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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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समझदारी

समझदारी

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"सुधा तुम स्नेहा की देखभाल के लिए मालती को बहुत ज्यादा पैसे नहीं देती हो?" सुधा की मित्र मधु ने चिंतित स्वर में सुधा से पूछा। "नहीं,बिल्कुल नहीं, तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?" "पंद्रह हज़ार तो बहुत होते हैं न!" "लेकिन वह सुबह दस बजे से शाम छः बजे तक, यानी लगभग पूरा दिन हमारे यहाँ ही रहती है न!" "वह तो ठीक है, लेकिन अगर एक ज्यादा देता है, तो बाकी को भी उतना ही देना पड़ता है न।" "हमारा अपना खर्च ही देख लो। क्या पंद्रह हज़ार हमें खुद के लिए भी पुरते हैं? फिर उसे तो अपना पूरा परिवार देखना है न! अगर हम उसके प्रति आत्मीयता पूर्ण व्यवहार रखेंगे, तो वह भी उतनी ही आत्मीयता मेरी बेटी की देखभाल में भी दिखाएगी, जो कि बहुत ज्यादा आवश्यक है, क्योंकि स्नेहा अभी बहुत छोटी है।" हाँ, वैसे तुम कह तो सही ही रही हो।" "और हाँ, एक और बात, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, अगले महीने से मैं उसकी सैलरी बढ़ाने का सोच रही हूँ।"


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