स्टड!
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मैं हमेशा सोचता हूँ कि आकर्षण क्यों होता है? किस आधार पर? किसी की किस बात पर हम किसी की तरफ़ खिंचे चले जाते हैं मैं कभी समझ न पाया!
यूँ तो ऐसी कई बातें हैं जो समझ के बाहर हैं लेकिन अभी फ़िलहाल इस एक बात को समझने की बड़ी कोशिश है मेरी।लोग कहते हैं कि ख़ूबसूरत चीज़ से आकर्षण होता है। वो तो उन मायनों में इतनी खूबसूरत नहीं!साधारण सी है। कभी नहीं लगा उसकी खुली ज़ुल्फ़ों को देखकर कि बादल की काली घटा छाई हुई है! फिर भी मुझे उसके बाल आकर्षित करते हैं!
लोग कहते हैं कि कपड़ों का ढंग आकर्षित कर लिया करता है, उसके कपड़े तो हमेशा ही बेमेल होते हैं। झल्ली सी, कुछ भी पहनकर आ जाती है। कई बार तो उसके रंग से मेल खाते कपड़े नहीं होते लेकिन फिर भी मैं उसकी ओर आकर्षित रहता हूँ। समझ ही नहीं आता कि उसके कपड़े वजह हैं या उन कपड़ों को पहनने वाली का ढंग है कारण मुझे अपनी ओर खींचने का।
आँखों को आकर्षण का केंद्र बताते हैं सब, आज तक भी उसकी उठी पलकें न देखी मैंने। या तो ज़मीन में गढ़ाए रखती है या किताबों में! न जाने क्या सोचकर खिंचा जाता है ये मन उसकी ओर।लोग मुस्कुराहट के कसीदें पढ़ते हैं। पिछले चार सालों में सबके सामने कभी नहीं मुस्कुराई वो, हाँ कभी कभी कॉलेज के पीछे गेट के पास पड़े गंदे ,मैले-कुचैले से कुत्ते के बच्चों के साथ खेलते हुए उसके दाँतों की पंक्ति दिख जाती है।शायद वो आकर्षित कर लेता है मुझे। पता नहीं! समझ न सका आज तक। अक्सर क्लास में टीचर के पूछने से पहले ही उसका हाथ उठ जाया करता है। और सभी के चेहरों पर हार जाने की कसक साफ़ दिखलाई पड़ती है।
एक होता है हारना, बराबर वाले से हारना। बर्दाश्त है वो भी, लेकिन उससे हारना, क्लास के सबसे कोने में सबसे उपेक्षित सी बैठी वो, जब सवाल का जवाब देने के लिए हाथ उठाती है जो सबके चेहरे पर भारी दुःख होता है। शायद तथाकथित आकर्षण का केंद्र न होने पर भी उससे हार जाना उनके अहम को ठेस पहुँचाने के लिए बहुत होता है।
अब मेरी पूछो तो, मैं बड़ा ख़ुश हो जाता हूँ। टीचर की नज़रों में उसके लिए तारीफ़ देखकर। भले अनजान होती है वो, दोस्तों की टोली से घिरे मुझको वो अकेली रहने वाली, बाकी सबके जैसा ही समझ लेती है।शायद मैं सबके जैसा न होकर भी सभी के जैसा हूँ!न होता तो क्या उससे कह न देता कि अच्छी लगती है मुझे!भले सारी दुनिया के आकर्षण के मापदंडों पर खरी न उतरती है वो लेकिन मेरी आँखें तो उसे कॉलेज गेट के बाहर ऑटो में बैठ जाने तक फॉलो करती हैं, लेकिन हाँ छुपकर!सबको मालूम चला तो मेरा "स्टड" वाला तमगा छिन जाने का ख़तरा है।कारण नहीं पता लेकिन आकर्षण तो है, पुरज़ोर है। शायद कारण न पता होना ही सबसे बड़ा आकर्षण है।
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अक्सर वो हर क्लास में सबसे पीछे ही बैठती थी। जिन लोगों का पढ़ाई से दूर दूर तक कोई नाता न था वो टीचर को इम्प्रेस करने के लिए आगे की सीट्स हथिया लेते थे। और क्लास में उसके आने तक लगभग सभी आगे की सीट्स फुकरों से भर चुकी होती थीं।लेकिन उसको शायद सीट्स से भी फ़र्क़ नहीं पड़ता था। क्लास के कोने में खिड़की के पास आते जाते शोर में भी किस तरह किताबों पर नज़रें गढ़ाई जा सकती हैं, इसकी मिसाल अगर देनी हो तो मैं उसी का नाम लूँगा।
क्लास की बेल बजते ही जहाँ सब कैंटीन की ओर भागते वो वहीं उसी कोने में बैठी सामने ब्लैकबोर्ड पर लिखे नोट्स को पूरा कर लेती या फिर अगली क्लास की तैयारियाँ कर लेती।अजीब ही था, पूरी क्लास में उसका कोई दोस्त ही नहीं था।अमूमन क्लास टॉपर्स के कई दोस्त बन जाते हैं। "फ्रेंड्स" न सही, "फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स" तो बन ही जाते हैं, लेकिन ये अलग ही थी। उसका कोई ऐसा दोस्त भी नहीं था। एक बार, मैं नोट्स के बहाने उस तक पहुँचा भी था, सोचा था कि इसी बहाने शायद कैंटीन का एक कोना हमारा ठिकाना बन जाये लेकिन उसने मुझे मौका ही नहीं दिया।
नोट्स के लिए पूछने पर उसने मुझे एक स्पाइरल पकड़ा दिया अगले दो दिनों में वापिस कर देने की ताक़ीद करते हुए। शायद वो किसी से दोस्ती करना ही नहीं चाहती थी!
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आख़िरी साल बचा था मेरे पास, उसको जता देने का कि मैं उसे पसंद करता हूँ। लेकिन कहूँ कैसे समझ ही नहीं पाता था।एक दिन बड़ी अजीब सी सिचुएशन हो गई, गेट के पास बाइक स्टैंड के पास ग्रुप खड़ा था तो मैं भी उनके ही पास चला गया।अब बातों बातों में अदिति मेरे गले पड़ गई। मैं जितनी कोशिश कर रहा था उसे हटाने की वो उतनी ही करीब आ रही थी। और फिर वो हुआ जो नहीं होना था।उसे मेरे गले पड़े "उसने" देख लिया।पलकें उठी और झुकी ही थीं उसकी और मैं जैसे ज़मीन में गढ़ गया था।उसके पार होते ही अदिति को ज़ोर का धक्का दे मैं वहाँ से निकल गया था। लेकिन उसकी आँखों ने तो वो देख ही लिया था न जो नहीं देखना था।
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पूरे ग्रुप के डर से, अपनी इमेज गिरने के डर को दरकिनार कर और बस उसके प्रति आकर्षण को ही मन में जगह देते हुए मैंने कॉलेज ख़त्म होने से पहले उसे सब कुछ बताने का फ़ैसला किया।मैं जानता था कि कॉलेज ख़त्म होने के बाद फिर शायद मुझे ये मौका शायद ही मिले, या फिर न ही मिले।
दूसरे, अब क्योंकि कॉलेज ख़त्म होने की कगार पर था तो मुझे अपनी बनी हुई "स्टड" की इमेज ख़राब होने का खतरा भी नहीं था। मैं जानता था कि उसके प्रति मेरा वो आकर्षण वक़्त के साथ कभी ख़तम न होने वाला था। मैंने उसे अपने मन की बात बताने के लिए कॉलेज की ही एक पुरानी लैब को चुना। वहाँ आवाजाही कम थी तो इसीलिए अक्सर सभी क्लासेस ख़त्म हो जाने के बाद वो वहीं जाकर पढ़ती थी। मैं कभी समझ नहीं पाया कि वो वहीं क्यों पढ़ती है? जबकि सभी स्टूडेंट्स क्लासेस ख़त्म होने के बाद पिंजरे से छूटे पंछी की तरह कॉलेज से उड़ जाया करते थे, वो वहीं बैठी पढ़ाई करती। कॉलेज टॉपर्स तक को मैंने वहाँ या कहीं भी और, इतनी तल्लीनता से पढ़ते हुए नहीं देखा, जितना कि वो किताबों में गुम रहती थी।
पिछले चार सालों में वो हमेशा टॉप फाइव में रही थी। और जितनी कम रैंक होती थी उसकी उतनी ही वेदना उसके चेहरे पर दिखाई पड़ती थी मुझे। खासकर तब ज़्यादा दुःखी होती थी जब मुझसे कम रैंक आती थी।न जाने क्यों, हमारे समाज में काबिलियत अंकों से आँकी जाती है!
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उस रोज़ तूफ़ान जैसा माहौल था। बड़ी ज़ोर से हवा चल रही थी। लग रहा था मानो आज आसमान जमकर बरसेगा। अपने मन में उसके साथ भीगने की ख़्वाहिश लिए मैं पुरानी लैब पहुँचा। उसके घर जाने का कोई निश्चित समय नहीं था। इसीलिये मैं काफ़ी देर दरवाजे के पास छिपा उसके बाहर निकलने का इंतेज़ार करता रहा लेकिन आज रोज़ के मुकाबले वो काफ़ी देर से भीतर ही थी तो मैंने अंदर जाने का फ़ैसला लिया।
बिना डोर को नॉक किये मैं जब अंदर पहुँचा तो मुझे वहाँ देख वो चौंक सी गई।फिर किताब में ही नज़र गढ़ाए उसने मुझसे पूछा,"यहाँ क्या कर रहे हैं आप?"और मैं इस तरह सिमट गया ख़ुद में गोया वहाँ मेरा होना कोई गुनाह था।बड़ी हिम्मत जुटाते हुए मैंने उससे कहा,"मुझे आपसे कुछ कहना था।"
"जी कहिए।" हमेशा की तरह एक संक्षिप्त उत्तर मेरे सामने था।
"मैं आपसे प्यार करता हूँ।"और अचानक ही वो पैनिक हो गई।
"क्या कह रहे हैं आप? आपने मुझे समझा क्या है? मैं उन लड़कियों की तरह नहीं हूँ जो आपके आस पास मँडराती हैं। जिनके साथ आप अपनी रातें....
छि! आपने ऐसा सोचा भी कैसे?"
दरवाजे को दीवार से पटकती वो एक आंधी की तरह बाहर निकल गई। बाहर बारिश शुरू गई थी और उस बरसते पानी में उसके साथ भीगने के मेरे ख़्याल भी बह गए।उसकी आँखों में जो गुस्सा देखा मैंने क्या वाक़ई मैं उसके क़ाबिल था?
जब मैं इस कॉलेज में आया तो कितने ही दिन अकेला रहा। किसी ने मेरी तरफ़ हाथ नहीं बढ़ाया। मैंने यही पाया यहाँ कि इस जगह उसी का बोलबाला है जो दिखने में फैशनेबल है, जिसका ध्यान पढ़ाई में हो या न हो लेकिन दिखावे में ज़रूर हो। मैं एक मिडिल क्लास लड़का, पढ़ने लिखने में अच्छा लेकिन जेब से खाली, इस हाई फाई कॉलेज में उसकी तरह स्कॉलरशिप पर नहीं आया था। पापा ने कई जुगाड़ लगाकर, मुझे यहाँ पहुँचाया था।
पढ़ने में तो बुरा नहीं था मैं। हाँ उसकी तरह अकेला रहना नहीं आता था मुझे। और जिस जगह पैसा बोलता हो, इमेज बोलती हो वहाँ अगर मैंने इस ग्रुप को जॉइन किया तो क्या ग़लत किया?इस ग्रुप के साथ मुझे एक पहचान मिली। पढ़ाई के अलावा बाहरी दुनिया को जानने का मौका मिला।किस आधार पर उसने ये फ़ैसला कर लिया कि मैं लड़कियों के साथ....
छि! जितना उसके लिए बुरा है ये उतना ही मेरे लिए भी।मैंने कभी किसी लड़की को नहीं छुआ। उसके अलावा मेरी आँखों ने कभी किसी और को नहीं देखा।
लेकिन सिर्फ़ लड़कियों के मेरे आगे पीछे होने और मेरे इस ग्रुप के साथ रहने के आधार पर ही उसने इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा दिया मुझपर?किस आधार पर?
मैंने तो उसे सबसे अलग पाया था, शायद इसी कारण उसकी ओर खिंचा चला गया था मैं लेकिन वो भी सभी की तरह निकली। दिखावे पर यक़ीन करने वाली!
उसी की तरह दरवाजे को दीवार पर ज़ोर से पटकता हुआ मैं बाहर निकल आया और वापिस उसी ग्रुप में मिल गया। अब तक का सफ़र "स्टड" की इमेज में गुज़रा था। आख़िरी के मोड़ को भी इसी तमगे के साथ पार करने का फ़ैसला ले लिया था मैंने।