DEEPTI KUMARI

Horror Fantasy Thriller

4.0  

DEEPTI KUMARI

Horror Fantasy Thriller

हाईवे

हाईवे

5 mins
441


रात के 11 बजे

पार्टी से लौटते हुये तन्मय मुंबई पुणे हाईवे से गुजर रहा था। रात का समय था गाड़ी धीरे ही चल रही थी ।ये राते ये मौसम नदी का किनारा....गाने को सुन तन्मय बीच बीच में गुनगुना भी रहा था। मुम्बई पुणे का ये हाइवे हादसों का हॉट स्पॉट बन चुका था। आए दिन अखबारों में छपती थी यहां हादसों की खबरें...एक बात लोगों में चर्चा का विषय थी वो थी यहां होने वाली पैरानॉर्मल ऐक्टिविटीज....हां अकसर ये सुनने में आया था यहाँ कुछ ऐसी घटनाएं होती है जो लोगों को डरा देती हैं। सभी ने तन्मय को मना भी किया था कि इतनी रात गये वो इस रास्ते से न जाये उपर से उसने थोड़ी पी रखी थी मगर तन्मय को इन सब बातों से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वो भूतों में भरोसा नहीं करता था। वो हमेशा कहता था जिस दिन देख लूंगा..मान लूंगा।

रात थोड़ी सर्द थी...कोहरा भी हल्का था...हां सड़क साफ दिख रही थी। तभी उसे ऐसा लगा कि एकदम तेज धुआँ आया और धुयें में बहुत सारे लोग उसकी ओर बढ़े चले आ रहे है...बमुशिकल से उसने गाड़ी को सम्हाला...मगर..हादसों को कौन रोक सकता है तन्मय की गाड़ी ने एक बाइक वाले को टक्कर मारते हुये पेड़ से जा टकराई। उफ्फ कितनी जोरदार टक्कर थी सीट बेल्ट भी नहीं लगायी थी उसने...माथे से खून बह निकला उसके उधर वो बाइक वाला सड़क पर पड़ा कराह रहा था। उसे कराहते देख तनमय अपना दर्द और नशा सब भूल कर गाड़ी से उतरा।

"ओह गॉड...ओह नो....I'm so sorry brother...." घायल पड़े लड़के के पास पहुँचते हुये तन्मय ने कहा। उस लड़के ने हेल्मेट लगा रखा था तो इस वजह से उसकी जान बच गई थी नहीं तो हादसा इतना भयानक था कि उसका बच पाना मुश्किल था.. हां उसे हाथ में बहुत चोट आयी थी उसकी उम्र 20-21 साल रही होगी। तन्मय ने उसे सहारा देते हुये उठाया। दोनों आकर एक पेड़ के पास बैठ गये...दोनों ही घायल थे।

"I'm sorry...ये सब इतना अचानक हुआ मुझे सम्हलने का मौका नहीं मिला...अचानक से बहुत सारी धुंध आ गई और ये हादसा हो गया " तन्मय ने कहा।

"अभी ये इम्पोर्टेन्ट नहीं कि क्या हुआ कैसे हुआ...अभी हम दोनों को इलाज की जरूरत है.. अगर खून यूं ही बहता रहा तो कुछ भी हो सकता है...आह .."दर्द से कराहते हुये उस लड़के ने जवाब दिया।

" हां मगर मेरी गाड़ी और तुम्हारी बाइक दोनो ही डैमेज हो गई हैं..हम लोग जायें कैसे"? तन्मय ने कहा।

"किसी से लिफ्ट ले लेते है...उठते हुये लड़के ने कहा।

"हम्म ..ये सही कहा मगर यहां तो कोई आता दिख भी नहीं रहा है..." तन्मय ने जवाब दिया।

"मैंने सुन है ये हाईवे हॉन्टेड है...यहां अजीबो गरीब घटनाएं होती है डरावनी सी आवाजें आतीं हैं..." उस लड़के यानि प्रणीत ने कहा।

"ये तो अफवाहें हैं...ऐसी अफवाहों की आड़ में लोग लूट पाट कर देते है...मैं नहीं मानता भूत वूत में " तन्मय ने जवाब दिया।

"नहीं।...कभी कभी मानना पड़ता है.. अब इतने सारे लोग झूठ तो नहीं बोलते है..." प्रणीत ने कहा।

"हम दोनों पिछले आधे घन्टे से यहीं है मगर हमें तो कोई नहीं दिखा" तन्मय ने सर का बहता खून पोंछते हुये जवाब दिया।

" हो सकता है हमारे आस पास हो और हम देख न पा रहे हो..." प्रणीत ने कहा।

"फिलहाल तो मुझे एक गाड़ी आती दिख रही है जिससे हमें मदद मिल सकती है.." सड़क की ओर देखते हुये तन्मय ने कहा।

तन्मय उठकर सड़क पर आया और हाथ से गाड़ी को रुकने का इशारा किया मगर गाड़ी अपनी स्पीड से आगे बढ़ती चली गई।

"उफ्फ...कैसे लोग है.. मदद करना ही नहीं चाहते...गाड़ी ऐसे निकाल ले गये जैसे मैं दिखा ही नहीं..."दर्द से तन्मय बोला। कुछ देर बाद एक और गाड़ी निकली तन्मय ने उसे भी रोका मगर वो भी नहीं रुकी...हताश होकर और दर्द से कराह कर तन्मय बैठ गया। दोनों करीब आधे घन्टे तक वही बैठे रहे बात करते रहे एक दूसरे के बारे मे पूछते बताते रहे क्योंकि बातों में ध्यान देने से दर्द पर ध्यान नहीं जा रहा था।

"ऐसे कब तक बैठे रहेंगे..मोबाइल भी टूट गया है नहीं तो कॉल करके एंबुलेंस बुला लेता" हाथ को सहारा देते हुये प्रणीत बोला।

"अरे हां मेरा ध्यान ही नहीं गया...मेरी गाड़ी के डैशबोर्ड में एक फोन पड़ा है.. की पैड वाला.. ये वाला तो मेरा भी टूट गया.. मैं लेकर आता हूँ उसे.. "कहकर जैसे ही तन्मय उठा वो कराह उठा.. पैरो में चोट लगी थी उसके अब धीरे धीरे दर्द उभर रहे थे सभी।

"तुम रुको मैं लाता हूँ.. चोट तुम्हारे भी बहुत लगी है और तुम बराबर चल फिर रहे हो ऐसे दिक्कत हो जायेगी...मैं लाता हूँ" कहकर प्रणीत उठा और धीरे धीरे चलते हुये गाड़ी तक पहुँचा। जैसे ही वह गाड़ी तक पहुँचा उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी उसने एक निगाह से तन्मय की ओर देखा।

"क्या हुआ मिला नहीं...मैं आऊं क्या"? तन्मय ने वहीं से कहा।

इधर न जाने प्रणीत को क्या हुआ वो तन्मय को देखे जा रहा था तन्मय अपनी जगह से उठा और उसकी ओर बढ़ा ...वैसे ही प्रणीत बेहोश होकर गिर पड़ा।

"अरे प्रणीत...क्या हुआ तुझे..." तन्मय घबराया हुआ प्रणीत के पास आया उसे बेहोश देख तन्मय ने गाड़ी से पानी की बोतल निकालने की कोशिश की लेकिन जैसे ही उसकी निगाह ड्राईवर सीट पर गयी उसकी आंखें खुली की खुली रह गयीं...वहां एक लाश थी जिसे देखने के बाद किसी का भी होश खोना लाजिम था...क्योंकि वो लाश किसी और की नहीं खुद तन्मय की थी...हां तन्मय की...इस हादसे में तन्मय अपनी जान गंवा चुका था और इस बात की खबर खुद उसे ही नहीं थी.. जिन भूतों पर वह भरोसा नहीं करता था...आज वो खुद वही बन चुका था।

         



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