STORYMIRROR

दीप्ती ' गार्गी '

Abstract Classics Inspirational

4.4  

दीप्ती ' गार्गी '

Abstract Classics Inspirational

गुलाबी

गुलाबी

5 mins
519


नारी सशक्तिकरण...आजकल चर्चा का विषय बना है सब इस पर अपने विचार देते है तर्क देते है वाद विवाद करते है और इन बड़े बड़े शब्दों में कहीं दब जाती है नारी और उसका सशक्तिकरण की असलियत। हमारे पास उन तमाम महिलाओं के संघर्ष की कहानियां है जो सफल है मगर आज भी अछूते है उस नारी के संघर्ष की दास्तां से जो किसी बड़े पद पर तो नही है मगर हर रोज अपने लिए संघर्ष करती है हर रोज नई चुनौतियां मिलती है कभी अपनी पहचान के लिए कभी अपने अस्तित्व के लिए कभी अपनी रोजी के लिए एक नया संघर्ष करती है क्योंकि वह अपने कर्तव्य को तो जानती है मगर अधिकारों को नहीं...।

उन दिनों मैं एक किताब लिख रही थी गुलाबी.. इस किताब का विषय था औरतों के साथ जोड़ा गया रंग गुलाबी और मैं इस किताब के जरिए उस रंग को परिभाषित करना चाहती थी कि गुलाबी रंग केवल कोमलता का पर्याय नहीं बल्कि उस में छुपे त्याग के सफेद रंग क्रोध का लाल रंग को सामने लाना चाहती थी। उसके लिए मुझे सशक्त किरदार की जरूरत है प्रेरणा के लिए मैंने कई वीरांगनाओं की राजनैतिक हस्तियों की उद्योग जगत के जगत सिनेमा और बहुत सारी सफल महिलाओं की बायोग्राफी ऑटो बायोग्राफी को पढ़ा। मैं बार बार ड्राफ्ट लिखती और हटा देती मगर अभी भी तस्वीर कुछ साफ नही हुई। घड़ी में 11:55 बज चुके थे और समय काफी हो गया था और घर अस्त व्यस्त पड़ा था सारा काम भी मुझे करना था क्योंकि विमला.. मेरी कामवाली आज काम पर नहीं आने वाली थी क्योंकि 3 दिन पहले ही उसके पति की मृत्यु हुई थी ।मैने समय देखा और घर की हालत....दोनो के 12 बजे थे मौके की नजाकत को देखते हुए मैने अपनी डायरी कलम साइड में रखा और काम करने के अपने अंदर के लेखक को कुर्सी पर ही छोड़ झाड़ू के अपने अंदर की गृहणी को उठाया कि तभी डोरबेल बजी...।

"अब कौन आ गया" उदासीनता से जैसे ही दरवाजा खोला सामने विमला खड़ी थी। उसे देख मुझे आश्चर्य हुआ... मैंने सोचा कम से कम महीने भर तो आयेगी नही क्योंकि लाखन की मौत को अभी दो दिन ही हुए है ऐसे में विमला का यहां आना थोड़ा हैरान करने वाला था।

"शायद पैसे की जरूरत होगी इसलिए आई होगी" मन ही मन सोचा।

"दीदी आज देर हो गई आने में कल से समय पर आ जाऊंगी" विमला ने अंदर आते हुए कहा।

विमला ने आते ही पहले की तरह सामान ठीक से रखना शुरू किया मैं एक टक उसकी उदास आंखे और मायूस चेहरे को देख रही थी मैं उससे बात तो करना चाहती थी मगर शब्द चयन नही कर पा रही थी ।कुछ देर सहज होने के बाद मैंने कहा " अभी कुछ दिन आराम कर लेती विमला...मैं यहां मैनेज कर लेती"।

"आराम...दीदी आराम करूंगी तो खाऊंगी क्या...आज नही तो कल आना तो था ही.."

"क्या हो गया

था लाखन को...अचानक से कैसे?" मैने उसके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा।

"दीदी बहुत मना किया उनको शराब पीने को मगर वो नही मानते खुश होते तो पीते दुखी होते तो और ज्यादा पीते..इतना पिया कि शराब उनको ही पी गई.."कहकर सुबक पड़ी विमला मैने पानी दिया उसको और बिठाया।

" विमला हिम्मत रखो रो मत विमला...तुम चाहो तो घर जा सकती हो"

" नाही दीदी...हम ठीक है..क्या है ना दुख तो हमको भी होता है मगर हम आदमियों की तरह शराब पीकर भुला नहीं सकते...अब तो सारी उम्र इस दुख के साथ जीना है.."

"समझ सकती हूं ...विमला बच्चो के सिर से बाप का साया चला ऐसे में कितनी मुश्किल होगी समझ सकती हूं.."

"दीदी जब से उन्होंने शराब को थामा बाकी सबसे नाता तोड लिया.. तीनों बच्चों को जिम्मेदारी अकेले ही उठाई हैं..बस दुनिया की नजर में अब उठाऊंगी...(आंसू पोंछते हुए) बच्चों को बाप की कमी तब महसूस होती थी अब नही होगी..लाखन के जाने से बस मेरे कपड़ों का रंग बदल गया जिंदगी का नहीं दीदी मैं तब भी अकेली ही थी...और अब भी वो तो शराब को जिंदगी मानते थे और वो उन्हे लेकर चले गई " कहकर उसने एक आह भरी।

"विमला पानी पी लो बैठो यहां.." मैने उसे पानी दिया तो मुझे देख कर कहने लगी "दीदी सब हंसते है मुझ पर ताना देते है कि पति को मरे दिन नही हुआ और मैं काम पर निकल पड़ी..मुझे पति के मरने का दुख नहीं बल्कि पैसे कमाने की पड़ी है..और मैं क्या करूं दीदी...उसके लिए रोऊं जो मेरी दुनिया छोड़ कर गया या उनके लिए जो दुनिया में मेरे लिए छोड़ कर गया...(सुबक कर) मैं पैसे ना कमाऊं तो मेरे बच्चे क्या खाएंगे जो कुछ भी था सब लाखन की शराब में शराब छुड़ाने में और उसके इलाज में खर्च हो गया मेरे पास सिवाय आंसू के कुछ नही बचा मैं मेरे बच्चो को भूख से रोता देख लाखन की तरह शराब पीकर सो तो नही सकती... "

मैं एक टक विमला के चेहरे को देख रही थी उन उदास आंखों में दर्द के साथ हिम्मत भी दिख रही थी मुझे । वो जो गुलाबी रंग जिसे मैं ढूंढ रही थी वो दिख रहा था मुझे विमला की आंख में गुस्से का लाल रंग था और त्याग का सफेद रंग भी ...विमला ने अपनी झाड़ू उठाई और मैंने अपनी कलम क्योंकि मुझे मेरी नायिका मिल चुकी है।

और ऐसी नायिकाएं हम सभी के आसपास है जो कितना कुछ करती है और उन्हें पहचान नहीं पाते।औरतों के साथ त्याग और सहनशीलता शब्द ऐसे जोड़ दिया है जैसे ये सिर्फ उनके लिए बना रहा है।और हमारे वजूद साथ जुड़े इस शब्द की वजह से हम कितना कुछ सहन करते है कितना कुछ त्याग देते है हमे खुद ही इसका एहसास नहीं होता और शायद होगा भी नहीं जब तक हम इन दो शब्दो को स्त्री होने का पर्याय मानते रहेंगे।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract