद तो वो भी मान गयी थी। हमारी शादी के बाद रस्मो रिवाज के लिए ही हम गांव में रुके थे, उसके बाद तुरंत ही माँ पापा ने उसे मेरे साथ भेज दिया था।

मेरे इस मकान को घर उसी ने बनाया था आकर। कमाल की जादूगरी है उसके हाथों में। जिस काम को हाथ लगा देती है उसे करके ही दम लेती है और वो भी बिल्कुल परफेक्शन से। घर का एक एक कोना उसके अच्छे और सच्चे टेस्ट का नमूना है। इस घर को सजाने में मेरा कोई योगदान नही है सिवाय पैसे देने के। और पैसों के मामले में भी वो बहुत मितव्ययी है। एक एक पैसे को दांत से पकड़ती है। बहुत सोच समझकर खर्च करने के बावजूद भी उसने इतना सुंदर सजाया है इस घर को। आर्किटेक्ट मैं हूँ लेकिन इस घर मे मेरा कुछ भी नही, सबकुछ मीता का ही है।

शादी के शुरुआती दिनों में मेरे घर पर न आने का वो बहुत विरोध करती, मन तो मेरा भी होता था उसके साथ समय बिताने का लेकिन काम का इतना प्रेशर था मुझपर। वो समझती ही नही थी, उसका क्या था, छुट्टी लेकर घर बैठता तो ये घर चलता कैसे? पर उसको इन सबसे क्या मतलब था। जब देखो रोमांस ही छाया रहता था उसके मन पर। हमेशा काम के बीच मे फ़ोन करके तंग करती रहती मुझे, मेरे खुद से फ़ोन न करने पर मुझसे नाराज़ हो जाती, लेकिन मेरे पास उसे मनाने का भी समय कहाँ था? धीरे धीरे उसे समझ आ गयी। कुछ कहना बंद ही कर दिया उसने।

न जाने क्यों आज ऐसा लग रहा है कि वो वापिस आ जाये तो मैं भी उसके साथ वही बचपना करूँ जो वो मेरे साथ तब किया करती थी।

एल्बम देखकर मैने उसे बंद कर दिया। आगे चेक किया ड्रावर तो मुझे अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट हाथ लगी। दिल धक से रह गया मेरा।

हमारी शादी के दूसरे वर्ष मीता ने मुझे खबर सुनाई की वो माँ बनने वाली है। मैं खुशी से फूला नही समाया था लेकिन बस अपनी खुशी बयां नही कर सका। पता नही उसने मेरी खामोशी को क्या समझ लिया? उदास सी रहने लगी वो। मैं उसका ख्याल रखना चाहता था लेकिन मैं रख नही पा रहा था। मेरे पास इतना समय ही नही होता था। यहाँ तक कि मैं डॉक्टर के यहाँ भी उसके साथ नही जा पाता था। ऐसा नही था कि मेरा मन नही करता था, लेकिन एक बच्चे के आने की खबर ने मेरी ज़िम्मेदारियों को और बढ़ा दिया था। अब मैं और भी मेहनत करके खूब पैसा कमाना चाहता था ताकि मैं अपने बच्चे को सुखद भविष्य दे सकूं।

वो बहुत बीमार सी रहती थी उन दिनों, चाहकर भी मैं उसका ध्यान नही रख पा रहा था, माँ को मैने यहाँ आकर रहने को कहा, लेकिन पिताजी को छोड़कर वो कैसे आतीं और पिताजी गांव से बाहर आना नही चाहते थे। न चाहते हुए भी मुझे उसे घर पर अकेले छोड़कर जाना पड़ता। केवल मायरा थी जिसने उस समय हमारा इतना साथ दिया, वो ही मीता का ध्यान रखती, उसे अस्पताल लेकर जाती लेकिन मीता का चेहरा दिन ब दिन उतरता जा रहा था, पिछले दो सालों में मैंने पहली बार उसे इतना कमजोर देखा था। एक मन करता कि छोड़ दूं नौकरी और उसके साथ रहूं लेकिन न कर पाता ऐसा।

तीसरे महीने मीता का गर्भपात हो गया। मुझे तो उसने बताया भी नही। एक फोन तो कर ही सकती थी। शाम को जब मैं घर आया तब मायरा से पता चला कि दोपहर में क्या हुआ? उसी ने मुझे बताया कि इस गर्भपात का ये नतीजा रहा कि मीता अब कभी माँ नही बन सकेगी। मैं तब भी कुछ बोल नही सका, मेरे आंखों के कोर गीले हो गए थे लेकिन ज़ुबान ने मेरा साथ नही दिया। हमारे बीच एक सन्नाटा फैल गया था।

उस दिन के बाद मीता टूट गयी। दुख मुझे भी कम नही था लेकिन मैं मीता को संभाल नही सका। वो दिन ब दिन मुझसे दूर होती जा रही थी और मैं खुली आँखों से उसे खुद से दूर होता देख रहा था। न जाने क्यों दिमाग के एक कोने ने मेरे बच्चे का कातिल मीता को मान लिया था। मैं जानता हूँ, उसकी ग़लती नही थी, मन तो यही कहता था मेरा, लेकिन दिमाग कहता कि उसी ने मेरे बच्चे का ध्यान नही रखा।

उस घटना ने हमारे बीच एक खाई सी बना दी, खामोशी की एक दीवार जो समय ने बनाई थी हमारे बीच अब वो दीवार इस घटना की ईंटो तले और भी बड़ी हो गयी थी। वो मशीन की तरह मेरा सब काम करती, मेरी हर ज़रूरत का ख्याल रखती लेकिन मन से वह मेरे साथ नही होती। मैं अब इस ज़िंदगी का आदी हो चला था। अब हर समय चहकती रहने वाली,मेरा दिमाग खा जाने वाली मीता बिल्कुल ही चुप सी हो गयी थी। मेरा मन उसके करीब जाने को कहता लेकिन मेरा दिमाग उसे अपने करीब नही आने देता। मैंने खुद को आफिस के कामो में और मीता ने घर के कामो में खुद को झोंक दिया।

यादो से बाहर निकलता हूं, रिपोर्ट को एक तरफ रखता हूँ, ड्रावर दोबारा देखता हूँ, थोड़े और कुछ कागज और उनके नीचे गोलियां, ये किस चीज़ की गोलियां है, गूगल करता हूँ, अवसाद की गोलियां!

मीता इन गोलियों को क्यो ले रही थी?

उसे अवसाद कब हुआ?

कागजो में मेरे डॉक्टर सिन्हा का प्रिस्क्रिप्शन हाथ लगता है।

याद करता हूं, उस हादसे के बाद ही तो मीता खुद में सिमट गई थी। उस हादसे के लगभग एक साल बाद की ही तो बात है। वो कुछ नही बोलती थी, 10 बात बोलता तब एक का जवाब देती थी, मायूस रहती। कभी भी किसी भी चीज़ में मन नही लगता उसका। घर के कामो में कुछ ज्यादा ही चुस्ती बरतने लगी थी। सफाई का जुनून तो उसका हद से ज्यादा बढ़ गया था, छोटी छोटी गंदगी को भी बार बार साफ करती। जैसे कोई डिसऑर्डर हो। मुझसे तो कुछ कहती नही थी लेकिन खुद ब खुद बोलती रहती। मैं परेशान सा हो गया था। मैंने ही तो उसे डॉक्टर सिन्हा के पास भेजा था, मायरा के ही साथ तो गयी थी वो। लेकिन उसने तो मुझे बताया था कि चिड़चिड़ेपन की शिकायत बताई है डॉकटर ने उसे, कुछ दवाइयां दी है। उस समय भी मैंने ज्यादा ध्यान नही दिया था। बस हर बार उसे दवाइयों के पैसे दे दिया करता था। लेकिन ये वाली दवाई तो उसने मुझे कभी भी नही दिखाई।

तो क्या उसने मुझसे झूठ बोला था?

मायरा से पूछता हूँ।

उठकर दरवाजे तक आता हूँ फिर ठिठक जाता हूँ। 10 बज चुके है। इस समय बेल बजाना ठीक नही रहेगा। मीता आएगी तो उससे ही पूछुंगा।

लेकिन वो है कहाँ?

ये अवसाद की गोलियां देखकर मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से भर उठा था। मैंने उसकी ड्रावर को और ढंग से चेक किया जिसमें मुझे सिन्हा के प्रिस्क्रिप्शन की एक फ़ाइल मिली, मीता तब से लगातार ये दवाइयां ले रही है। लगातार उस डॉकटर के संपर्क में है। कहीं वो आज भी तो वहीं नही गयी?

नही, अगर डॉक्टर के जाती तो फ़ाइल साथ लेकर जाती, और अब तक तो वापिस आ जाना चाहिए था।

और ज्यादा उत्सुकता से उसकी ड्रावर चेक करता हूँ।

कुछ हाथ नही लगा। उसकी अलमारी चेक करता हूँ सोच कर सारी अलमारी को बेड पर बिखेर दिया मैने। मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा है, वो अवसाद में कैसे हो सकती है? कोई केवल चिड़चिड़े होने पर या केवल चुप होने पर अवसाद में चला जाता है क्या? ये सिन्हा उसका बेवकूफ बना रहा है और वो बन रही है। मुझसे बिना पूछे, बिना बताए ऐसी गोलियां ले रही है।

और फिर पिछले 3-4 महीने से तो बहुत बदलाव भी आ गया है उसमे, थोड़ी खुश सी भी दिख रही है, घर आते ही मुझसे लिपटने का सिलसिला भी उसने फिर से शुरू किया है, हाँ ज्यादा अब भी नही बोलती है लेकिन उसकी इस स्थिति को अवसाद तो नही कहा जा सकता है।

एक मुस्कान सी बिखरी रहती है उसके चेहरे पर अब तो, अवसाद नही है उसे, न, हो नही सकता। इतना व्यस्त थोड़े ही हूँ मैं खुद में कि उसकी हालत न पहचान सकूं?

सोचते सोचते ही निगाहें झुक सी रही है, क्या वाकई मैं उससे इतना उदासीन हो गया?

अलमारी चेक करते हुए मेरे हाथ एक पास लगा, एडमिशन पास। संगीत अकेडमी का है। इसका मतलब मीता संगीत शिक्षा के लिए कक्षाएं ले रही है।

उसको संगीत का बहुत शौक है, बहुत अच्छा गाती है वो, लेकिन मुझे नही पसंद उसका गाना, सभ्य परिवारों की औरते गाती है क्या? नही, कभी नही।

मेरे मना करने के बाद गाती नही थी वो, और उस हादसे के बाद तो कभी उसे गुनगुनाते भी नही सुना मैंने। तो फिर ये पास? नाम तो उसी का लिखा है।

चार महीने पहले का है, 4 से 6 बजे की क्लासेस का बैच।

ओह्ह, तो इसका मतलब वो आज भी संगीत अकेडमी गयी है। लेकिन वहाँ से भी अब तक तो आ जाना चाहिए था। और उसने मुझे बताया क्यो नही? इतनी बड़ी बात छुपाई मुझसे।

कहीं ये उस सिन्हा का किया धरा तो नही, सुना है मैंने अवसाद को दूर करने के लिए डॉक्टर्स ऐसे वाहियात तरीके अपनाते है। सिर पकड़ कर बैठ गया हूँ अपना, कुछ समझ नही आ रहा है।हर क्षण चिंता बढ़ रही है अब मेरी, रात के 11 बज चुके है। अब तो हद ही हो गयी। क्या करूँ?

उठकर कपड़े बदलता हूँ, अब तो पुलिस स्टेशन जाना ही पड़ेगा। कही किसी मुसीबत में न हो वो। इस शहर का ठिकाना भी तो नही कुछ। हर रोज़ कोई बुरी खबर सुनने को मिल ही जाती है, और फिर मीता को आस पास की जगहों के सिवा बाकी जगहों का पता भी कहाँ होगा?

हो सकता है पता भी हो। जब ये बात छुपाई मुझसे तो क्या पता और कुछ भी छुपाती हो!

सोच में डूबा हूँ कि फ़ोन बजा है, पहली बेल में ही उठा लिया है मैंने, इतनी रात को अनजान नंबर से फ़ोन, मन किसी अनहोनी की आशंका से घिर उठा है। फ़ोन उठाते ही जो आवाज़ और शब्द मेरे कानों में पड़े है ऐसा लगा जैसे किसी ने खौलता शीशा उड़ेल दिया हो। सुनकर धक रह गया हूँ। फ़ोन हाथ से छूट चुका है। हड़बड़ाया सा कार की चाबियां उठा भागा हूं।

मीता का एक्सीडेंट हुआ है, सिटी अस्पताल में मौत से जूझ रही है। पुलिस का फ़ोन था, उसके फ़ोन के अवशेष मिले घटनास्थल पर, उससे सिम निकाल कर मुझे खबर की गई है।

गाड़ी चलाते हुए उसके साथ बिताया पल, उसके बगैर बिताए लम्हे आंखों के आगे घूम रहे है। एक जगह गाड़ी की टक्कर भी हो गयी। गाड़ी बंद पड़ गयी। मुश्किलों से दोबारा स्टार्ट की है। अस्पताल को भाग रहा हूँ।

अस्पताल पहुंच कर मालूम चला कि सिर में गहरी चोट आई है, डॉक्टर ने केस को गंभीर बताया है। ऑपेरशन थिएटर में है अभी, डॉक्टर पूरी कोशिश कर रहे है। मेरी आँखों से झर झर आंसू बह रहे है।

थका सा मैं वही निढाल हो गया हूँ। रह रह कर उसका हंसता मुस्कुराता चेहरा उदास चेहरे में बदलता हुआ मेरी आँखों के सामने तैर रहा है। एक एक पल जब मैंने उसे चोट पहुंचाई, जब मैंने उसे नही सुना, जब मैंने उसे अकेला छोड़ दिया, सब याद आ रहा है।

कैसे मेरी तबियत खराब होने पर मेरी सेवा करती है वो, कैसे एक पल को भी मुझे अकेला नही छोड़ती थी वो, कैसे मेरी हर ज़रूरत को ईश्वर से भी पहले रखती है वो।

मैं थिएटर के बाहर खड़ा बस यही कहता हूं,"मीता जाना नही, मैं जानता हूँ, कभी समझ नही सका तुम्हें, कभी समय नही दिया लेकिन तुमसे इन चंद घंटों की दूरी में तुम्हारे दर्द, तुम्हारी करुणा का अंदाज़ा लगा चुका हूँ मैं। जाना नही मीता, वादा करता हूँ अब न सिर्फ प्यार करूँगा, जताऊंगा भी, वादा करता हूँ अब कभी नही झिड़कूँगा तुम्हे। इन पांच सालों के साथ की कसम है तुम्हे मीता, इतनी बड़ी सज़ा मत देना मुझे मेरे गुनाहों की। सीख लेना तुम संगीत, रख देना सारी रात मुझपर पैर, साथ बैठ कर खाना खाऊंगा अबसे, बालकनी पर भी बैठूंगा तुम्हारे साथ, खूब बातें कर लेना मीता। वादा करता हूँ तुम्हे कभी नही डाटूंगा। हर वो खुशी दूंगा तुम्हे जो अब तक न दे सका। जानता हूँ मैं तुम मेरे जैसी स्वार्थी नही हो, तुम बहुत अच्छी हो, मुझे माफ़ कर दोगी तुम। माफ कर दोगी न मीता?"

सारी रात उसका खून बहना नही रुका है, डॉक्टर्स की पूरी टीम लगी रही है रातभर। मैं घबराया सा कभी डॉक्टर को तो कभी भगवान को देख रहा हूँ। मेरे कर्मो की इतनी बड़ी सज़ा उसे मत दो भगवान, दोषी मैं हूँ लेकिन उसे जीवनदान देदो भगवान। सूरज की किरणें फलक पर फैल चुकी हैं, डॉक्टर्स की टीम बाहर आ चुकी है, मीता की जान बच गयी है। ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ। मुझे छोड़कर कैसे जा सकती थी वो? ये तो केवल उसका तरीका था मुझे सबक सिखाने का।

सुबह 9 बजे उसकी आंखें खुली हैं, मैं सामने खड़ा हूँ उसके। वो अंदर मैं बाहर, इशारे से मुझे अंदर बुला रही है। डॉक्टर की अनुमति ले अंदर चला जाता हूँ। उसके सामने खड़ा हूँ, एक आंसू की बूंद कब मेरी आँखों से उसकी आंख में उतर आयी है, पता नही कर सका हूं। इशारे से मुझे अपने पास बुला रही है। पास जाकर बस इतना ही कह पाता हूँ,"मुझे माफ़ कर दो मीता ..मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ .

मुझे गले लगने का इशारा कर रही है, इस बार बिना हिचके, बिना किसी की मौजूदगी से डरे, बिना उसे आंखे दिखाए उसके गले लग जाता हूं।



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