हम मां से कोई काम नहीं करवाते।
हम मां से कोई काम नहीं करवाते।
देखो जीजी चाहे कुछ भी कहो गोलू की शादी में तो आपको आना ही पड़ेगा। जैसे मेरा वैसे ही वह तुम्हारा भी तो पोता हुआ। अब की कोई बहाना नहीं चलेगा, हमें भी पता है कि आप घर में कोई भी काम नहीं करतीं, अभी पीछे जब तुम्हारा बेटा विक्की आया था तो वह यही कह रहा था कि हम तो अपनी मां को कोई काम ही नहीं करने देते। सुशीला और सुनीता दोनों सगी बहने थी। सुशीला मुंबई में रहती थी और सुनीता दिल्ली में। सुनीता के दोनों बेटों और एक बेटी की शादी हो चुकी थी और उनके बच्चे भी बड़े ही थे। अब सुशीला के बेटे गोलू की मुंबई में शादी थी उसकी भी दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी। उसी शादी में शामिल होने के लिए वह अपनी बड़ी बहन सुनीता को आमंत्रित कर रही थी। वैसे भी दोनों बहनों को मिले हुए काफी साल हो गए थे, कहने को तो सुनीता के दोनों बेटे और बहू में यही कहते थे कि हम अपनी मां को कोई काम नहीं करने देते लेकिन पाठक गण आप जरा सुनीता की दिनचर्या सुनिए और जानिए कि क्या वह अपनी बहन की शादी में जा पाएगी? सुनीता जी ठीक 5:00 बजे उठ जाती थी। सर्दी हो या गर्मी, नहा धोकर सबसे पहले घी मिश्री का वह ठाकुर जी को भोग लगाती थी। 6:00 बजे तक रोटी बनाने के लिए शांताबाई घर पर आ जाती थी। जितने शांताबाई खाना बनाती थी इतनी देर सुनीता जी को ही उस पर नजर रखनी होती थी और हिदायतें देनी होती थी। विक्की, बिन्नी और उनकी पत्नियां 6:30 से पहले तो उठ ही नहीं पाती थी। जल्दी से उठ कर शांताबाई के बनाए हुए नाश्ते को बच्चों के लिए लगाकर उन्हें बस के लिए रवाना करती थी इतने सुनीता जी अपनी चाय पीती थी। दोनों के चारों बच्चे 7:30 बजे बस से स्कूल जाते थे , बिन्नी का बेटा 12:30 बजे तक और बाकि तीनों बच्चे लगभग 2:00 बजे तक घर वापस आते थे। 9:00 बजे तक विक्की, बिन्नी और उन दोनों की पत्नियां अपने अपने ऑफिस चली जाती थी फिर शाम को 7:00 बजे तक ही सबका आना होता था। शांताबाई नाश्ता बना कर चली जाती थी, यदि किसी कारणवश सुनीता जी सुबह ना उठ पाएं तो शांताबाई को घर का गेट भी खुला ना मिले। 9:00 बजे जब तक वह निकलते थे। सावित्री झाड़ू पोछा और बर्तन मांजने के लिए आ जाती थी। 11:00 बजे तक लगभग झाड़ू पोंछा का काम खत्म कर दी थी तब तक कपड़े धोने के लिए धोबी भी आ जाता था। इस बीच में कुरियर वाला और भी बहुत से आने वाले लोग उन सबको सुनीता जी को ही देखना होता था। धोबी के जाने तक शांताबाई बच्चों का लंच बनाने के लिए आ जाती थी। 12:30 बजे बस से राहुल को लेकर बाहर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड आ जाता था। राहुल की बस सोसायटी के बाहर आती थी और सिक्योरिटी गार्ड को राहुल को घर तक छोड़ने के लिए पैसे दिए जाते थे। सफाई वाला आए या कोई और , चाह कर भी सुनीता जी आराम नहीं कर सकती थी क्योंकि यह सब उन्होंने ही देखना था। दोपहर को राहुल को खाना खिलाने के बाद वह राहुल का बस्ता वगैरह रखवा कर उसे सोने के लिए भेजती थी तब तक बाकी तीनों बच्चे भी घर आ जाते थे। डाइनिंग टेबल पर रखे हुए खाने से सब लोग इकट्ठा खाना खाते थे और इस बीच सुनीता जी बच्चों के बीच में रैफरी की भूमिका ही निभाती रहती थी।
सुबह 5:00 बजे की उठी हुई वह आराम को भी तरस जाती थी। 3:00 बजे तक दोनों बच्चे मेधा और श्रुति के ट्यूशन टीचर आ जाते थे। अगर दोनों बच्चियां सो गई हो तो उन्हें जगा कर ट्यूशन के लिए बिठाना भी सरल काम नहीं था। अगर किसी दिन कोई बच्चे ट्यूशन ना पड़े तो भी विक्की बिन्नी और बहुएं उनसे यही कहती थी कि आप केवल बच्चों को पढ़ाने के लिए उठा भी नहीं सकती। इस कारण वह खुद चाह करके भी दोपहर में सो नहीं पाती थी। मॉन्टि को 4:00 बजे ट्यूशन पर जाना होता था, उसकी ट्यूशन थोड़ी ही दूर पर थी और वह अपनी साइकिल से जाता था इसी बीच शांताबाई शाम का खाना बनाने के लिए आ जाती थी। बर्तन वाली सावित्री भी दोबारा आ जाती थी। साथ वाले घर में रहने वाली मिसेस वर्मा उन्हें अक्सर कहती थी कि मन बदलने के लिए शाम को पार्क में आ जाया करो लेकिन वह घर छोड़कर कैसे निकल सकती थी। बाजार के छोटे-मोटे कामों के लिए वह खुद जा ही नहीं सकती थीं। शाम को जब तक बेटे बहु दफ्तर से आते थे तब तक अक्सर अंधेरा हो ही जाता था जब तक मोंटी ट्यूशन से घर में नहीं आ जाता था उन्हें चिंता लगी ही रहती थी। बच्चों के आने के बाद ही वह अपनी शाम की पूजा पाठ कर पाती थी। उनकी बहुत इच्छा होती थी कि वह सुबह और शाम समीप के मंदिर के आरती में शामिल हो सके लेकिन उन्हें कभी समय ही नहीं मिला और बच्चे कहते हैं कि हम अपनी मां को कोई काम ही नहीं करने देते। इस कारण वह कभी भी कहीं नहीं जा पाती थी।लेकिन अब के तो उन्होंने सोच ही लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए वह सुशीला के बेटे गोलू की शादी में मुंबई जाएंगी जरूर। जब उन्होंने विक्की और बिन्नी को अपनी इच्छा बताई तो दोनों चौक कर बोले मम्मी अब तो बच्चों के इम्तिहान भी आने हैं आप कैसे जा सकती हो? क्यों नहीं जा सकती बेटा? तुमने ही तो मौसी को बोला था कि हम तो अपनी मां को कोई काम ही नहीं करने देते जब मेरा यहां कोई काम ही नहीं है तो भला मेरे जाने से क्या फर्क पड़ेगा। मेरी टिकट करवा देना और मैं 15 दिन तक मुंबई जरूर जाऊंगी। ऐसा कहते हुए सुनीता जी अपने घर के मंदिर में पूजा करने को चली गई।