संजय असवाल

Abstract Classics

4.5  

संजय असवाल

Abstract Classics

हम साहित्यकार और हिंदी साहित्य..

हम साहित्यकार और हिंदी साहित्य..

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मानव अपनी मनोभावनाओं,कल्पनाओं को विविध विधाओं में समय समय पर व्यक्त करता आया है। साहित्य उन भावों, विचारों को प्रसारित करने का एक सुगम माध्यम है। साहित्य और मानव एक ही नाव पर सवार हैं। भावनाएं साहित्य के दर्पण द्वारा प्रतिबिंबित होती है तथा समाज में होने वाली हर घटना,कारक,हर पक्ष,आयाम को मूर्त रुप प्रदान करती है।

मानव एक सामाजिक प्राणी है, समाज में घटी हर घटना साहित्य द्वारा मानव के सामाजिक संबंधों को दृढ़ता देने का पुनीत कार्य करती है। साहित्य विभिन्न गद्य पद्य कृतियों का साझा संग्रह है जिसमे जीवन के हर पहलुओं की समालोचना व व्याख्या होनी आवश्यक है। समाज में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना का साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानवीय पक्ष हो,राग, द्वेष,प्रेम,उत्साह,ईर्ष्या,विरह,वियोग आदि सारी भावनाएं साहित्य के झरोखों से उद्वेलित होते हुए मानव मन में अपनी झलक दिखाती है। 

साहित्यकार जीवन की हर घड़ी को, आस पास होने वाली सामाजिक क्रिया प्रतिक्रियाओं को अपने अनुभव में उकेरता है, उन्हें शब्दों में पिरोता है, हर उस छवि को जो अच्छी या बुरी हो साहित्य के द्वारा प्रकटीकरण करता है। साहित्य में मानव जाति का कल्याण निहित है, उसे प्रकट करने अपने शब्दों द्वारा व्यक्त करने का माध्यम साहित्य द्वारा ही संभव है। 

प्राचीन काल से वर्तमान तक समाज में घटने वाली घटनाएं हमें साहित्य के दर्पण में ही दिखती है। हर परंपरा, रीतियों, कुरुतियों, रूढ़िवादी जाति व्यवस्थाओं, शोषण में पिसती महिलाओं, किसानों का संघर्ष, गांव के ग्रामीणों का सादा जीवन उनकी समस्याओं आदि का चित्रण हमें साहित्य द्वारा ही पीढ़ियों दर पीढ़ी मिल रहा है और आगे भविष्य में भी मिलता रहेगा। 

लेखक,कवि, साहित्यकार समाज हितैषी होते हैं उनके लेखों में, कविताओं में समाज का हित समावेशित रहता है,वो सदा समाज की दशा दिशा बदलने के कार्यों में सलग्न रहते हैं। सामाजिक चेतना,प्रेरणा का श्रोत यही साहित्य होते हैं जो हमारे विचारों जीवन दर्शन पर गहरा प्रभाव डालने का कार्य करते हैं। साहित्य एक प्रवाह है एक मंद मंद बहने वाली हवा है जिसमे सरगम है संगीत है जो परिवर्तन का सूचक है। साहित्य के बिना सभ्यता,संस्कृति का कोई अस्तित्व नहीं अतः साहित्यकार का दायित्व होता है कि वो ऐसे साहित्य का निर्माण करे, सच्चे अर्थों में सृजन करे जो मानवीय मूल्यों उनके गुणों उनका सामाजिक पक्षों के साथ संबंध, प्रकृति व संस्कृतियों के विकास की सही अर्थों में व्याख्या करे साथ ही सार्थक स्वतंत्र विधाओं से जीवन में अंश खंड व अनुभूतियों को गहनता से शब्दों के द्वारा साहित्यिक धरा पर उकेरे सके।

एक साहित्यकार के रूप में गहन परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो भारतीय संस्कृति में हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया जा सकता है। हिंदी साहित्य अत्यंत विस्तृत व प्राचीनतम साहित्य है जिसका वैदिक काल में प्रादुर्भाव होते हुए अनेक कालखंडों से गुजरते अनेक भाषाओं,अपभ्रंशों से आगे बढ़ते हिंदी तक संबंध स्थापित करती है। हिंदी साहित्य संस्कृत, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं से निकलते हुए वर्तमान अवस्था तक आते आते हिंदी स्वरूप को धारण किए हुए है। हिंदी साहित्य में अनेक विधाओं पर गंहनता से रचनात्मक कार्य हुए हैं जो किसी न किसी विशेषता से परिपूर्ण है। कभी चारणों, भाटों का काव्य वीर गाथा,आश्रयदाता राजाओं का शौर्य पराक्रम का ओजस्वी वर्णन हो, प्रेम प्रसंगों का उल्लेख करते हुए मानवीय सौंदर्य की अनुपम छटा हिंदी साहित्य में बिखरी मिलती है।

अमीर खुसरो,माधव दास चारण जैसे अनेक दरबारी कवियों की ठेठ खड़ी बोली में पहेलियां,मुकरियां, दोहों की बात हो या रासों काव्य परंपरा,रूढ़ियों आडंबरों के बीच सांस्कृतिक वैक्तिक मूल्यों की प्रतिष्ठा पर लेखन हो हिंदी साहित्य के विकास ने अग्रणीय भूमिका निभाई है। राम के सगुण और निर्गुण रूपों की दो अलग शैलियों, कबीर और तुलसी के दोहे छंद या सूर की कृष्ण भक्ति से हिंदी साहित्य प्रेमाश्र्यी धारा से मार्मिक, प्रेमजन्य कथा रस की ओर प्रशंसित होती है। 

हिंदी साहित्य की भिन्न भिन्न विधाएं विभिन्न कालखंडों में अपनी सरसता, संवेदनाओं का व्यापक रूप से अभिव्यक्त करती है। मनोरंजन हो कालाविलास का वातावरण से बौद्धिक आनंद तक हिंदी साहित्य परिपूर्ण होती रही है। आधुनिक युग में संक्रांति नवजागरण का युग हिंदी साहित्य के लिए वरदान साबित हुआ। यहां अनेक शैलियों में सदियों में जकड़ा समाज, नई शिक्षा का आरंभ, नवविज्ञान के प्रभाव में एक नया ही दृष्टिकोण हिंदी साहित्य में विकसित होता गया। यथार्थवादी रचनाएं नित नए शिल्प में ढलते अनेक तिलिस्मी उपन्यासों जैसे चंद्रकांता और उससे आगे बढ़कर भक्ति, श्रृंगार, प्रकृति आदि की सरस कविताओं में फलती फलीभूत होती गई। 

वर्तमान में हिंदी साहित्य का मार्ग गद्य पद्य दोनों विधाओं द्वारा विकसित होता हुआ अनेक समकालीन सुधारवादी आदर्शों से प्रेरित अयोध्या सिंह उपाध्याय की प्रिया प्रवास व मैथिली शरण गुप्त की भारत भारती में राष्ट्रीयता के स्वर को ऊंचा किया। साकेत की उर्मिला हो या हिंदी नाटकों के खेवनहार जयशंकर प्रसाद के नवीन स्तर पर आरोहण करता हुआ जीवन संघर्ष हिंदी साहित्य को हर दौर में अन्वेषणित करता आया है जिसने नैतिकता का बोध जगाने का सदैव प्रयत्न किया है। वास्तविक साहित्य भी यही है जो जीवन में हर व्यथा को मन में होने वाले सांसों की उठापटक को हमारे क्रिया कलापों के माध्यम से प्रकट करने उन्हें अभिभूत होने का अवसर प्रदान करे। साहित्य का कोई पैमाना नहीं न कोई आदर्श मापदंड,साहित्य आसमान के समान विशाल व परजीवियों की भांति सूक्ष्म होता है इसे विश्लेषित करना आसान कार्य नही है। साहित्य सत्य का अग्रणी है परिमार्जित गुणों का वाहक है।साहित्य सुंदर और दिलों दिमाग पर गहरा असर डालने वाली विधा है,जब हम साहित्य के द्वारा भावों को पढ़कर भाव विभोर हो जाते हैं,मन हिलौरे लेने लगता है या दुखी व्यथित हो जाता है या कभी कभी प्रेम में डूबने लगे,परिंदों की तरह आसमान में उड़ने लगे तो समझिए साहित्य हमारे रगों में घुलने लगा है।

वास्तविक साहित्य भी यही है जो जीवन में हर व्यथा को मन में होने वाले सांसों की उठापटक को हमारे क्रिया कलापों के माध्यम से प्रकट करने उन्हें अभिभूत होने का अवसर प्रदान करे।


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