Shailaja Bhattad

Abstract Others

4.0  

Shailaja Bhattad

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हितैषी / परिवार

हितैषी / परिवार

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"पूरे दिन चीं-चीं और न जाने कितनी आवाजें, तुम्हारी इतनी अधिक शाखाएं हैं जिसके कारण पक्षियों ने तुम पर हजारों घोंसले बना रखे हैं। मधुमक्खियों के छत्ते, कटोरों में सांप के बिल, उल्लू, गिलहरी और चमगादड़ों के घर और न जाने क्या-क्या, कैसे सहन कर लेते हो यह सब? तुम इन्हें रोकते क्यों नहीं।" खजूर के पेड़ ने बरगद से कहा। "यह तो मेरा परिवार है, इनके बिना तो मैं अस्तित्वहीन ही हूं। ये सभी फल खाकर इधर-उधर बीज फेंकते हैं, जिससे हमारी संख्या में अभिवृद्धि होती है वरना इंसानों से अपेक्षा करना तो बेकार है, इन्हें हमारी और हमें इनकी जरूरत है। बस यही तो परिवार है। सोचो अगर पक्षी कहीं और रहते तब यहां कितनी वीरानी होती, हम सब इस खिलखिलाते जीवन से वंचित रहते। आई बात समझ में?"

" हं"- ध्यान से सुनते हुए खजूर ने कहा। 

 ”एक और बात मनुष्य तो एक तरफा उपयोगिता देखते हैं, जब तक इनके माता-पिता उपयोगी होते हैं, साथ रखते हैं फिर वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। हम वृद्ध हो जाते हैं तो हमारी लकड़ियों की कीमत और गुणवत्ता बढ़ जाती है अतः हमें काटकर घर ले जाते हैं, भूल जाते हैं कि वह सांस भी हमारे होने से ही ले पाते हैं।"

"सही कह रहे हो मित्र।"

 कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य चलता रहा, अचानक एक दिन औजारों के साथ कुछ लोग वहां आ धमके। बरगद को देखकर कहने लगे इस पर बहुत से घोसले हैं अतः इस खजूर के वृक्ष को ही काट कर ले जाते हैं। लेकिन जैसे ही आरी उठाई सारे पक्षी एकत्रित हो जोर-जोर से चिल्लाते हुए उन्हें चोंच मारने लगे, मधुमक्खियां काटने को दौड़ी ही थी, कि सारे लोग भाग खड़े हुए। 

 "मेरा परिवार" कहकर कृतज्ञता में खजूर ने अपनी शाखाएं झुका ली मानो कह रहा हो आओ पक्षियों मुझ पर भी अपना घोंसला बनाओ, मुझे भी अपने परिवार का हिस्सा बनाओ। इधर बरगद अपनी शाखाएं फैलाए अपने परिवार से आलिंगन हेतु आतुर था।


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