Pradeep Pokhriyal

Abstract Children Stories Inspirational Classics

4.9  

Pradeep Pokhriyal

Abstract Children Stories Inspirational Classics

भोला का साहित्य

भोला का साहित्य

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एक समय किसी गाँव में एक भोला किसान रहता था । ऐसा लोगों ने उसे बताया था की उसके खेतों के कारण वह एक किसान ही है ।एक बार गाँव में मेला लगा, बहुत बड़ा मेला । मेले में कई प्रकार की दुकानें लगी थीं , कई खेल थे , कई प्रकार की प्रदर्शनियाँ थीं । आज खेत में काम भी  था , सो भोला भी चल पड़ा मेला देखने । सब कुछ मन को मोह लेने वाला था । दुकानों की आभा भोला को मन्त्र मुग्ध कर रही थीं । जिस पंडाल में भोला जाता वही बीस लगने लगता , अभी दो पल पहले जिसे बीस कहा था वो उन्नीस हो जाता था । कहीं जलेबी छन रही थीं , कहीं जादू के खेल चल रहे थे , कहीं बन्दूक से गुब्बारे पर निशाना लगाया जा रहा था तो कहीं मौत के कुएँ में गाड़ी चलायी जा रही थी । 

अचानक भोला की नज़र एक पंडाल पर गयी , ये कुछ अलग पंडाल था । पूरी तरह से ढका हुआ केवल एक परदे की ओट से अंदर जा सकते थे , मुफ्त में नहीं टिकट लेकर । फिर तो भोला का विस्मय कौतूहल में बदल गया ।परदे वाले पंडाल का रहस्य उसे उकसाने लगा । अब तो भोला ऐन पंडाल के सामने था , उसने पंडाल का नाम पढ़ा "शीश महल" । "इस शीश महल की माया को तो जानना ही होगा ", भोला ने पक्का इरादा कर लिया । टिकट खिड़की से टिकट ले कर भोला लाइन में खड़ा , अपने नम्बर का इंतज़ार करने लगा । इस पंडाल की ऐसी व्यवस्था थी की एक बार में केवल एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता था । 

एक एक व्यक्ति के अंदर जाने पर भोला के मन में कौतुक के रहट चल रहे थे ।अखिर उसका भी नंबर आया , अब वो परदे की ओट से पंडाल में दाखिल हुआ , अंदर तो शीशे ही शीशे लगे थे , सब पंक्तिबद्ध । इतने सरे दर्पणों का क्या मतलब हो सकता है , वह सोच ही रहा था की आवाज़ आयी "आगे बढ़ो "। भोला आगे बढ़ा और प्रत्येक दर्पण में अपना प्रतिविम्ब देखने लगा । ये विचित्र था , हर दर्पण में अलग ही प्रतिविम्ब दिखाई देता । कहीं सिर बहुत बड़ा, कहीं बिलकुल ठिगना, कहीं अतिशय लम्बा कहीं मोटा कहीं पतला । 

पण्डाल से बहार आ कर भोला असमंजस में था, उसने जितने प्रतिविम्ब देखे उनमें से उसका वास्तविक प्रतिविम्ब कौन सा था? उसके घर पर भी तो दर्पण है, तो अभी तक सच्चा दर्पण कौन सा है ? दर्पण तो सभी असली ही थे, तो असली प्रतिविम्ब किसका मानूँ ? ये मेला भोला के लिए तूफ़ान बन गया । अब मेले की रमणीयता समाप्त हो चुकी थी । भोला घर लौट आया अब उसे तस्सली थी , " मैं वही प्रतिविम्ब देखुँगा जो मेरा अपना दर्पण मुझे दिखायेगा " । 


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