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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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ईमानदारी

ईमानदारी

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"सामान कितने का हुआ और आपने पैसे कितने दिए हैं? मुझे।" एक ग्राहक ने हिसाब बराबर नहीं बैठने पर दुकानदार से पूछा। "एक बार फिर से हिसाब करिए।" "एक सौ चौव्वन रुपये का सामान हुआ है।" पुनः गणना करने के बाद दुकानदार ने कहा। "अच्छा! अब बताइए आपको मुझे दो सौ रूपये देने पर वापस कितने देने चाहिए थे?" छिय्पालिस रूपए।" थोड़ी देर मन में बुदबुदाने के बाद दुकानदार ने कहा। "एकदम ठीक! अब देखिए आपने मेरे हाथ में छप्पन रूपए दिए हैं।" "अरे! गलती हो गई।" "अभी आपकी जगह कोई और होता तो चुपचाप ले जाता।" पास खड़े दूसरे ग्राहक ने कहा। "यही तो नहीं होना चाहिए न, जो जिसकी मेहनत का है, हक का है, वह तो उसे ही मिलना चाहिए न।" "लेकिन इतना सोचता कौन है?" "आप तो सोचते हैं न? बस आप सोच लीजिए, धीरे-धीरे बाकी लोग भी सोच ही लेंगे, औरों की चिंता मत कीजिए।"


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