गो टू हेल ट्रोल्स
गो टू हेल ट्रोल्स
चौतरफ़ा उसपर गालियों और अश्लील व भद्दे कॉमेंट्स की बरसात हो रही थी। टी वी के हर एक न्यूज़ चैनल पर बस उसी की खबरें थीं। उसने हमेशा ही टी वी पर आने का सपना देखा था, लेकिन वो यूँ, इस तरह पूरा होगा उसने कभी सोचा भी न था। चारो ओर से आती कुछ अनजानी आवाज़ें अब उसका सुकून छीन रही थीं। तीन दिनों से वो इसी तरह घर में बंद थी और अब उससे और नहीं झेला जा रहा था।
वो उठी और मुट्ठी भर नींद की गोलियाँ लेकर किचन की ओर बढ़ गई।
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5 साल पहले ऐसे ही एक दिन वो अम्बाला से मुम्बई की ओर निकली थी।
सिटी ब्यूटी पेजेंट जीतने के बाद उसका आत्मविश्वास आसमान पर था। पिताजी के सामने खड़ी होकर उसने बहुत आत्मविश्वास के साथ कहा था,"आई विल मेक इट बिग पापा। ट्रस्ट मी। गिव मी ओनली वन चांस। आई विल प्रूफ़ माइसेल्फ।"
पिताजी ने उसके सिर पर हाथ रखकर बस इतना ही कहा था,"ये इंडस्ट्री एक दलदल है बेटा, जब फँस जाओ तो हाथ पैर मारने की जगह, शांति से बैठकर इससे बाहर निकलने और इसे जीतने के विषय में सोचना। तुम्हें मंज़िल ज़रूर नज़र आ जायेगी।"
माँ पिताजी के आर्शीवाद और ढेरों अपेक्षाएँ लिए वो उन हज़ारों लोगों में शामिल होती हुई मुम्बई चली आई, कुछ बड़ा करने। कुछ बनने, कुछ हासिल करने।"
मुम्बई ट्रेन से उतरते ही उसकी सहेली ने उसका ज़ोरदार स्वागत किया," आख़िर! आ ही गई तू भी। चल अब दोनों साथ में ऑडिशन्स देंगे। बड़ा मज़ा आएगा यार!"
दोनों अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान लिए बढ़ गईं एक वीमेन्स हॉस्टल की तरफ़।
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4 साल बाद, एक बड़े आलीशान सेट पर एक जाने माने अभिनेता के सामने खड़ी होकर वह अपनी पहली हिंदी फ़िल्म के डायलॉग्स बोल रही थी। आँखों और लहजे में इतना आत्मविश्वास था कि सामने खड़ा पूरी तरह परिपक्व हो चुका अभिनेता भी गच्चा खा रहा था। एक ही टेक में शॉट डन करके वोअपनी वैनिटी के बाहर पड़ी चेयर पर आकर बैठी तो उस परिपक्व अभिनेता के कदम ख़ुद ब ख़ुद उसकी ओर बढ़ गए।
" हाय! क्या ख़ूब शॉट दिया है तुमने, आई मीन आपने। बहुत ही बढ़िया।"
वो बस उसे देखकर मुस्कुराई। इस इंडस्ट्री और इसकी हाय हेलो से अब तक बख़ूबी पहचान कर चुकी थी वो।
जब इस शहर में नई आई तब लोग कब हाथों से बिस्तर तक पहुँचने की चाह रख लेते थे, उसे कभी समझ ही न आया। पहले पोर्टफ़ोलियो शूट के दौरान, अपने ही कैमरामैन की चुभती नज़रों और फिसलते हाथों से इस कद्र डरी थी वो कि उसके गाल पर तमाचा रसीद कर सीधे अपने हॉस्टल भाग आई थी।
"ओह, कम ऑन यार! इट्स नॉर्मल हेअर। इतना तो तुझे झेलना ही होगा।" उसकी सुलगती आँखों पर पानी डालती हुई उसकी सहेली बोली।
"क्या तूने झेल लिया?"
"ऑफ कोर्स, तुझे क्या लगता है, बिना झेले ही इतने फैशन शो कर दिए मैंने?"
उसने उसे घूरकर देखा तो वो बोली,"ये अम्बाला नहीं है मेरी जान। यहाँ ये शर्म का लबादा उतार फेंकने पर ही काम मिलता है।"
उसकी बात सुनकर उसने अपने कपड़ों को और मजबूती से थाम लिया। ये मजबूती शिखर तक पहुँचने में भी बनी रही।शिखर तक के सफ़र में कब अपनी शर्म उतार चुकी सहेली का हाथ छूटा उसने सोचने की ज़हमत न उठाई।
उसने अपने घुटने कभी नहीं टेके। टैलेंट और ख़ूबसूरती की अद्भुत मिसाल थी वो। 3 सालों तक ऑडिशन्स में चप्पल घिसते घिसते, वीमेन्स हॉस्टल से किराए के फ़्लैट में रहकर। किसी दिन भरपेट तो किसी दिन फांके कर उसने इस फ़िल्म का ऑडिशन हासिल किया। कास्टिंग डाईरेक्टर ने जब सीन के बहाने उसे छूने की कोशिश की तो उसके पैरों को अपनी हील से कुचलकर और अपने इस फ़िल्म के सपने को लगभग स्वाहा कर वापिस अपने फ़्लैट तक चली आई थी वो।
अगले दिन ही मीडिया में उसके इस कांड के चर्चे थे। मी टू मूवमेंट के कारण उसे बहुत फ़ुटेज मिला और इसी सब चक्कर में हाथ से निकल चुकी फ़िल्म उसके हाथों तक दोबारा चली आई।
इस मुश्किल से मिले मौके को उसने लपककर पकड़ लिया और बढ़ा दिए कदम अपनी पहली सफलता की ओर।को एक्टर, डाईरेक्टर और अन्य सभी से एक निश्चित व सभ्य दूरी रखते हुए उसने अपनी पहली फ़िल्म पूरी की। प्रोमोशन्स, मीडिया सब कुछ में हलचल थ
ी। एक इंडस्ट्री से बाहर की लड़की, इतने दुरुस्त इरादें लिए यहाँ तक चली आई थी। किसी को यक़ीन नहीं हो रहा था। ख़ुद उसके लिए भी ये एक अनदेखे सपने जैसा ही था जिसे वो अब खुली आँखों से जी रही थी।
मीडिया में उसकी इमेज एक शालीन इंसान और मजबूत अभिनेत्री की बन चुकी थी। पहली ही फ़िल्म ने उसे बेशुमार सफलता दिलाई जिसका नतीजा उसका ये बीच फेसिंग फ्लैट था। जिस दिन अपने इस फ्लैट में अपने गर्व से भरे माँ पिता के साथ उसने कदम रखा था, एक अजीब सी शांति थी उसके मन में।
वेलकम पार्टी में उसकी वही सहेली जब उससे टकराई तो उसकी नज़रें इससे मिल नहीं रहीं थीं। अपना लिहाज़ का लबादा उतार फेंकने पर भी मनचाही सफ़लता उसे हाथ न लगी थी और इसने अपनी इज़्ज़त को मजबूती से थामकर भी ये मुक़ाम हासिल कर लिया था।
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एक फ़िल्म की सफ़लता ने उसके हाथ कई प्रोजेक्ट्स से भर दिए। जितने प्रशंसक मिले उतने ही जलने वाले भी। लेकिन उसने अपना एक दायरा सीमित किया था, उसी दायरे में ख़ुद को समेटकर रखती थी। पार्टीज, शोज़ इन सबसे एक निश्चित दूरी ही बनाकर चली थी अब तक। केवल बहुत ही ज़रूरी पार्टीज़ में ही जाना हो पाता। ऐसी ही एक पार्टी में उससे वो टकराया था। एक एस्पायरिंग राइटर!
उसकी ख़ूबसूरती पर कसीदें गढ़ने वालों से अलग उसने उसकी आँखों की चमक पर पंक्तियाँ लिखीं और इन्ही पंक्तियों के सहारे कब उसके दिल तक उतर आया, किसी को पता न चला!
अब उसके फ़्लैट से उसकी फ़िल्मों के सेट तक, वो हर जगह उसके आगे पीछे मंडराता नज़र आता। इसके प्यार के एवज़ में उसे कई फ़िल्मों के कॉन्ट्रैक्ट मिले। धीरे धीरे एस्पायरिंग से स्टेब्लिश्ड बन गया और अब शुरू हुआ पार्टीज़ और शोज़ का सफ़र। ये उसके प्यार में ऐसी डूबी की होश ही न रहा कि कहाँ जा रही है, किन लोगों के बीच उठ बैठ रही है!आँख खुलीं उस रोज जिस रोज़ पुलिस ने उसे रेव पार्टी से पकड़ा। एक साधारण सी लगती पार्टी में ड्रग्स और जिस्म का कारोबार हो रहा था और उसे ख़बर भी न थी।
मीडिया के आगे मुँह छुपाती वो जाकर पुलिस जीप में बैठ गई। जिसके प्यार में अंधी होकर यहाँ तक पहुँची थी, वो अब दिखाई भी नहीं दे रहा था।
एक जानकर वकील के सहारे, वो लॉकअप से तो बाहर थी लेकिन अब तक की उसकी बनी हुई इमेज पर कुठाराघात हो गया था।
"भोली भाली दिखती एक्ट्रेस रेव पार्टी से बरामद, ड्रग्स लेने के आरोप!
"हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और! बड़ी एक्ट्रेस का ड्रग्स मामले में बड़ा खुलासा।"
अखबारों के पेज इन खबरों से भरे पड़े थे।
यहाँ तक कि वो लड़का, जो इस सबका सूत्रधार था, उसने भी अपना इल्ज़ाम इसपर डाल इतिश्री कर ली थी। उसका ट्विटर एकाउंट भद्दे ट्रोल्स से भरा हुआ था और मीडिया तो जैसे इस एक ख़बर के आने का ही इंतेज़ार कर रही हो। किसी ने उसकी ब्लड रिपोर्ट्स आने तक का इंतेज़ार करना उचित नहीं समझा था और उसे ड्रग्स माफ़िया तक से जोड़ दिया था। उसके निर्दोष होने या न होने की किसे फ़िक्र थी? स्टोरी तो आख़िर मिल ही गई थी।
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हाथों में नींद की गोलियाँ और मन में तूफान लिए वो किचन में चली आई। एक ग्लास पानी निकाला और गोलियाँ मुँह में देने चली कि जेब मे पड़ा फ़ोन झनझना उठा।
"पापा कॉलिंग!"
उसके हाथों से गोलियाँ गिर गईं।
इन तीन दिनों में उसने अपना फ़ोन बन्द कर दिया था। आज एक अंतिम सुसाइड नोट छोड़ने के लिए ही खोला था और खुला ही छोड़ दिया था। उसने फ़ोन तो काट दिया लेकिन उसके पिता के शब्द उसके कानों में गूँज गए," ये इंडस्ट्री एक दलदल है बेटा, जब फँस जाओ तो हाथ पैर मारने की जगह, शांति से बैठकर इससे बाहर निकलने और इसे जीतने के विषय में सोचना। तुम्हें मंज़िल ज़रूर नज़र आ जायेगी।"
बहुत देर तक किचन की खिड़की से बाहर गहराई रात को वो घूरती रही। और थोड़ी ही देर बाद सूरज की पहली किरण उस खिड़की को पार कर उसकी आँखों तक गुज़र गई और उसे याद आ गया एक वाक्य-"सूर्योदय से ठीक पहले ही रात सबसे गहराई होती है।"
होंठों पर भीनी मुस्कान लिए उसने अपना टिवटर एकाउंट डिलीट किया और मन ही मन भुनभुनाई,"गो टू हेल ट्रोल्स!"