काशी की सांस्कृतिक विरासत
काशी की सांस्कृतिक विरासत
काशी.... भगवान शिव की नगरी आध्यात्मिकता का उद्दगम स्थल और भारत की सांस्कृतिक राजधानी जो उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। भगवान् विश्वनाथ अर्थात ब्रह्मांड के भगवान यही विराजमान हैं।
प्राचीनतम बसा शहर सनातन संस्कृति में सर्वाधिक पवित्र शहरों में एक है।
यह मंदिरों का शहर " भारत की धार्मिक सांस्कृतिक राजधानी, महादेव की नगरी, दीपों का शहर, ज्ञान का उद्दगम क्षेत्र, आदि अनेक नामों से जानी जाती है"।
काशी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए विख्यात है। काशी भारतीय कला और संस्कृति का एक सम्पूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है।
काशी में कोई भी इतिहास के बदलते समीकरणों और उनके होने वाले प्रभावों को महसूस कर सकता है।
काशी कला के विभिन्न रूपों, लोक कलाओं की एक समृद्ध और अनूठी शैली का बेहतरीन संगम है।
सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्य उनका तानाबाना काशी के रग रग में रचा बसा है। सांस्कृतिक और भाषाई विविधता और विभिन्न जातीय समूह इस पवित्र शहर काशी के लिए शाश्वत हैं।
संगीत, नाटक और मनोरंजन काशी के पर्याय हैं। काशी लंबे समय से अपने संगीत, स्वर और वादय यंत्रों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसकी अपनी नृत्य परंपराएं हैं। काशी के लोक गीत और नाटक विशेषकर "रामलीला" विश्व प्रसिद्ध हैं। काशी की रामलीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास रचित "रामचरित मानस" की चौपाइयों के आधार पर क्रियांवित किया जाता है। रामनगर रामलीला की मुख्यत विशेषता आधुनिक दौर होने के बावजूद रामलीला का मंचन वैसा ही किया जाता है जैसे 239 साल पहले किया जाता था। मंचन मे ना लाइट का तामझाम होता है ना ही स्टेज का झंझट होता है। रामलीला का मंचन राम नगर के पाँच किलोमीटर के क्षेत्र में घूम घूम कर होती है। अपने में अनूठी विश्व विख्यात इस ऐतिहासिक रामलीला का दीदार करने हर हर महादेव के जय घोष के साथ आज भी काशी नरेश पूरे शाही ठाठ बाट में हाथी पर सवार होकर राम लीला के मंचन को देखने पहुँचते हैं। यह राम लीला पूरे एक माह तक चलती है और काशी नरेश इस मंचन के साक्षी बनते हैं।
काशी के इसी विरासत को एक प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक" मार्क टवेन् " लिखते हैं यह इतिहास से भी पुरातन हैं, परंपराओं से पुराना, किंवन्दंतियों से प्राचीन और जब इन सबको एकत्र किया जाता है तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन काशी और काशी की संस्कृति है"।
मोक्षदयानी काशी के लिए एक बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ किसी अनाम कवि ने इस तरह लिखी हैं।
"अविमुक्त भी मुझसे ही
मोक्ष भी दुनियां के बदन पर
एक खूबसूरत नक्काशी हूँ,
प्रत्यक्ष भी परोक्ष भी
जरा गौर से देखो
मैं स्वर्ग से भी चहेती
विश्वनाथ की काशी हूँ"।
(आभार:एक अनाम कवि)
"जय बाबा विश्वनाथ जय जय काशी" ।