धन्यवाद
धन्यवाद
शहर में चर्चा थी तो केवल नए मकान की। ऐसा नहीं था कि मकान बहुमंजिला हो, संगमरमर के हो, या भवन निर्माण में कोई नई शैली हो, फिर भी अद्भुत था।अब अदभुत यह था कि वह मकान था कामचोर का।
उसका नाम ही कामचोर पड़ गया था। असली नाम कोई जानता न था। दो साल पहले तक के लक्षणों से ही उसका नाम कामचोर पड़ गया था। पहले उसके आस एक झोपड़ी थी, जो उसके पिता ने बनायी थी पिता के जीते उसे काम करने का कोई कारण नज़र न आया।पिता के जाने के बाद आदत रही न योग्यता।
रिश्तेदारों ने कुछ समय तो खिलाया लेकिन धीरे धीरे कन्नी काटने लगे। अब वह मोहल्ले पड़ोस के ऊपर निर्भर रहने लगा। लोग दया करके उसे खाने को कुछ दे देते, वह खा लेता। हर चीज़ की उम्र होती है तो दया की भी उम्र हो चली, दया तिरस्कार में बदल गयी। लेकिन मुफ्त के खाने की उसे ऐसी लत लगी कि अब कमा के खाना उसे बोझ लगाने लगा था।
उसी मोहल्ले में एक दुकानदार था, जिसकी परचून की दुकान थी। किसी ने भी उसे दान करते कभी देखा न था। पाई - पाई का हिसाब ऐसे जुबानी याद रखता कि कैलकुलेटर की जरूरत ही न पड़े। उधार कभी देता न था चाहे अकाल क्यों न पद जाए।
कामचोर कभी किसी के दरवाजे पर जाता कभी किसी के। कोई बासी रोटी दे देता तो खा लेता श्राद्ध में लोग कुत्ते को भोजन डालते, कामचोर उसे भी खा लेता।
एक दिन कामचोर दुकानदार के पास पहुंचा दुकान में कोई ग्राहक न था सो दुकानदार कामचोर तो ध्यान से देखने लगा। कामचोर की देह बिलकुल मरियल हो चली थी। दुकानदार ने उसे अपने पास बुलाया और कहा " तुझे खाना चाहिए मै, तुझे भरपेट खाना दूंगा। मै एक व्यापारी हूँ जोखिम उठा सकता हूँ,लेकिन मै तुझे खाना फ्री में नहीं दे सकता "।
दुकानदार ने उसे दुकान के आगे सफाई करने को कहा। कामचोर भूख से बेहाल था, मरता क्या न करता, उसने पांच मिनट तक सफाई की फिर थक कर निढाल बैठ गया।
दुकानदार ने उसे अच्छा खाना खिलाया, फिर शाम को आने को कहा। जो देखता आश्चर्य में पड़ जाता, दुकानदार वस्तुओं को निखारने में निपुण था कामचोर तो फिर भी इंसान था।कामचोर की भूख शाम को फिर उसे दुकानदार के पास खींच लाइ। अब दुकानदार ने उससे दुकान की सफाई करवाई। कामचोर को भोजन करवाया और कुछ पैसे भी दिए।
पहली बार कामचोर ने कमा कर खाया था, उसे अच्छी नींद आयी। अगले दिन बिना बुलाये ही वह दुकानदार के पास पहुँच गया, दुकानदार ने उसे कुछ सामान दिया, जो किसी ग्राहक के घर पहुंचाना था। कामचोर ने यह काम भी कर दिया, अब दुकानदार ने उसे खाना नहीं दिया बल्कि कुछ पैसे दिए। सिलसिला चल पड़ा दुकानदार जो पैसा देता उस पैसे से कामचोर खाना खाता बचा हुआ पैसा जमा करता।
अब वह कामचोर न रहा, लेकिन पुराने करम आसानी से पीछा नहीं छोड़ते लिहाजा नाम तो कामचोर ही रहा। कामचोर की बचत रंग लाने लगी, वह अच्छे कपडे भी पहनने लगा था। झोपडी से मकान भी बन गया था। अपने इस कायाकल्प के लिए एक दिन वह दुकानदार के पास पहुंचा और धन्यवाद ज्ञापित करने लगा।
दुकानदार ने कहा, " धन्यवाद मत कहो, इससे तुम्हारे मन में मुक्त होने का अहसास आएगा, तुम फिर से कामचोर हो जाओगे। जीवन के हर क्षण को ऋण मान कर चलो, इस ऋण को उतारने का प्रयास करो, धन्यवाद वचन से नहीं कर्म से होना चाहिए "।
