Neha Bindal

Romance Inspirational

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Neha Bindal

Romance Inspirational

हैप्पी एनिवर्सरी

हैप्पी एनिवर्सरी

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रोज़ की तरह एक आम दिन था, साउथ दिल्ली के उस आम से एरिया के खास से घर का।

रसोई से आतीं खटर पटर की आवाज़ों के बीच पसीने से तरबतर वो, और ऊपर कमरे में, कपड़ों के सिलेक्शन में उलझे पतिदेव, दोनों ही अपने अपने कामों में मसरूफ़ और बेइंतेहा जल्दी में।

वो अपने बड़े से स्पून को दही की उस करी में चला रही थी और साथ ही नज़रें घड़ी की टिक टिक में उलझी हुई कभी गैस स्टोव पर रखे तवे पर पड़ी रोटी पर जा ठहरतीं तो कभी ऊपर कमरे से उतरते अस्त व्यस्त बेटे पर जा ठहरतीं जिसके कि सुबह से रात तक माँ से संबंधित काम ख़त्म नहीं होते थे।

पर आज बात और थी! उस आम सी सुबह को खास बना दिया था बेटे ने माँ के लिए। आज सीढ़ियों से अस्त व्यस्त नहीं एक अच्छी तरह से तैयार और चुस्त बेटा उतर रहा था। आश्चर्य में उसकी उँगली तवे से टकरा गई और उसने तुरंत ही उस उँगली को उठा मुँह में डाल लिया।

वो पास आया और माँ के गले में बाहें डालकर स्लैब पर चढ़ बैठा।

उसने झट से सवाल दागा," आज कुछ खास है क्या?

या फिर सूरज शायद उत्तर से निकल आया है!"

बेटे ने ठहाका लगाया और फिर उन दोनों की ही नज़रें सीढ़ियों से उतरते उस एक और अस्त व्यस्त से इंसान पर ठहर गईं।

पतिदेव( पिता) अपनी टाई में उलझे नीचे चले आ रहे थे और उसने आख़िरी सीढ़ी पर उनके कदम पड़ने से पहले ही तवे से रोटी उतार किचन से बाहर कदम बढ़ा दिया था।

उसके गले में बाहें डालकर उसकी टाई बाँधती माँ को बेटा बड़े जतन से निहार रहा था।

मुस्कुराकर बोला,"शादी के 20 सालों के बाद भी, आप लोग कितने ताज़ा लगते हो।"

दोनों ने उसे कुछ आश्चर्य से देखा तो वह उनकी ओर मुड़ता हुआ ज़ोर से चिल्लाया," हैप्पी 20थ वेडिंग एनीवर्सरी माँ एंड पापा!"

दोनों को ही एक सुखद अनुभूति हुई और दोनों की ही नज़र कुछ झुक सी गई।

वो दोनों ही भूल गए थे।

दोनों ने अपनी झुकी नज़रों को ऊपर किया। टाई बंध चुकी थी।

बेटे ने दोनों को चुप देखकर कहा," अरे यार! अब तो विश कर दो एक दूसरे को!"

पतिदेव झेंप मिटाने के बोल उठे,"अरे बेटा! अब शादी के 20 सालों बाद क्या विश करना! तुम्हारी मम्मी और मैं पुराने हो चुके हैं। बच्चे थोड़े ही हैं जो एक दूजे को विश करें।"

कहते हुए आँखें ख़ुद ही नीची सी हो गईं। उसने अपना बैग उठाया और पतिदेव की बातों को मन में दोहराते और सहमति जताते हुए ऑफिस के लिए निकल गई।

पतिदेव ने भी बेटे को गाड़ी में बिठाया और उसके कॉलेज छोड़ अपने ऑफिस के लिए निकल गए।

रोज़ के जैसे ही आम सी व्यवस्था में दोनों काम कर रहे थे। लेकिन अहसास आज दोनों के ही खास हो चले थे।

वो अपनी पहली मुलाक़ात को याद कर रही थी और ये उलझा था उन रातों में जो बातें करते बीतती थीं।

कितना उत्साह था इन दोनों के बीच!

कभी कभी तो रात पूरी हो जाती लेकिन बातों का छोर, वो सिमट में नहीं आता!

फिर पूरा दिन वो अपने ऑफिस में ऊँघती और ये अपने में! लेकिन रातों को सोने का ख़्याल फिर भी तारी न होता।

3 सालों में इन दोनों ने एक दूजे की रूह को छू लिया था। ये कहती इससे पहले ही, वो समझ लेता। वो करता, इससे पहले ही ये थाह पा लेती।

कभी कभी दोनों ख़ूब हँसते, एक दूजे के ऊपर और कभी एक दूजे के साथ।

जहाँ लोग कहते हैं कि ऑफिस में काम करते लोगों के बीच समय नहीं रहता, वहाँ इन दोनों ने ज़िम्मेदारियों के बीच अपने लिए हमेशा ही समय निकाल लिया।

यहाँ तक कि बेटा भी इन दोनों के उस "कीमती समय"

में दख़ल न दे सका।

रात को उसकी किलकारियों में ही ये अपनी हँसी ढूँढ लेते। हँसी ख़ुशी इन्होंने अपने बच्चे और बाकी की ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए अपना जीवन बाखूबी जिया। और ऐसे जिया की समाज की नज़रों में हमेशा ही एक खुसफुसाहट का कारण रहे।

सब जानते हुए भी पतिदेव हमेशा अनजान बने रहते और जलने वालों को और जलाने की तर्ज पर हर पार्टी में उसकी कमर का पीछा न छोड़ते।

वो कई बार कसमसा जाती और कहती," क्या करतें हो? सब देख रहे हैं भई!" और ये हमेशा सिर को झटककर बोलते," देखते हैं तो देखने दो। इनकी बीवी की कमर में थोड़ी हाथ डालें हूँ भई!"

और फिर कुछ दाँतों की पंक्तियाँ निखर आतीं हवाओं में।

जीवन इसी ढर्रे पर पिछले 19 सालों से चला आ रहा था कि फिर कुछ ऐसा घटा कि समाज को जूती की नोंक तले रखने वाला ये जोड़ा कहीं न कहीं समाज के दबाब में आ ही गया।

हुआ कुछ यूँ कि 19वी सालगिरह मनाने के लिए जब इन्होंने सभी दोस्तों को इकट्ठा किया, तब बेटे के दोस्तों की एक टोली को बेटे से मज़ाक करते और फिर बेटे की आँखों को शर्म से झुकते देख लिया।

जैसे घड़ों पानी पड़ गया हो, इन दोनों ने एक दूजे का हाथ ऐसे छोड़ा जैसे कभी पकड़ा ही नहीं था। प्यार उबलकर बाहर आता लेकिन ये लोग फूँक मारकर उसे भीतर ही दबा देते। चेहरें पर पड़ती शिकन को समझ बेटे ने अपनी अनजाने की ग़लती को भाँप लिया लेकिन वो भी इस झेंप को मिटाने के लिए अब तक कुछ खास कर नहीं पाया।

इस एक रोग कि "क्या कहेंगे लोग" के तले आख़िर ये जोड़ा भी दब गया था।

एक ही घर में रहकर एक दूजे से एक दूरी सी बना ली थी दोनों ने। पास आने का जी भी चाहता तो बेटे की नजरें झट सामने आ जातीं। दोनों के बीच एक उदासीनता ने घर कर लिया। काम करते, प्यार भी करते लेकिन उसको जताना बिल्कुल ही छूट चला था।

ख़्यालातों में उलझे दोनों अपने अपने ऑफिस से निकल गए।

पतिदेव ने आदतन रास्ते में से कुछ फूल खरीदने के लिए गाड़ी रोकी जो कि हर साल का काम था उनका और फिर सहसा ही बेटे का चेहरा आँखों के सामने फिर गया। पैरों ने एक्सीलेटर को ज़ोर से दबाया और गाड़ी बिना फूलों के ही फुर्र हो गई।

उसने भी अपनी हर बार की अपनी,केक खरीदने और साथ ही उनकी पसंदीदा वाइन का बोतल लेने की आदत को पीछे छोड़ घर का रूख़ कर लिया।

दोनों आज साथ ही पार्किंग में घुसे। इत्तेफ़ाक़ ही था कि दोनों गाड़ी से भी साथ ही बाहर निकले।

दोनों ने छुपी निगाहों से इधर उधर देखा और गाड़ी के गेट के पास खड़े होकर आख़िर एक दूसरे को विश किया और "भूल जाने" की माफ़ी माँगते हुए दोनों घर की ओर बढ़ गए।

अपना घर ही अब पराया सा लगता था। हर जगह बेटे की शर्म से झुकी निगाहें पीछा करती थीं। शायद इसीलिये पार्किंग घर से भी सुरक्षित जगह लग रही थी दोनों को।

मन कर रहा था कि वापिस गाड़ी में बैठें और निकल जाएँ किसी ऐसी जगह जहाँ किसी की घूरती आँखें न हों!

पर कहाँ ये मुमकिन था तो आख़िर दोनों ने घर की बेल बजा दी।

काफ़ी देर तक भी दरवाजा न खुला तो उसने पतिदेव को देखा और डुप्लीकेट चाबी से दरवाज़ा खोल दिया।

अंदर जो देखा, तो होश फ़ाख्ता थे।

चारों ओर मोमबत्तियों की रोशनी जगमगा रही थी। दरवाज़े के ठीक सामने उन दोनों की पसंद के गुब्बारे इनके प्रेम की तरह फूले हुए थे। भीतर आते ही टेबल पर पतिदेव का मनपसंद केक, वाइन और उसकी मनपसंद फूलों की लड़ी बिछी थी।

दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देख रहे थे कि तभी लाइट जल गई।

बेटा और कुछ क़रीबी दोस्त सामने थे और आज बेटे की नज़रों में शर्म नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और प्यार था.....


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