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Pradeep Pokhriyal

Abstract

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Pradeep Pokhriyal

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हसरत

हसरत

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उस रोज़ कुछ अद्भुत घटा , जमीन उठी , पिलपिली हुयी और फट पड़ी । कुछ कीचड़ निकला और बह निकला ढलान में , लेकिन कीचड़ का निकलना बंद न हुआ । कीचड़ का गाढ़ापन कम होने लगा, समय बीतता रहा और कीचड़ पतला होता रहा । अब कीचड़ पानी में तबदील हो गया , पानी बहाने लगा , अब तो नदी बन गयी ।

उस रोज़ केवल नदी का जन्म ही नहीं हुआ था । नदी के साथ साथ जन्म हुआ था किनारों का, जुड़वां किनारे ।

नदी उत्तर से दक्षिण की ओर बह रही थी, लिहाजा किनारों का भी अघोषित नामकरण हो गया । एक था पूर्वी किनारा दूसरा पश्चिमी किनारा । जैसे जैसे नदी बढती रही , किनारे भी बढ़ते रहे। ये किनारे कभी कहीं जाते न थे , न ही उन्हें इतनी चिंता थी की कभी अपने पैरों को भी देख लें ।

किनारे तो बस किनारे ही थे सर से पांव तक किनारे । वो दोनों साक्षी बने रहते , सब कुछ देखते केवल देखते थे । वे किसी के काम में दखल न देते । कभी जानवर आते पानी पीते चले जाते , कभी इंसान भी ऐसा करते । कभी कोई आता मछली पकड़ता , चला जाता ।

जन्म से ही जाने कौन सा ज्ञान प्राप्त था इन्हें , जब कोई चिता जलती तो भी विचलित न होते । प्रेमी युगल आकर बैठते तमाम योजनाएं बनाते , पर किनारे उत्साहित न होते ।

ये किनारे भी बातें करते हैं , जब पूर्वा चलती तो एक, पछवा चलती तो दूसरा किनारा। ये कभी एक दूसरे की बात न काटते बस हाफ डूप्लेक्स कम्युनिकेशन करते। पूर्वी किनारे ने कहा "हम कभी मिलते नहीं बस मौसम दर मौसम बात कर लेते हैं"।

अपना समय आने पर, पश्चिमी किनारे ने जवाब दिया, "चाहता तो मै भी हूँ, लेकिन होगा कैसे? "। 

कुछ लोगों ने नदी पर एक पुल बनवा दिया , यह पुल नदी के दोनो किनारों को जोड़ता था।

पश्चिमी किनरा खुश था, चलो हम मिल पाये, लेकिन पूर्वी किनारा सन्तुष्ट न था। वह कहता "हमारा एक हिस्सा तो जुड़ा पर हम मिल न पाये"। पश्चिमी किनारे ने कहा , "देखो लोग बोलते हैं, यह पुल नदी के दोनों किनारों को जोड़ता है" । पुल ने भी बहुत नाम कमाया – चौड़ी नदी का पुल ।

पुल बनने से गाँव के लोग भी खुश थे। अब वे दूसरे गाँव आसानी से जा सकते थे । कबूतरो को तो नया घर ही मिल गया था । सब खुश थे, बस खुश न था तो पूर्वी किनारा।

समय ने भी अपने दांव खेलने शुरु कर दिये, नदी धीरे धीरे सूखने लगी, किनारे पास आने लगे। लोगों ने किनारों पर आना बंद कर दिया, पशु भी कम आने लगे। पूर्वी किनारा खुश था उसे लगा अब हम पास आ रहे हैं , सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो हम दोनों किनारे मिल पयेंगे ।

पश्चिमि किनारा दुखी था, लोगों कि चहल पहल, बच्चों का आना हिरनों की कुलाँचें सब खोने का डर , उसे अधूरा किये जा रहा था। आखिर वो समय भी आ ही , जब दोनों किनारे मिल गये । नदी पूरी तरह सूख गयी।

नदी अब सूखी नदी बन गयी किनारे तो बचे ही नहीं । पुल अब भी था, लेकिन सूखी नदी का पुल दो किनारों को नहीं दो गाँवों को जोड़ता था।


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