मार्गदर्शन
मार्गदर्शन
"तुम्हारे भाई का काम कैसे चल रहा है? हरीश।"
"आपके आशीर्वाद से बहुत अच्छा मैडम।"
अपार्टमेंट की एक रहवासी ने सेक्योरिटी गार्ड से आत्मीयता भरे स्वर में पूछा।
"अगर आप उस दिन बीच में आकर यह सुझाव नहीं देती, तो वह दान के नाम पर मिल रही राशि से सबके एहसान तले तो दबता ही, साथ ही दिन भर बैठे-बैठे निराश भी हो जाता।"
"यह तो तुम्हारा बड़प्पन है।"
"नहीं मेडम, आपने तो उसे नए रोजगार का सुझाव देकर, उसके स्वाभिमान को बचाने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से मजबूत भी कर दिया है। आपका यह एहसान हम कभी नहीं भूलेंगे।" सजल नयनों से भावुक होकर उसने कहा।
"अरे ऐसा मत कहो, मेरा तो सुझाव मात्र था। सुझाव फलीभूत तो उसकी मेहनत से हुआ है। उसकी मेहनत ही रंग लाई है। वैसे आज सोमवार है तो हम सब उसके आने का ही इंतजार कर रहे हैं ताकि ताजा फल व सब्जियाँ खरीद सके।"
"जरूर मैडम साढ़े दस तक वह यहाँ अपनी दुकान लगा देगा। कल उसने जिस मोहल्ले में दुकान लगाई थी, उसकी वहाँ अच्छी आमदनी हुई है। वह बहुत खुश है।
"अरे वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है।"
"बस उसे अभी-भी एक चिंता है।"
"वह क्या?"
"वह कह रहा था, कि वर्षा ऋतु में कैसे इस तरह से घूम-घूमकर दुकान लगा पाएगा?"
"इसका तोड़ भी शीघ्र ही निकल आएगा।"
"जी मेडम।"
"उसे कहो, बस अपना काम मन लगाकर करता रहे।"
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राजस्थान पत्रिका में 16/11/2025 को प्रकाशित
