याचक
याचक
अब वो नहीं आता, कारण तो नहीं पता, लेकिन आदत पड़ गई थी। ये सिलसिला लगभग बारह साल पहले शुरू हुआ था।एक भिखारी बहुत ऊँची और बेहद कर्कश आवाज भगवान की दुहाई देकर भीख मांगते हुए हमारी गली में आया।सफेद साफ सुथरे कपड़े पहने, सफेद साफा सिर पर बाँधे हाथ में एक लाठी लिए, वो हर घर से भीख मांगता था ।गज़ब का अंतविश्वास था उसके अन्दर, किसी भगवान का नाम या पर्यायवाची उसे पता नहीं था। " जय हलुमान, जय घनसागर" बोल कर वो मंगलवार को माँगता था । वो किसी को दुआ नही देता था, उसका एक सूत्रीय कार्यक्रम था, बकवास करो , पैसा लो आगे बढ़ो।
" गंगा मैया तुम्हारी इच्छा करें " , बोल कर भी उसे दान मिल रहा था। उसे व्याकरण की क्या जरूरत थी?
उसने दो या तीन दिन के अंतर में आना शुरू कर दिया, ग्रामीण सब जानते थे, लेकिन याचक को टोकते नही थे। उसे भी आनंद आने लगा था, उसने हमारे गाँव को अपनी आजीविका का उपकरण बना लिया।
अब वो धूमिल कपड़ों में भी आ जाता, अपना मनोरथ पूरा करता। एक रोज एक मजदूर दीवार की चिनाई कर रहा था, उसी समय उस याचक का भी आना हुआ।अब तो याचक का गुस्सा सातवें आसमान पर था, " तू पागल है क्या? मेरे कपड़े गन्दे करेगा? " वो मजदूर पर चिल्लाने लगा ।
मजदूर हतप्रभ था, एक छींट भी भिखारी के कपड़ों पर न लगी थी। शोर सुनकर ठेकेदार आया " बाबा तुम्हें शर्म नहीं आती ?, सन्यासी हो कर अनावश्यक क्रोध करते हो"। ठेकेदार की धमकी भरी आवाज़ ने भिखारी को चोंका दिया।
इस गाँव में ऐसी प्रतिक्रिया की उसे आशा ही न थी, वह एकाएक धार्मिक हो गया, बोला, " हम तो फ़क़ीर हैं, अपनी मौज में जा रहे थे "।ठेकेदार ने अपनी जेब से 500 रुपए का करारा नोट निकाला औऱ बोला, " तू मुझे ये बता घनसागर क्या होता है? मै तुझे ये 500 रुपये अभी दे दूँगा ।"
भिखारी को काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो आई, लेकिन व्यापार की समझ तो बढ़ चुकी थी अतः वह बोला " मुझे पैसा का लोभ नही है। "
ठेकेदार ने कहा " लेकिन मुझे भगवान पर श्रद्धा है, तू ज्ञान गुण सागर बोल दे, मैं 500 रुपये दे दूँगा" ।
भिखारी लौट गया, केवल गली से ही नही गाँव से भी बाहर चला गया, दस- बारह दिन तक दिखाई न दिया।शिक्षा तो दोनों स्तिथियों में थी, पहली स्थिति में
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहूं मगन जाई।
उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाई ।।
इस स्थिति का लाभ, भिखारी ने पूरी कुशलता से उठाया।दूसरी स्तिथि में ठेकेदार ने समझा दिया कि " दान भी सुयोग्य पात्र को ही दिया जाना चाहिए" ।