ममत्व का सफर
ममत्व का सफर
मेरा बच्चा कैसा है ?
कहा है मेरा बच्चा ?
मुझे उससे मिलना हैं, मुझे देखना है उसे, वो कैसा है ? मेरा बच्चा .....मेरा बच्चा ..... " डॉक्टर केे आते ही सुमन ने सवालों की झड़ी लगा दी थी।
जबसे सुमन को एहसास हुआ था कि उसकी कोख में एक नन्ही सी जान करवट ले रही है। उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था घंटों अपने होने वाले बच्चे को महसूस करती, उससे बतियाती, बच्चे की हलचल अपने गर्भ में पाकर अपने आप में ही संवर जाती थी वो।
घर में किलकारियां गूंजने वाली है ये सुनकर तो सब बड़ी बहु की बलइया लेने और इस ख़ुशी के पल के इंतज़ार में हर दिन हर घडी हर पल गिनने लग गए थे परिवार वाले।
पांचवे महीने में जब सुमन मायके आयी तब उसने डॉक्टर से चेक अप करवाया। सब नार्मल है बस रूटीन चेक के लिए आते रहिएगा ....डॉक्टर ने कहा। तो सुमन और उसकी माँ को राहत मिली।
जैसे तैसे समय बितता गया और नौवां महीना लग गया अब तो एक एक पल जैसे मुश्किल से कट रहा था।
"माँ सर में दर्द हो रहा है बहुत दर्द हो रहा है एक दिन सुमन ने माँ से कहा।
"ला तेल की मालिश कर देती हुँँ, आराम मिलेगा"।
माँ के हाथों का स्पर्श पाकर सुमन का सरदर्द छूमंतर हो गया और वह गहरी नींद में सो गई।पर जब रात को ढाई बजे अचानक माँ की आँख खुली -
"अरे ! सुमन के पापा अरे, सब उठो देखो सुमन को फिट्स आ रहे हैं अस्पताल ले चलो "
" हाई ब्लड प्रेशर है, और क्रिटिकल कंडिशन, माँ और बच्चे में से किसी एक को ही बचा सकते हैं, आप बताइये किसे बचाये "।
डॉक्टर ने जब कहा सुमन के माता - पिता सेे कहा उनके आँखों के सामने अँधेरा -सा छा गया, खुद को किसी तरह संभालते हुए सुमन कि सास और पति को बुलाया डाक्टरों ने.बताया नार्मल डिलीवरी कराना मुश्किल है तो नाजुक हालत में सी -सेक्शन से डिलीवरी हुई।
जब दो दिन बाद सुुुमन को होश आया और उसे पता चला कि उसे बेटा हुआ है तो अपने बच्चे को अपने पास ना पाकर वह अपना आपा खो बैठी।
"मेरा बच्चा कहा है, कैसे आप एक माँ को अपने बच्चे से आप अलग कर सकते हैं ?" सुमन शुरू हो गई।
"बच्चा ठीक है सुमन, बेटा हुआ है " हरीश (पति ) ने कहा।
"बच्चे को इन्फेक्शन हो सकता है अभी नहीं मिल सकती आप।
"पति और डॉक्टर के कहने पर भी सुमन नहीं मानी तो पेन किलर देकर डॉक्टर ने उसे सुला दिया।
अगले दिन सुबह
"मुझे मेरा बच्चा चाहिए, मेरे बच्चे से मिलना हैं मुझे कोई बताता क्यों नहीं क्या हुआ है ?मेरा बच्चा ठीक तो है न !! "
कुछ देर बाद जब नर्स ने उसके हाथों में एक नन्ही -सी जान सौंपी यह कहते हुए कि" बधाई हो !बेटा हुआ है आपको "
सुमन जैसे फिर से जी उठी।
अपने नवजात शिशु को अपनी बाहों में थामने के लिए तड़प उठी। नौ महीनें के हर दिन, हर पल का इंतज़ार, हर पल एक जीवन जो उसने सींचा था अपनी कोख़ में आज मासूम चेहरे, छोटी - छोटी सी हथेलिओं, सर पर हल्के से नर्म बाल, गुलाबी से गाल के रूप में उसके आँचल में आ गए थे। पलकों के कोरों से आँसू लुढ़क गए। अपनी अधखुली अखियों से जब बच्चा अंगड़ाई - सी लेता मुस्कुराया तो बच्चे को सीने से लगाते हुए चुम लिया मानो एक माँ का पुनर्जन्म हो गया। अमूल्य निधि को पाकर अपनी सारी तकलीफ, पीड़ा सब फीकी लग रही थी उसे। उसे तो ऐसा लग रहा था मानो "भगवान से लड़ -झगड़ कर मेरे बच्चे ने मुझे जीवनदान दिया है।
सुमन को चाँद का एक हिस्सा आज उसके आँचल में आ गया हो ये लगा और इस तरह सुमन ने ममत्व का सफर तय किया।
"हमने भी तो बच्चों को जन्म दिया ही है क्या बड़ी बात है "। अक्सर यही सुना होगा आपने पर सच कहु तो जब- जब इस दुनिया में एक मासूम जान आती है तो उसके साथ साथ एक औरत का भी नया जन्म होता है माँ के रूप में। शायद इसलिए ही माँ बनने की ट्रेनिंग नहीं लेनी पड़ती अपने अंश को देखकर ही महिला माँ बन जाती है, अपनी ममता से एक जान सींचने वाली माँ।
