Pawan Gupta

Horror

3.5  

Pawan Gupta

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एक शाम

एक शाम

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काली माई की जय ...काली माई की जय ! यही आवाज़ पूरे रास्ते में गूंज रही थी, हवाओं में गुलाल उड़ रहे थे, और लोहबान के धुएँ की खुशबु चारों ओर फ़ैल रही थी, और नाचते हुए लोग इस मंजर की ख़ुशियों को एन्जॉय कर रहे थे। बड़े - बड़े ढोल बज रहे थे, शाम के 7 बजे होंगे, अंधेरा होने ही वाला था, अमावस्या की रात थी, सब लोग काली पूजा को अच्छे से मनाकर मूर्ति विसर्जन के लिए जा रहे थे। हर तरफ काली माता की जय काली माता की जय गूंज रहा था। हम तीनों भाई पापा के साथ अपनी दुकान पर ही बैठे हुए थे, तभी वह से मूर्ति विसर्जन करने वाली भीड़ वहां से गुजर रही थी, मेरे दोनों भाई मूर्ति विसर्जन में पापा से पूछ कर चले गए।

पापा ने सोचा यही पास के तालाब में मूर्ति विसर्जन होना है, तो आधे घंटे में वो लोग घर वापस आ ही जायेंगे।

पर उन लोगो के गए एक घंटे से अधिक हो गया, पापा बहुत परेशान होने लगे, फिर पापा ने दुकान बंद करके दोनों भाइयों की खोज करने निकले,आखिर बात क्या हुई इस बात का डर तो मन में था ही क्योंकि भाई छोटे ही थे।मैं भी पापा के साथ ही चल दिया क्योंकि मुझे भी घूमना था।


रात के करीब 8 बजे होंगे, पर सड़को पर भीड़ ना के सामान ही था, मौसम में हल्की गर्मी थी, पहले हम घर के नज़दीक वाले तालाब पर गए ,पर वहां कोई भी नहीं था,चारों तरफ घना अंधेरा और तालाब घने जंगलों के बीच बहुत डरावना लग रहा था, वहां किसी का ना होना और डर बढ़ा रहा था।

हम वहां से निकलकर नदी की तरफ चल दिए, पापा को लगा वो लोग तालाब में विसर्जन ना करके मूर्ति को नदी में विसर्जन करने का प्लान किया हो, हम चलते - चलते नदी पर भी पहुंच गए, वहां भी कोई नहीं था। घर से नदी तक़रीबन 1 किलोमीटर होगा , मैं इतना चलकर थक गया था, वहां से वापस हम घर को वापस आने लगे, वापसी मैंने पापा से कहा पापा मैं थक गया हूँ, पापा ने वही पास में बने चबूतरे की तरफ इशारा करते हुए बैठने को कहा। हम दोनों वही बैठ गए, उस वक़्त का नज़ारा बहुत ही डरावना लग रहा था। जहाँ हम बैठे थे, उसकी कुछ दूरी पर डोली चलती थी, जिसमे नदी से निकली हुई रेत को दूसरी जगह भेजा जाता था, ये डोलियाँ बिजली से चलती थी, जब भी डोलियाँ आती तो आवाज़ करती उस अंधेरे में उसकी आवाज़ उस शांत वातावरण को चीरती हुई बहुत डर पैदा करती थी।

सड़क के एक तरफ जंगल दूसरी तरफ खुले दूर तक खुले खेत फैले हुए थे, शायद 9 बज गये होंगे, पापा वहां बैठे बैठे ही तम्बाकू निकालने लगे।

तो दूर से एक आवाज़ आई, दूर उस खेत में से एक आदमी ने जोर से आवाज़ देकर बोला " मुझे भी थोड़ा तम्बाकू देना " पापा ने तम्बाकू बना कर आवाज़ लगाई, " भाई साहब आओ तम्बाकू ले जाओ " वो आदमी करीब हमसे 1०० मीटर दूर खेतो में खड़ा होगा, पापा की आवाज़ को सुनकर उसने अपना हाथ पापा के सामने कर दिया। 

100 मीटर लम्बा हाथ देखकर मैं डर के मारे पापा के पीछे छिप गया, पापा ने वो बनाई हुई तम्बाकू उसी चबूतरे पर रखकर मुझे गोद में लिया और घर की तरफ लौट आये।

 घर पहुंच कर हमने देखा कि दोनों भाई घर पहुंच गए थे, पापा ने ये बात सबको बताई और सबसे शाम के बाद नदी वाले रास्ते पर जाने को मना किया।


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