STORYMIRROR

minni mishra

Abstract

3  

minni mishra

Abstract

हार की जीत

हार की जीत

3 mins
227

“अच्छा हुआ, कुंआरा ही जा रहा हूँ। वरना बीबी-बच्चों की फिकर मुझे वहाँ भी सताती ! पर, आभा को नहीं देखा ! काश, एकबार उसे जी भर देख लेता ! पता नहीं , उसकी शादी हो गई ... या ...?" 

तभी एकाएक ठहाके की आवाज गूँजी । सुनकर मैं चकित रह गया ! ठहाका ? यहाँ भी!

"वाह! जब घर से मुझे यहाँ लाया जा रहा था , सभी दहाड़ मार रहे थे। लेकिन, यहाँ पहुँचते-पहुँचते देखो, सबके मूड फ्रेश हो गए ! कैसे मजे में गप्पें मार रहे हैं । नहीं .... मैं ही मूर्ख हूँ ! जो मेरे लिए (माता-पिता ) तड़पते वो तो बहुत पहले ही चल बसे ! बाकी सगे -संबंधी से कितनी उम्मीद ! आह ! सच, बड़ा भाग्यशाली हूँ !वंश में रोने वाला कोई नहीं बचा ! " विचारों के इस सघन बादल में अभी उलझा ही हुआ था कि .......


कुछ लोग एक शव लेकर आ पहुँचे। उसे मेरे निकट रखा गया । चुकी यह गंगा का किनारा था इसलिए यहाँ कोई सामाजिक भेदभाव नहीं था। 

खुसुर-फुसुर की आवाज मुझे सुनाई पड़ने लगी। शव के समीप बैठी एक महिला ने फुसफुसाकर कहा , ” कुएँ के पास पानी के लिए लंबी कतार लगी थी। जब मैं वहाँ पहुँची, तो देखा, कुछ लोग इस युवती को अछोप (नीच जाति )कहकर, कुँए के चबूतरे से जबरन नीचे धकेल रहे हैं। वो धड़ाम से गिरी, उसका सिर पत्थर से टकराया और पलक झपकते बेचारी मर गई !” 


कान के साथ- साथ मेरी नज़रें भी वहीं टिकी थी। सभी लोग उसकी अंतिम विदाई के लिए तैयार खड़े थे । जैसे ही युवती के चेहरे पर नजर पड़ी मैं कांप उठा। उसके अधखुले ओठ मानो कुछ कह रहे थे , जैसे मुझे पहचानने की स्वीकृति दे रही थी।

“आभा.. ! तुम ! यहाँ...? ” मन ही मन मैं चिल्लाया ! उसे छूना चाहा, पर हाथ ने आज साथ नहीं दिया ! 

इसी बीच दूर से एक तेज आवाज .... “ सूर्यास्त होने वाली है...जल्दी से दाह-संस्कार शुरू करो।” 

आवाज, शायद, महापात्र की रही होगी ? 


आवाज सुनते ही आभा ने मुझसे कहा ” देखो, ईश्वर की महिमा अपरंपार है। आखिरकार , हम दोनों को उसने मिला ही दिया ! मुझे सब याद है, हमारे ब्याह को लेकर समाज और परिवार के सामने कई बार तुम्हें जलील होना पड़ा। पर, गांव वालों ने आखिरकार यही फैसला लिया , " ऐसी शादी हो ही नहीं सकती ! ब्राह्मण लड़के का विवाह शूद्र लड़की से ? असंभव ! यह तो सामाजिक मर्यादा के खिलाफ है !"


 उसके बाद, हम फिर कभी नहीं मिले !

इधर मेरे घर में हंगामा मचा गया । अम्मा बेहद नाराज हो गई । उसने मुझे तुम्हारे दुकान पर काम करने से साफ मना कर दिया। दो पैसे घर आने बंद हो गये। हर वक्त वह मुझे कोसते रहती ........

“तेरे बापू के गुजरते ही, मैंने पड़ोस के शर्मा जी से निहोरा कर तुझे दुकान की नौकरी पक्की करवा दी। ताकि घर में पैसों की कंगाली न हो । पर, तूने उस ऊँचे जात वाले शर्मा दुकान मालिक से दिल लगा बैठी।


अरे ... करमजली! तू औरत जात और शूद्र भी है! इन मर्दों का कुछ नहीं बिगड़ता, चाहे कितनी जगह मुँह मारे। हाय! सब सत्यानाश कर डाला ! 

तुझे तो सब पता था ,उनके घर हमारा पानी भी नहीं चलता है। अपने नल के चबूतरे पर हमें वो कभी चढ़ने नहीं देते । शर्मा जी का परिवार नामी खानदानी पंडित है और पैसे वाला भी। भनक भी नहीं लगेगी , वो हमें जिंदा दफन कर देंगे।” 


“ तुम्हें आज यहाँ अपने करीब देखकर, मैं बेहद खुश हूँ। सचमुच, इस जात-पात, अमीरी-गरीबी के बंधन से हम मुक्त हो गये ! आखिरकार , हमारी हारी बाजी को ईश्वर ने जीत में बदल ही दिया। देखो उधर, असली घर जाने की सारी तैयारियाँ हो चुकी है। जल्द ही मिलेंगे, हम अपने असली घर में... एक नये रूप में ...नव दंपति की तरह। ” 


देखते-देखते हमारी चिता दहक उठी। अब न कोई जात थी... और ना ही कोई धर्म ! ऊपर उठता हुआ धुआँ शून्य में एकाकार हो चुका था। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract