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Shailaja Bhattad

Abstract Children Stories Inspirational

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Shailaja Bhattad

Abstract Children Stories Inspirational

स्वायत्तता- लघुकथा

स्वायत्तता- लघुकथा

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 "माँ, पंद्रह अगस्त पर हमारे विद्यालय ने भाषण प्रतियोगिता रखी है इसमें मैं भी भाग लेना चाहता हूँ। मगर...।" हर्ष ने चिंतित स्वर में कहा। "मगर...? यह तो बहुत अच्छी बात है इसमें मैं भी तुम्हारी मदद करूँगी लेकिन यह मगर... क्यों?" "मेरी बहुत इच्छा है भाग लेने की; लेकिन सब कह रहे हैं, प्राध्यापक का बेटा केतन भी इसमें भाग ले रहा है, इसलिए मैं चाहे जितनी तैयारी कर लूँ, लेकिन जीतेगा तो वही, इसलिए भलाई इसी में है कि भाग ही न लो। कक्षा के कई विद्यार्थियों ने अपने नाम वापस ले लिए हैं।" "और तुमने?" "अभी तक तो नहीं।" "अच्छा किया! लेना भी मत। स्वयं का निर्णय दूसरों के दबाव में आकर बदलना ठीक नहीं है, ना ही दूसरा 'क्या है', सोच कर अपने मूल्यों व हितों को भूल जाना।' "मेरा हित इस प्रतियोगिता में भाग लेने में है।" हर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा। "बिल्कुल, तुम्हें सिर्फ़ 'मुझे अपना अच्छा देना है' इस पर ध्यान केंद्रित करना है, परिणाम पर नहीं। 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते' याद है न?" "हाँ, माँ।" "देखो, केतन भी तुम्हारी ही तरह अच्छा, होनहार सहपाठी है, अगर वह जीतता भी है, तो अपनी मेहनत से ही न? इसलिए जब वह मंच पर भाषण दे तो तुम्हारा ध्यान वह क्या-क्या कह रहा है, इस पर होना चाहिए ताकि तुम उसकी स्पीच से भी अपना ज्ञान बड़ा सको, नकारात्मक बातें फैलाने वाले झुंड से हमें हमेशा दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि जब हम पहले से ही किसी के बारे में कोई धारणा बना लेते हैं तो चाहकर भी हमें उसकी अच्छाई नजर नहीं आती। जब हम दूसरों में अच्छाई देखने लगते हैं तो हमारी अच्छाई भी कई गुना बढ़ जाती है।" "माँ, मैं आपकी हर बात का ध्यान रखूँगा।" कहकर हर्ष माँ के गले लिपट गया। "सुनकर अच्छा लगा, मेरे बच्चे।" कहकर माँ ने हर्ष की पीठ थपथपाई।" "अच्छा मैं इतिहास की किताब पढ़ना शुरू करता हूँ, तैयारी अच्छी होनी चाहिए न?" हर्ष ने हर्षित होकर कहा। "हाँ, और जागरूकता भी।" 


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