Pradeep Pokhriyal

Inspirational Classics Abstract

5.0  

Pradeep Pokhriyal

Inspirational Classics Abstract

एतदपि गमिष्यति

एतदपि गमिष्यति

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मेरा शहर मंदिरों के लिए प्रसिद्द है । बचपन में मैं एक प्रतिभावान रटने में कुशल विद्यार्थी था । तब मानसिक स्थितियों का पता भी नहीं था,रटने में प्रवीण को ही प्रतिभावान समझा जाता था , शायद आज भी । पाँचवीं कक्षा में उन दिनों बोर्ड की परीक्षाएं हुआ करती थीं ।मै कक्षा में प्रथम आया , स्कूल बदला स्तिथियाँ भी बदल गयीं । 

आसपास के लोग ताने देने लगे , वे कहते थे " तुझे फर्स्ट आने का घमंड हो गया "। बात कान से जाती है लेकिन असर दिमाग पर करती है , ये बात मुझे कुंद करने लगीं थीं । फर्स्ट आना तो छोड़िये पास भी बमुश्किल हो पता था । नौवीं कक्षा में केवल तीन स्ट्रीम होती थीं , आर्ट साइंस या कॉमर्स तो मेने साइंस लिया ।

क्लास के पहले दिन ही मुझे फैशन समझ आ गया, स्कूल में अन्वेषण अपराध था , केवल वही उत्तर दीजिये जो आप को बताया गया हो । नए तरीके से सही उत्तर पर भी दंड का प्रावधान था ।पास होना है , तो पर्सनल ट्यूशन पढ़ो ।  आर्थिक स्तिथि ऐसी थी की स्कूल की फीस देना मुश्किल था , पर्सनल ट्यूशन तो , हथेली पे जौ उगाने जैसा था । हमारे मैथ के टीचर ने भरी क्लास में मुझे कहा "बेटा मैथ छोड़ दे , तेरे वश की बात नहीं है "। टीचर को जवाब देता तो स्कूल में भी पिटता और घर में भी ।

बिना किसी कारण के अपमानित होकर , मैं एक दृढ़ निश्चय के साथ घर पंहुचा । मैंने निश्चय किया ," अब तो मैं ऍम एस सी मैथ से ही करूंगा " । आज मैं मैथ , कम्प्यूटर और शिक्षा शास्त्र में स्नातकोत्तर हूँ ।

परिस्तिथियाँ तो सदा ही विषम होती हैं । सरकारी नौकरी लगी ही नहीं । फिर मुझे ज्ञानी लोग मिलने लगे जो मुझे मेरी कमियां बताते , उन्हें कैसे दूर करना है, जिक्र भी नहीं करते । कुछ कहते आप की शुरुआत तो अच्छी होती है लेकिन उपसंहार अच्छा नहीं होता ।कुछ कहते आपका विषय का ज्ञान तो ठीक है , लेकिन सामान्य ज्ञान शून्य है । कुछ कहते जब आप को पता है चयन नहीं होगा तो प्रयास क्यों करते हो ।

मैं जानता हूँ कि मेरी कमजोरी क्या है , मैं यह भी जानता हूँ कि मेरा चयन नहीं होगा , लेकिन राजस्व बढ़ाने में एक बूँद ही सही मेरा योगदान तो होगा, मुझे हरा कर ही सही कोई तो जीतेगा ।

फिर मैंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया , मैं कंप्यूटर के क्षेत्र में आ गया , एकाएक मुझे लगा में इसके लिए ही बना हूँ । अब मुझे छोटी छोटी उपलब्धि पर प्रशंसा मिलाने लगी थी ।

एक रोज़ विज्ञानं प्रदर्शनी का निर्णायक बन कर जब में अपने ही पुराने कॉलेज पहुंचा , वही मैथ के सर भी निर्णायक मंडल में थे । वो बड़े प्यार से मिले , ढेर सारा आशीर्वाद दिया । मुझे लगा गणित की क्लास तो अब शुरू हुयी है । मेरे साथ जो हुआ अच्छा हुआ , उसी का परिणाम है कि पढ़ने और सीखने की ऊर्जा आज भी विद्यमान है । परिस्तिथियाँ अनुकूल होती तो शायद ठहर गया होता । 


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