अनभिज्ञता
अनभिज्ञता
अनभिज्ञता/ बोधहीनता- लघुकथा
"आखिरकार दिवाली की सफाई हो ही गई। कोना-कोना, हर दीवार साफ हो गई। अब जाकर दिवाली मनाने का अर्थ सार्थक होगा। इस बार लक्ष्मी माँ को तो प्रसन्न होना ही है।"
वो तो है; मन को सुकून मिला वह अलग। अब देखना तुम्हारा हर काम दुगुनी गति से होगा। त्यौहार मनाने में भी दुगुना उत्साह आएगा।"
"लेकिन एक गलती हो गई मुझसे।"
"गलती! वह भी तुमसे?"
"हाँ! जिसने पूरी सफाई में मेरा पूरा-पूरा सहयोग दिया, ऐसे कैसे मैं उसे ही भूल गया?"
"किसे भूल गए?"
"यही, मेरी सहयोगी झाड़ू को।" "झाड़ू?"
"हाँ, झाड़ू।"
"इसने तो सारे जाले साफ कर दिए, लेकिन देखो जरा, इस चक्कर में इस पर ही सारे जाले चिपक गए और मुझे देखो मैं इसे ही साफ करना भूल गया जबकि झाड़ू तो मेरे हाथ में ही थी।"
