छदम ज्ञान
छदम ज्ञान
राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी, कि उसे अपने महल के लिए एक योग्य रसोइए की जरूरत है। बस फिर क्या था, एक से बढ़ कर एक ख़ानसामे लग गए होड़ में।
ऐसा नहीं था कि महल में रसोईया नहीं था, एक था बहुत अच्छा खाना बनाता था, कभी शिकायत का मौका भी नहीं देता था। लेकिन बात तो योग्यता की थी, रसोइए ने पाकशास्त्र तो सीखा था लेकिन परम्परागत तरीके से। राजा को आधुनिक खानसामा चाहिए था। अब राजा हो या रंक भेड़ बनने के लिए कहाँ इंजन लगता है। दरबारी तो होते ही ताल मिलाने के लिये हैं। सो यहाँ भी ऐसा ही हुआ, राजा के आदेश को अक्षरशः विज्ञापित कर दिया गया।
खानसामों के साक्षात्कार के लिए विशेष समिति का गठन किया गया। महल के लिए काम हो रहा था, कोताही का तो प्रश्न ही नहीं उठता। आधे आवेदन तो केवल इसलिए निरस्त कर दिए गए क्योंकि वे महामंत्री द्वारा निर्धारित संस्थाओं से सम्बद्ध नहीं थे। वेतन की तो क्या कहिये साहब ? प्रत्येक अभ्यर्थी राजकीय सेवक बनना चाहता था। पूरे राज्य में सुगबुहाट हो रही थे, चर्चा गर्म थी। मापदंडों की चर्चा हो रही थी जो जानता था वो भी बोल रहा था और अनजान भी। कुछ नियम तो महामंत्री ने बनाये थे, कुछ नुक्कड़ों में बन रहे थे। मंदिरों और पंडितों की आमदनी अचानक बढ़ गयी थी।
पहले चरण में अभ्यर्थी को राज्य के भूगोल की परीक्षा देनी थी, दूसरे चरण में राज्य के इतिहास की, तीसरे चरण में अर्थशास्त्र। जो पहले चरण में उत्तीर्ण होगा वही अगले चरण में शामिल होगा अंतिम चरण में पाकशास्त्र की परीक्षा होनी थी। चारों चरणों में उत्तीर्ण होने के बाद, चयनित व्यक्ति का साक्षात्कार होना था और साथ ही उसके प्रमाण पत्रों की वैद्यता की जाँच भी होनी थी। निर्धारित समय भी आ ही गया, अपनी - अपनी योग्यता, घबराहट और कौतुक को लेकर अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी। आखिर एक नयनतारा चयनित हुआ।
वाह ! महामंत्री की ख़ुशी का ठिकाना न था, आखिर वो हीरा जो ढूंढ लाया था। राजा ने महामंत्री को बधाइयों और परितोषिकों से लाद दिया। राजा ने उस संस्था को भी राजकीय सहायता देने की घोषणा की, जो राजकीय सेवक बनाने में सक्षम थे। आखिर नयनतारा ने राजा की शर्तों को स्वीकार करते हुए पदभार ग्रहण किया। खाना तो अब भी पुराना खानसामा ही बनाता था।
नयनतारा खानसामा कभी राजा के सैनिकों की, कभी अस्तबल में घोड़ों की, कभी तालाब - बवावड़ियों की गणना करता। नयनतारा तो विश्लेषण करता था, प्रश्न करता था। उसकी शिक्षा दीक्षा उसे ऐसी रोटी बनाने की आज्ञा नहीं देती थी, जिसका उसे क्षेत्रफल, व्यास, आयतन और मोटाई ज्ञात न हो। वो ऐसी दाल कैसे बनाने दे सकता था जिसकी उसे सांद्रता ज्ञात न हो।
अब खाना देर से बनने लगा था।