मैं विलेन नहीं हूं
मैं विलेन नहीं हूं


"हेलो... राकेश"
"हाँ रिया, बोलो"
"अरे यार रोहन को समझाओ ना, जब देखो लड़ता रहता है। पढाई वढाई करनी नहीं, जब देखो टीवी और मोबाईल से चिपके रहता है।"
"स्पीकर पर लगाओ, मैं बात करता हूँ। हेलो..रोहन मम्मा की बात मानो वरना घर आकर तुम्हारी खैर नहीं।"
रिया का यह रोज का काम था, हर छोटी बड़ी बात पर राकेश को फोन करना। उसे लगता था बच्चे पापा से डरते हैं तो वे उनकी बात मानेंगे। पर उसे इस बात का एहसास नहीं था कि वह खुद कितनी बड़ी गलती कर रही है। या तो फोन पर या घर आने पर वह हमेशा बच्चों की शिकायत राकेश से करती। राकेश भी दिनभर के काम से जब थककर घर आता रिया की शिकायतों से तंग आकर सारा गुस्सा बच्चों पर निकाल देता।
रिया और राकेश के दो बेटे थे, बड़ा रोहन 7 साल का और छोटा रियांश 5 साल का। बच्चे अभी छोटे थे, सही गलत का फर्क नहीं समझते थे। राकेश के इस तरह के बर्ताव की वजह से वे अपने पापा के करीब जाने से भी डरने लगे। पापा का नाम सुनते ही उनके मन में एक विलेन की छवि छा जाती।
बात बात में रिया धमकी देती, ठहरो पापा को फोन लगाती हूँ। आने दो पापा को मार पड़ेगी तब ही सुधरोगे। पापा के नाम से बच्चे डर सहम जाते थे।रिया को इस बात की भनक तक नहीं थी कि वह जाने अनजाने में कितनी बड़ी गलती कर रही है। जब कभी छुट्टी के दिन राकेश बच्चों को प्यार से अपने पास बुलाता तो भी बच्चे दूर भाग जाते। राकेश को अब इस बात का एहसास होने लगा कि उसकी सख्ती की वजह से बच्चे उससे दूर हो रहे हैं।
एक दिन की बात है, रोहन की मैम ने रिया को स्कूल बुलाया, मैम ने रिया से कहा "रिया रोहन दिन ब दिन बद्तमीज होता जा रहा है| हर वक्त क्लास में बच्चों से लड़ता झगड़ता रहता है। इतने दिनों से मैं चुप थी कि बच्चे हैं ज्यों ज्यों बड़े होंगे समझ जायेंगे| पर आज तो इसने हद ही कर दी, एक बच्चे को टेबल के ऊपर से धक्का दे दिया ये तो शुक्र करो उसे ज्यादा चोट नहीं आई।"
रिया का गुस्सा तो जैसे सातवें आसमान पर चढ गया, उसने कहा घर चल तेरी खबर लेती हूँ।
जैसे ही राकेश ऑफिस से आया रिया हो गई शुरू|
"बस रिया, चुप करो! यह क्या लगा रखा है तुमने रोज का? ऑफिस से घर आया नहीं कि शुरू हो जाती हो| बहुत हो गया तुम्हारा, माँ हो तुम, तुम्हारा काम है बच्चे को प्यार से समझाओ। हर वक्त मेरे कान भरती रहती हो। मैं कुछ दिनों से ऑफिस के काम से वैसे ही परेशान हूँ, ऊपर से तुम्हारा रोज का ड्रामा| बच्चे मुझे विलेन समझने लगे हैं, मेरे पास आने से भी डरते हैं। बच्चों की नजरों में मुझे विलेन बनाना बंद करो रिया।"
आज रिया को अपने किये पर अफसोस होने लगा| वह समझ गई कि वह कितनी बड़ी गलती कर रही थी और भविष्य में इसका बच्चों पर क्या असर होता। तो सखियों अगर आप भी कर रही हैं यही गलती तो कृपया बचें। यह सच है कि बच्चों को संभालना माता पिता दोनों का फर्ज है। यह भी जरूरी है कि बच्चो के मन में सही गलत के प्रति डर हो लेकिन साथ में यह भी जरूरी है कि यह डर एक सीमित तक रहे| बच्चों को डरा धमकाकर नहीं प्यार से समझाना जरूरी है और किसी एक के प्रति जरूरत से ज्यादा डर भी बच्चों को गलत रास्ते पर ले जाता है।