एक बेकार सी घटना
एक बेकार सी घटना


"तो क्या हुआ,ठीक है फिर...मैं खुदखुशी कर लूंगा,ट्रेन से कूद जाऊगां।" जवान लड़के ने ऐसे कहा जैसे उसके पास और कुछ कहने के लिए न बचा हो।
गाड़ी अपनी रफ्तार से चलती जा रही थी,दृश्य पीछे छूटते जा रहे थे,जैसे कोई बायस्कोप में तस्वीरे दिखा रहा हो। जम्मू से चली ये गाड़ी बनारस तक जाएगी। एक कोने पर वैष्णो देवी तो दूसरे पर महादेव। बीच के एक स्टेशन से मैं भी सवार हो गया था। खिड़की से बाहर दृश्यों को देखते हुए बीते और आने वाले समय के बीच उलझा था। पर सामने की सीट पर बैठा जवान युवा जो लगभग एक मैचो मैन जैसा था,टी टी के सामने आशंकित सा बहस करता मुझे भी वर्तमान में खींच लाया।
शायद जवान लड़के की कोई बात पहले ही उससे हो चुकी थी जो अधूरी थी। और ये अब जैसे किसी सीमा को लांघती दिख रही थी।
"आप ये बताइये कि आपके पास टिकट है ओरिजिनल????,.......फोटो वोटो नही चलेगा। विंडो टिकट पर सीट बुक की गई है,इसलिए हार्ड कॉपी दिखाइए।" टी टी भी जवान था।
जवानी का जोश और नियम कानून की बेबाक दलील देते हुए वो जाने क्यों मुझे थोड़ा अटपटा लगा,जैसे कि खुदख़ुशी की धमकी दे रहा जवान लड़का लग रहा था।
"अरे देखिए ,मेरे पास टिकट का फोटो है,भाई ने बुक किया था,उसी से फोटो मंगवा ली है। आपके ऑनलाइन सिस्टम में भी नाम बोल रहा है,..मेरी मां बीमार है,बहन साथ है। आप बेकार में तंग कर रहे है। आर्मी का जवान हूँ। आई कार्ड देख लीजिए,कोई ऐसे ही थोड़े किसी की सीट पर बैठा हूँ। ,.......देखिए भाई साहब,हम लोग देश के लिए सरहद पर रहते है, बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिलती है,कल की टिकट बुक थी ,पर कल लौटना नही हो पाया तो फोन करके भाई से तत्काल की टिकट बुक करवाई है। टिकट की फोटो खींच के भाई ने भेजी है,ये मान नही रहे।"
अब उसने मुझे और आस पास बैठी सवारियों को भी इस विवाद में खींच लिया है। जैसे वो अपना कोई पक्ष जुटाना चाहता हूँ।
आखिर आदमी अकेला थोड़े लड़ेगा,उसे एक समर्थन तो जुटाना ही पड़ता है। भीड़ और जुटान कहीं न कहीं आपकी बात को सही कहलवा लेने के लिए बहुत उपयोगी हो जाती है।
वो देश की फौज का जवान है,उसके बार बार यह बताने से उसके प्रति जैसे सम्मान की मांग उठाई गई हो, और हो भी क्यों नहीं.....यह तथ्
य बहुत बड़ी बात है,इसने लगभग हम सभी बैठे लोगों को उसके पक्ष में हो जाने का एक बड़ा ऑप्शन दे दिया।
"अरे आप ये देखिए,नियम पढ़िए ,विंडो टिकट की फोटो मान्य ही नही है... ये देखिए आप ...!!"
टी टी पर फौज,सैनिक,देश की सरहद आदि बातों का जैसे कोई असर नहीं था,वो एक ही नियम मानता दिख रहा था ,जो रेलवे में सफर करने वाले सभी यात्रियों पर लागू होता था और जिसे गाहे बगाहे आप कुछ मूल्य देकर तोड़ फांद सकते थे।
टी टी ने अपनी बात को जैसे वकील की तरह जिरह करते सही सिद्ध करने के लिए मेरी तरफ अपना मोबाइल बढ़ा कर नियमावली दिखाने की कोशिश की।
गूगल पर यही सूचना दिख रही थी कि विंडो टिकट पर बुकिंग हो तो टिकट का कागजी रूप ही दिखाना पड़ता है,उसका इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल वर्जन मान्य नही होता।
इसी बात को लेकर काले कोट पेंट से सुसज्जित नई उम्र का टी टी अपनी बात पर ऐसे अड़ गया था जैसे अंगद का पांव।
"आप अपना तय कर लो कि टिकट बनवाना है या आपका रिजर्वेशन रदद् करना है,और टिकट बनवाना ही पड़ेगा,रेलवे रूल्स के हिसाब से तीन सीट का दो हजार रुपये निकालिये या नीचे उतरिये। अगला स्टेशन आने वाला है,टिकट की हार्ड कॉपी नही है तो अगले स्टेशन पर उतर कर अर्जी दीजिये और प्रिंटड टिकट ले के आइये। यही नियम है,ये धमकी वमकी नही चलेगी।अभी पांच मिनट में मैं लौटुगाँ, फैसला कर लो।" टी टी गुस्से में कह कर आगे की सवारियों के टिकट चेक करने चला गया।
मैने देखा कि फौजी के भीतर भी वैसी ही मजबूरी और असुरक्षा थी,जैसी ऐसे समय पर एक साधारण इंसान में होती है। मैं निर्णय नही कर पा रहा था कि कौन और क्या सही है?
क्या मानवीयता और एक फौजी के प्रति सम्मान ही काफी नही था उस टी टी के लिए?
क्या वाकई टी टी नियम कानून का इतना अधिक पालन करने वाला था जैसा कि अक्सर फिल्मों में दिखाए किसी ईमानदार नायक को दिखाया जाता है।
रेल गाड़ी की गति धीमी हो गई थी। मेरा स्टेशन आ गया था। मैं नजरे चुराता फौजी जवान के बारे में सोचता गाड़ी से उतरने के लिए दरवाजे की ओर बढ़ गया।
कुछ देर के लिए ही सही मैं उस पूरी घटना में विचारमग्न रहा और फिर उसे रोजमर्रा का एक दृश्य मानते हुए अपनी दुनिया मे खो गया।