संजय असवाल

Abstract Action Inspirational

4.5  

संजय असवाल

Abstract Action Inspirational

तीलू रौतेली( उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई)

तीलू रौतेली( उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई)

3 mins
418


उत्तराखंड गढ़वाल की वीरांगना तीलू रौतेली जिसका मूल नाम तिलोत्तमा देवी था अपने अदम्य साहस और वीरता के लिए उत्तराखंड की लक्ष्मी बाई नाम से जानी जाती है। 

इनका जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के चौंदकोट तहसील के गांव गुराड में थोकदार भूप सिंह गोरला रावत और मैणावती रानी के घर में 8 अगस्त 1661 को हुआ था। उनके पिता भूप सिंह गोरला रावत गढ़वाल नरेश के दरबार में सम्मानित थोकदार थे। तीलू रौतेली के दो भाई भी थे जिनका नाम भगतु और पत्वा था। तीलू रौतेली की 15 वर्ष की आयु में ग्राम ईडा तहसील चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह के साथ धूमधाम से सगाई हुई। 

तीलू रौतेली ने 15 वर्ष की आयु होते-होते गुरु शिबू पोखरियाल से घुड़सवारी और तलवार बाजी सीखी और इस क्षेत्र में निपुणता हासिल की। उन दिनों गढ़वाल नरेश और कुमाऊं के कत्यूरी राजाओं के बीच में आपसी प्रतिद्वंदिता चल रही थी। कत्युरियों के राजा धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़वाल नरेश ने वहां की रक्षा की जिम्मेदारी तीलू रौतेली के पिता भूप सिंह गोरला रावत को सौंप दी। थोकदार भूप सिंह गोरला अपनी सेना के साथ युद्ध भूमि में कत्यूरियों से बहादुरी से लड़े और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गए। पिता की युद्ध भूमि में मृत्यु का समाचार सुनकर दोनो पुत्र भग्तू और पत्वा और उनके दामाद भवानी नेगी ने भी कत्यूरियों से मुकाबला किया और वे भी वीरता से लड़ते हुए युद्ध भूमि में शहीद हो गए। अपने पिता,भाइयों और मंगेतर की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए तीलू रौतेली ने अपनी सहेलियों के साथ मिलकर एक सेना टुकड़ी का गठन किया। अपनी प्रिय बिंदुली घोड़ी पर बैठ कर युद्ध भूमि पर कत्यूरियों को हर मोर्चे पर परास्त किया। तीलू रौतेली ने अपने युद्ध कौशल से खैरागढ़, सल्ट महादेव को अपने दुश्मनों से मुक्त कराया। कालिंका खाल में तीलू रौतेली की सेना और कत्यूरियो के बीच घमासान युद्ध हुआ और इस युद्ध में अपने दुश्मनों को हराकर अपने पिता, भाइयों और मंगेतर के बलिदान का बदला ले लिया, इसी युद्ध में तीलू रौतेली की प्रिय घोड़ी बिंदुली युद्ध भूमि में शत्रुओं के प्रहार से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हो गई। 

तीलू रौतेली अपने शत्रुओं को पराजित कर जब अपने गांव लौट रही थी तो रास्ते में पोखर में नहाने के लिए रुकी उसी बीच एक घायल कत्यूरी शत्रु सैनिक ने उस पर धोखे से पीछे से आक्रमण कर दिया।

इस आक्रमण से निहत्थी तीलू रौतेली ने बिना हथियार ही अपने शत्रु सैनिक को मार गिराया पर अपने ऊपर हुए इस प्राण घातक हमले में खुद भी वीरगति को प्राप्त हो गई।

तीलू रौतेली एक वीर साहसी महिला थी। 15 वर्ष की उम्र में ही वह अपने राज्य की रक्षा हेतु रणभूमि में कूद पड़ी थीं और सात साल तक अपने दुश्मन कत्यूरी राजाओं को कड़ी चुनौती दी। 22 साल की उम्र में उन्होने 13 गढ़ों पर विजय प्राप्त कर ली थी और अंत में अपने प्राणों की आहुति देकर वीरगति को प्राप्त हो गई। 

तीलू रौतेली आज उत्तराखंड में एक वीरांगना के रूप में याद की जाती हैं। अपने अदम्य साहस, पराक्रम से तीलू रौतेली ने ना सिर्फ अपने राज्य की रक्षा की बल्कि अपने पिता,भाइयों और मंगेतर की रणभूमि में बलिदान का प्रतिशोध अपने शत्रु कत्यूरियों से लिया। तीलू रौतेली को लोक गीतों में आज भी याद किया जाता है। वो  उत्तराखंड की रानी लक्ष्मी बाई के समान देश विदेश में प्रसिद्ध है।

"जय उत्तराखंड जय भारत"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract