वीरांगना रानी कर्णावती (नक्कटी रानी )
वीरांगना रानी कर्णावती (नक्कटी रानी )


उत्तराखंड देवों की भूमि है। यह अनेक एतिहासिक, विश्व विख्यात प्राचीन मंदिरों,बुग्यालों,ताल और झीलों के लिए प्रसिद्ध है। प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज यह देवभूमि भारत के सुंदर प्रदेशों में अग्रणीय स्थान रखता है।
प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ यह भूमि अपने सैन्य इतिहास वीरता,अदम्य साहस के लिए जानी जाती है।
यहां समय समय पर अनेक वीरों,भड़ो और वीरांगनाओं ने जन्म लिया जिन्होंने अपने शौर्य पराक्रम के बल से इस देवभूमि को इसकी मिट्टी को दूर दूर तक ख्याति दिलाई है।
ऐसी ही वीरता व निडरता की प्रतीक भारत की सबसे पराक्रमी रानियों में एक रानी है गढ़वाल की रानी कर्णावती जिन्हें नक्कटी रानी के नाम से भी जाना जाता है।
रानी कर्णावती पंवार वंश के राजा महीपत शाह की धर्मपत्नी थी। महीपत शाह के युद्ध भूमि में वीरगति प्राप्त होने के पश्चात राज्य की बागडोर महारानी कर्णावती के हाथों में आ गई। उन्होंने अपने सात वर्षीय पुत्र पृथ्वीपति शाह की ओर से कई वर्षों तक शासन किया और सफलतापूर्वक राजकाज संभाला। इस दौरान अनेक युद्धों में नेतृत्व कर अपने राज्य की शत्रुओं से रक्षा की।
महारानी कर्णावती को कमजोर, अबला समझ कर मुगल बादशाह शाहजहां के सूबेदार नजाबत खां ने सन 1635 में बादशाह की आज्ञा पाकर गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर पर हमला करने के लिए कूच कर दिया।
नजाबत खां एक लाख पैदल सैनिक और तीस हजार घुड़सवारों की विशाल सेना लेकर शिवालिक की तलहटी से पहाड़ की और बढ़ने लगा।
रानी कर्णावती और उनके सैनिको
ं ने छापामार युद्ध कर अपने से ताकतवर दुश्मन की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। रानी कर्णावती और उसकी सेना के अदम्य साहस और वीरता से मुगल सेना के पांव उखड़ गए। मुगल सेना इस हमले से घबराकर पहाड़ की तलहटी पर एकत्रित होने लगी। रानी कर्णावती की सेना की एक टुकड़ी वहां पहले से ही मौजूद थी जिन्होंने मुगल सेना को चारों ओर से घेर लिया। रानी कर्णावती के आदेशानुसार घाटी के दोनों ओर के रास्तों को बंद कर दिया गया।
विशाल मुगल सेना अपने सेनानायक नजाबात खां के साथ घाटियों में फंस गई। मजबूर होकर उसने रानी के पास शांति वार्ता का प्रस्ताव भेजा जिसे रानी कर्णावती ने ठुकरा दिया और सन्देशा भिजवा दिया जब तक सेना सहित आत्मसमर्पण नहीं कर देते युद्ध चलता रहेगा। मुगल सेना का रसद जब धीरे धीरे खत्म होने लगा तो सेना में हाहाकार मच गया,मजबूरन नजाबत खां ने रानी के सामने सेना सहित आत्मसमर्पण कर दिया ।
रानी कर्णावती ने सभी मुगल सैनिकों की नाक काट कर उन्हें जिंदा जाने दिया। इस घटना से शर्मिंदा होकर नजाबत खां ने वापस जाते हुए रास्ते में आत्महत्या कर ली।
इस घटना के बाद से ही रानी कर्णावती को नक्कटी रानी यानी दुश्मन की नाक काटने वाली रानी से संबोधित किया जाने लगा।
रानी कर्णावती गढ़वाल की कुशल नेतृत्व वाली सख्त प्रशासक भी रही। रानी कर्णावती ने अनेक विकास कार्यों के साथ नहरों का निर्माण भी कराया, साथ ही रानी के नाम पर देहरादून का करनपुर गांव बसाया गया। रानी कर्णावती द्वारा बनाए गए स्मारक आज भी देहरादून में मौजूद हैं।