देख तमाशा दुनिया का
देख तमाशा दुनिया का
रविवार की सुबह...छुट्टी का दिन आसमान में हल्की गुनगुनी धूप। लोगो से खचाखच भरी बस में खड़ी मैं सोच रही थी कि कोई कहीं उतरे और मुझे सीट मिले या कोई जेंटलमैन बन कहे “आप बैठ जाएं मैं खड़ा हो जाता हूं” मगर ये दोनों बातें कल्पना मात्र निकली। अब खड़े होकर यात्रा करने और बैठे हुए लोगो को देख सुलगने के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था।
सुबह का वक़्त था लोग तरह तरह की चर्चाएं कर रहे थे कुछ युवा देश की आर्थिक स्थिति पर अपने विचार रख रहे थे कुछ मोबाइल स्क्रीन पर आँख गड़ाए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। मैं उन सभी को देख कुछ किरदार कुछ कहानियां सोचने लगी। मेरी काल्पनिक यात्रा को तब ब्रेक लगी जब कंडक्टर ने “टिकट” की आवाज़ लगाई। मैंने 100 का नोट दिया कंडक्टर ने शेष रुपए पीछे लिख टिकट थमाया। मैं फिर से काल्पनिक दुनिया की यात्रा करती कि कंडक्टर की तल्ख आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा “अरे ये नोट फटा हुआ है नहीं चलेगा दूसरा दो तभी टिकट बनेगी।"
मैंने देखा एक 55-60 के व्यक्ति जो थोड़ा आर्थिक और शारीरिक रूप से कमजोर लग रहे थे, हाथ जोड़ कंडक्टर के सामने खड़े थे।
“अगर रुपए नहीं है तो उतर जाओ….अभी! फटा नोट नहीं चलेगा” कंडक्टर की आवाज़ से पूरी बस का ध्यान उन पर गया। उन व्यक्ति के पास 50 का एक फटा नोट था जिसे लेने से कंडक्टर ने मना कर दिया था और वो उसे टिकट बनाने की गुहार लगा रहे थे।इस बात पर सबने अपनी अपनी राय दी कोई बोला “अरे बना रहने दो ऐसे हीं बिठा लो” कोई बोला “अरे बना दो टिकट पैसे फिर ले लेना”
कंडक्टर ने बस रुकवाई और उन्हें वहीं उतारने लगा वो बुजुर्ग व्यक्ति अनुनय विनय करने लगे। रास्ता भी सुनसान था ऐसे में वो बेचारे कहां जाते। मैं बस में बैठे सभी सज्जनो और देश की आर्थिक स्थिति के जानकर युवाओं की ओर देखने लगी कि शायद कोई मदद को आगे आए मगर ये सब भी कल्पना मात्र निकला यहां भी मुंह आगे और हाथ पीछे रखने वाले लोगो की भीड़ थी....मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कंडक्टर से बोला आप टिकट मेरे बचे रुपए में से बना दो मगर इन्हे उतारो मत। मेरी बात सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और सब किसी तमाशबीन की तरह मुझे देखने लगे मैं असहज होते हुए खिड़की से बाहर देखने लगी। कुछ देर में उन बुजुर्ग व्यक्ति को उतरना था वो उतरे और मैंने देखा उनकी आँखो में आँसू थे और वो मुझे कृतज्ञता भरी दृष्टि से देख रहे थे।
कुछ देर बाद मुझे भी उतरना था मैंने कंडक्टर के पास जाकर कहा बस रोक दो मुझे उतरना है। कंडक्टर मुझे देख बोला तुम वो ही हो 100 के नोट वाली।मैंने हां में सिर हिलाया….उसने अपने बैग से 50 का नोट निकाला और बोला ये आपके बचे रुपए। मैंने कहा रुपए तो बचे नहीं। उसने कहा मैंने उनकी टिकट नहीं बनाई थी….तो आपके रुपए बच गए हैं...और हां रख लो इन्हे तुम्हारे पास रहेंगे तो तुम किसी की मदद तो करोगी….खुश रहो बिटिया। तमाशबीन भीड़ की निगाह कंडक्टर पर घूम गई….उन्हें एक और तमाशा मिल गया देखने को…...