जवाब की तलाश में सवाल जवाब की तलाश में सवाल
एक मैं हूँ एक टॉफ़ी तक नहीं खिला पाई एक मैं हूँ एक टॉफ़ी तक नहीं खिला पाई
“आह, छोड़ो, जाने दो, ख़ुदा के लिए !” दरवाज़े से भिड़ा दिया गया कुज़्मा चीखा। “आह, छोड़ो, जाने दो, ख़ुदा के लिए !” दरवाज़े से भिड़ा दिया गया कुज़्मा चीखा।
अपने अंश को देखकर ही महिला माँ बन जाती है, अपनी ममता से एक जान सींचने वाली माँ। अपने अंश को देखकर ही महिला माँ बन जाती है, अपनी ममता से एक जान सींचने वाली माँ।
शायद होगा भी नहीं जब तक हम इन दो शब्दो को स्त्री होने का पर्याय मानते रहेंगे। शायद होगा भी नहीं जब तक हम इन दो शब्दो को स्त्री होने का पर्याय मानते रहेंगे।
उसे लगा आज सिर्फ़ बरगद का वह पेड़ ही नहीं बल्कि जिंदगी में और भी बहुत कुछ पीछे छूट गया... उसे लगा आज सिर्फ़ बरगद का वह पेड़ ही नहीं बल्कि जिंदगी में और भी बहुत कुछ पीछे छूट...