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Kunda Shamkuwar

Abstract Others

4.0  

Kunda Shamkuwar

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गेट टुगेदर

गेट टुगेदर

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वह लेडीज़ का एक छोटा सा गेट टुगेदर था…

पाठक कहेंगें इसकी क्या कहानी होगी भला? पता नहीं आजकल की लेखिकाएँ किसी भी टॉपिक पर लिखना शुरू कर देती हैं… या तो उनके पास टॉपिक नहीं हैं या फिर उनका टैलेंट चूक गया हैं… 

पाठक यह भी तो कह सकते हैं कि नयी पीढ़ी के लेखिकाएँ कुछ नया भी तो लिख सकती हैं…

हाँ, तो वह लेडीज का एक गेट टुगेदर था… हमेशा की तरह इस बार भी वे अपने लिए कुछ वक़्त चुराकर ले आयी थी …

हाँ, बिल्कुल… 

क्योंकि महीने में एक बार होने वाला गेट टुगेदर हमेशा ही संडे को रहता है। अब संडे मतलब पूरी फैमिली की एक लंबी विश लिस्ट वाला दिन… 

नौकरी के चलते प्लान किए अपने ढेरों काम…और भी न जाने क्या क्या… अरे, पतियों की बात कहना तो भूल ही गयी… पाठक फिर से नये लेखिकाओं के बारें में कुछ कहेंगें की लिखना तो आता नहीं…कुछ भी आंय बाँय लिखती रहती हैं…

हाँ, तो वह लेडीज़ का एक छोटा सा गेट टुगेदर था…

उन लेडीज़ के लिए क्या वह फ़क़त एक छोटा सा गेट टुगेदर था या उससे भी बड़ी कोई बात थी?

हाँ, शायद…

कुछ गुनगुनाना… 

थोड़ा गाना… 

थोड़ा हँसना…

अलग अलग पोज़ देकर फोटोज़ खिंचवाना…

उन हँसी के पलों की इंस्टा पर रील बनवाना…

उन सारी छोटी छोटी बातों को एंजॉय करना… 

लेकिन मेरे जैसी लेखिका को उसमें और भी कुछ नज़र आता हैं…शायद वह कामकाज़ी लेडीज़ इसी बहाने अपने घर और प्रोफ़ेशन के स्ट्रेस को कम करने की कोशिश तो नहीं करती हैं?

आज़ादी की क़ीमत हम औरतों से बेहतर कोई और जान सकता हैं भला?

शायद वह खुली हवाओं में साँस लेना चाहती हो?

बेरोकटोक अपने मन का कुछ करना चाहती हो?

कुछ बेपरवाही के पल वह सिर्फ़ अपने लिए जीना चाहती हो?

अपने लिए आसमाँ का एक छोटा सा कोई टुकडा ही ढूँढ लेना चाह रही हों?

शायद हाँ…शायद नहीं…

आपका क्या ख़याल हैं?


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