DEEPTI KUMARI

Abstract

4.0  

DEEPTI KUMARI

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फर्क पड़ता है न

फर्क पड़ता है न

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मोबाइल का नोटिफिकेशन बार भरा पड़ा था शुभकामनाओ और तारीफों से।फेसबुक से ईमेल से तारीफों का अम्बार लगा रहता था और लगना भी चाहिये था भई गौतम की पहली ही किताब 'गंवार कहीं का' युवाओं में बेहद चर्चित थी...बेस्टसेलर में शामिल हो चुकी थी। शुरु शुरु में पाठकों द्वारा की गयी एक प्रतिक्रिया भी उसे इंच भर उछला देती थी मगर अब उसे आदत हो गयी थी हर रोज न जाने कितने ईमेल कितने ही कमेंट आते थे पहले तो गौतम लाइक और रिप्लाई कर देता था मगर अब....अरे भई अब वो सेलिब्रिटी राईटर बन गया ऐसे कैसे हर किसी रिप्लाई दे देता।

रोज की तरह उस दिन भी गौतम ने चाय का कप हाथ में लिया और नोटिफिकेशन चेक करने लगा कोई दिल कोई 🌹 कोई शायरी से अपनी प्रतिक्रिया दे रहा था किसी ने उसकी ही किताब की पंक्तियां लिखी थी किसी ने उससे मिलने की गुजारिश की तो किसी ने उसे तरह तरह की उपाधियां दी हुई थी.... गौतम ने एक सरसरी निगाह डाली और मैसेंजर चेक करने लगा उसमें भी यही हाल था तमाम मैसेज पड़े थे इन सबके बीच उसकी निगाह एक मैसज पर गयी किसी ने उसे पानी पी पी कर कोसा था। कोई नेहा थी जिसने बाल्टी भर भर के आलोचना लिखी थी ।

"ये भी कोई किताब हुई जैसा नाम बैसी किताब....पता नही क्या हो गया है लोगो को कुछ भी पढ लेते है.. ये सोशल मीडिया की देन है कोई भी उठा गिरा राइटर बन जाता है" ऐसे कुछ और सुलगा देने वाले कमेंट थे शुरु में गौतम ने सोचा कि इग्नोर करे फिर पूरा मैसज पढकर उससे रहा नही गया और उसने रिप्लाई किया।

"अगर इतनी ही लेखन की जानकारी है तो खुद कुछ क्यूँ नही लिख देती मोहतरमा पाठको का भला हो जयेगा...." 

सामने वाला भी तैयार था तुरन्त रिप्लाई आया

"अब हर कोई राइटर बन जायेगा तो पढे़गा कौन ...आपका लिखना तो बेकार हो जायेगा"

गौतम ने भी जवाब दिया "तो आप कोई अच्छा राइटर ढूँढिये उसे पढियेगा मुझ पर कृपा न करें "

इस बार उधर से स्माइली आया और साथ ही एक मैसज "तो इंसान ही हैं आप.......मुझे लगा भगवान हैं"।

गौतम समझ नही पाया और उसने पूछा "जी समझा नहीं ?"

"तो फर्क पड़ता है आपको ...मुझे लगा आप भगवान हैं और आपको प्रशंसा और निंदा से कोई फर्क नही पड़ता मगर आप तो इन्सान निकले मेरी कही कड़वी बातें असर कर गयी आप पर" नेहा के इस कमेंट से गौतम थोडा रुका इतनी देर में एक और मैसज आया "पिछ्ले तीन महीने से मैं आपको लगातार मैसज ईमेल भेज रही हूं आपकी किताब पढकर मुझसे रहा नहीं गया सोचा आप तक ये पहुचा दूं कि आप कितना अच्छा लिखते हो और ये कहानी मुझे किस हद तक पसंद आई ।अब एक लेखक के लिये उसके पाठक की प्रतिक्रिया कितनी मायने रखती है यही सोच आपको लिखा मगर आपका कोई जवाब नहीं आया।हर रोज यही सोच लिखती थी कि शायद आज आप रिप्लाई देंगे लाइक करेंगे मगर ऐसा नही हुआ आप तो उस उंचाई तक पहुच गये जहाँ से जमीन दिखाई नही देती तो आपको हम से कहां दिखते।खैर आपको प्रशंसा से तो फर्क नही पड़ता आप पर बस अब निंदा से भी न पड़ें तो भगवान ही बन जायेगें ।और माफ किजियेगा अपशब्दों के लिये इंसान हूं न ऐसे ही लिख दिये ,बहुत ही अच्छा लिखते है आप यूं ही लिखते रहिये हम पढ़ते रहेंगे "।ये मैसज लिख नेहा ऑफ़लाइन हो गयी और गौतम खामोश......!



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