संजय असवाल

Inspirational

4.5  

संजय असवाल

Inspirational

महान क्रांतिकारी कालू सिंह मेहरा

महान क्रांतिकारी कालू सिंह मेहरा

4 mins
326


जिस आजाद भारत में आज हम खुलकर श्वांस ले रहे हैं। आजादी का जश्न मना रहे हैं उसे गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने में न जाने कितने ही महान क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। कितनों ने अपने सीने पर गोलियां खाईं। कितने फांसी के फंदे पर हंसते हंसते झूल गए। अंग्रेजी शासन के दमन के आगे अनेक यातनाएं झेली मगर उफ़ नही किया और खुशी खुशी माँ भारती के चरणों में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। देश के ऐसे ही महान क्रांतिकारियों में एक नाम है *कालू सिंह मेहरा।* 

देवभूमि उत्तराखण्ड के पहले स्वतंत्रता सेनानी *कालू सिंह मेहरा* का जन्म लोहाघाट के निकट बिसुंग के थुवामहर गांव में एक सामान्य परिवार में ठाकुर रतिभान सिंह के यहाँ 1831 में हुआ था।

उस समय उत्तराखण्ड ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आ गया था।अंग्रेजी शासन ने सन 1815 में नेपाली गोरखों को युद्ध में हरा कर इस भूभाग को दो भागों में विभाजित कर एक हिस्से को ब्रिटिश गढ़वाल नाम से राज करने लगे थे। 

कालू सिंह मेहरा ने अपने किशोरवस्था से ही अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह करना आरंभ कर दिया था। कालू सिंह मेहरा ने *क्रांतिवीर* नाम से एक अभियान शुरू किया। यह अभियान कुमायूँ में आजादी के दीवानों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। 

कालू सिंह मेहरा आजादी के आन्दोलन को संगठित करने के लिए काली कुमाऊँ के इलाके में सक्रिय हुए तथा उनका योगदान 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊँ की भूमिका इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है। ब्रिटिश हुकूमत इस क्षेत्र से किसी भी बगावत के लिए तैयार नहीं थी। कालू सिंह मेहरा के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ काली कुमाऊँ के संग्राम ने ब्रिटिश हुकूमत को हतप्रभ कर दिया था। कालू सिंह मेहरा ने काली कुमाऊँ क्षेत्र की जनता को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया। इस विद्रोह के नायक कालू सिंह मेहरा और उनके सहयोगी आनंद सिंह फर्त्याल, बिषना करायत, माधों सिंह, नूर सिंह तथा खुशा सिंह ने अपने प्राणों से बढ़कर देश की स्वतंत्रता को समझा और आंदोलन में उतर गए। फिर सारी तैयारी करने के बाद सबसे पहले लोहाघाट के चांदमारी में स्थिति अंग्रेजों की बैरकों पर हमला किया। इस अप्रत्याशित हमले के बाद ब्रिटिश सैनिक और अंग्रेज अधिकारी भाग खड़े हुए और स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश हुकूमत की इन बैरकों को आग के हवाले कर दिया।

पहली लड़ाई में कामयाबी मिलने के बाद कालू सिंह मेहरा और उनके क्रांतिकारी साथियों ने नैनीताल और अल्मोड़ा की तरफ से काली कुमाऊँ की ओर आगे बढ़ रही ब्रिटिश सेना को रोकने के लिए पूरे काली कुमाऊँ में इस लड़ाई में स्थानीय जनता का सहयोग लेकर लड़ाई और तेज कर दी। अब कालू सिंह मेहरा के नेतृत्व में इस सेना ने बस्तिया की ओर आगे बढ़ना शुरू किया और यहाँ उन्हें रास्ते में छिपाए गए हथियारों और धन को लेकर आगे बढ़ना था। लेकिन अमोड़ी के नजदीक क्वैराला नदी के किनारे बसे किरमौली गांव में छिपाए गए हथियारों और धन के बारे में किसी गद्दार मुखबिर द्वारा अंग्रेजों को पहले ही सूचना दे दी गयी। कालू सिंह मेहरा और उसके क्रांतिकारी साथियों के इस जगह तक पहुँचने से पहले ही ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा इसे कब्जे में ले लिया और इस तरह भीतरघात की वजह से सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा काली कुमाऊँ की जनता का यह आजादी अभियान बस्तिया में बिखर गया। कालू सिंह मेहरा को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। 

कालू सिंह मेहरा तथा अन्य क्रांतिकारी साथियों पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया तथा कुछ समय पश्चात उन्हें फांसी दे दी गई । उनके दो नजदीकी सहयोगियों आनंद सिंह फर्त्याल तथा बिशन सिंह करायत को अंग्रेजों ने लोहाघाट के चांदमारी में गोली मार दी । काली कुमाऊँ की जनता ने इस बगावत का दंड लम्बे समय तक झेला । 1937 तक काली कुमाऊँ के किसी भी व्यक्ति को सेना में भर्ती नहीं किया गया। अंग्रेज सरकार ने यहाँ के सभी विकास कार्य रुकवा दिए। कालू सिंह मेहरा के घर पर हमला बोलकर उसे जला दिया गया। इस दौरान ब्रिटिश सरकार के पक्ष में बयान देने वालों को बरेली में जागीरें दी गयी। 1856 से 1884 तक पौड़ी-गढवाल और कुमाऊँ क्षेत्र हेनरी रैमजे के शासन में रहा जिहोंने इस क्षेत्र में पनप रहे सभी विद्रोह को रोकने का कार्य किया तथा कठोरता से सभी का दमन कर दिया।

कालू सिंह मेहरा और उनके साथियों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया और एक के बाद एक युवा स्वतंत्रता की इस लड़ाई में बढ़ चढ़कर अपना योगदान देने लगे। वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड की इस पावन धरती से कई वीर क्रांतिकारियों ने जन्म लिया और अपना बलिदान दिया लेकिन उत्तराखंड के पहले स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि से *कालू सिंह मेहरा* को ही जाना जाता है। 

आज भी उतराखंडी अपने वीर सपूतों की बलिदान गाथाएँ अपने बच्चों को सुनाते हैं और उनकी तरह बनने की सीख देते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational