वो भी एक दौर था
वो भी एक दौर था
वक्त बहुत निर्दयी होता है । उसे चीजों को बहुत निर्दयता से मिटाना आता है । रह जाती है तो वो है आपके दिमाग की याददाश्त । जो कई सालों बाद भी किसी बचपन की जगह पर लौटकर उन चीजों को जिंदा कर देती है जो कभी वहां थी,आपके साथ थी । अब ....चीजे,लोग और मुहब्बते शायद वो न रही हो पर आपके दिमाग मे ,यादों में उनके जो चित्र जीवित है उन्हें समय की कोई धारा नही मिटा सकती ।
खेत जो लगभग एक मैदान में बदल चुका था,जहां आस आस पास के लौंडे लपाड़े अब टाइम पास क्रिकेट खेलने के लिए प्रयोग करते थे । वहाँ ले देकर एक पुरानी याद अब भी जीवित थी । किसनु की झोपड़ी और उसके बाई ओर लगा नीम का पेड़ । अब किसनु तो नही रहा, खेतिहर से कब सब्जी फरोश हुआ और कब चल बसा ये मानव के लिए एक दुःस्वप्न जैसा था । आज जब वो लगभग दस साल बाद यहाँ किसी कारण लौटा था तो उसने विशेष तौर पर यहां का चक्कर लगाया । बड़े बड़े मॉल, महानगरीय भीड़,पार्टियों क्लबों की चकाचौंध से इतर कुछ था जो मानव के ह्रदय में कही गहरा बसा हुआ था । वो उसे याद करके भावुक हो जाता । उसे कुछ पात्र जैसे कही से पुकार रहे होते । उसका मन करता कि वो उड़ कर वहां चला जाये या उसके पास कोई जादुई शक्ति हो कि वो जीवन की इस आपाधापी में से बस एक घण्टा निकाल कर वहाँ प्रकट हो जाये । पर कहाँ... जीवन आपको मांजता ही नही बल्कि निचोड़ कूट कर एक नमूना बना देता है और आप ये सोच ही नही पाते कि इस संसार मे आप क्या करने आये थे । तेल निकालने??कोल्हू का बैल बनकर? आप तो इंसान थे,जो इंसानों के बीच रहकर हंसता खेलता, ठहाके लगाता जीना जानता था । पर ये कंक्रीट के जंगल,चिड़ियाघरों या मुर्गीखानो जैसे फ्लैट्स को पा लेने की दौड़,बोझा ढोते जुते हुए पशु सा जीवन कब उस उमंग को ले डूबा ,ये सोचने की फुर्सत ही नहीं ।
पहले समय था,धन नहीं था,अब धन है,समय नही है और न वो लोग बचे जिनके साथ सुखद स्मृतियां जुड़ी थी । न वो हालात बचे जिसमे बहुत थोड़ा था लेकिन जीवन बहुत था,उमंग बहुत थी । अब जैसे सब उपलब्ध होकर भी कुछ नही है । ये नई पीढ़ी तो नही समझ पाएगी,उनके पास स्मृतियां नाम की कोई चीज है ही नहीं । तीस चालीस साल पहले पैदा हुए आदमी के पास बहुत से किस्से है,जिन्हें वो घण्टो सुना सकता है,उन पर रो हँस सकता है,पर आज की पीढ़ी के पास कल सुनाने के लिए कैसे किस्से होगें,ये अपने आप मे एक यक्ष प्रश्न ही तो होगा? कहाँ वो लूडो ,सांप सीढी में लगते ठहाकों से भरी दोपहरें, कहाँ ये वीडियो गेम्ज़ के जानलेवा दौर । कहाँ वो रबड़ी,चाट और पानी मे डूबे आमों से भरी बाल्टी कहाँ ये बर्गर कोल्ड ड्रिंक के बिना किस्सों वाले मायूस से दिन । सुविधायों ने जैसे आनन्द के साधन तो दिए पर आनन्द की जो ललक थी उसका स्वाद छीन लिया ।
खैर नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर मानव ने इर्द गिर्द नजर दौड़ाई,कोई तो अवशेष बचा हो जिससे लिपट कर वो उन खोये हुए पलों की गूंज सुन सके । कोई तो आता जाता व्यक्ति वहाँ से गुजरे जिसे पुकार कर वो पुरानी स्मृतियों की याद ताजा कर सके । किसनु तो कब का मर गया,उसके साथ ही पेड़,खेत,पतंग और उसकी मिट्टी से मिट्टी होकर भी मुस्कुराती आकृति भी मिट गईं । मानव को लगा जैसे वो किसी पुरानी सभ्यता के अवशेष ढूँढ़ रहा हो । जहां की याद उसे रह रह कर टीस से भर देती थी,जहां आकर वो उन यादों को पूरी शिद्दत से जीना चाहता था,वहां से उसका मन अब एक दिन बाद ही उचाट सा हो गया । उसे लगा कि वो किसी बीते जन्म की बातें थी । किसी जगह की प्रासंगिकता किससे होती है?
उस समय के लोगों से जिनके साथ आप जिये,या उन वस्तुओं से जो आज भी छिन्न भिन्न हुई,धूल धूसरित हुई किसी न किसी तरह कुछ बचा पाने की एक आखरी कोशिश कर रही हैं । वो बेजुबान हैं, उनके अकेलेपन को समझना और भी दुरूह है ।
मानव को लगा कि जैसे बदली हुई परस्थितियाँ और लोग उसकी ओर सन्देह से देख रहे हैं । अब कौन पेड़ो से प्यार करता है, उन्हें सहलाता हैं, उनकी फैली टहनियों की ओर ताककर उन्हें पूछता है कि क्या तुम्हें मेरा चेहरा याद है? क्या तुम मुझे पहचानते हो मेरे प्यारे बचपन के मित्र । तुम्हारी छाया का सुख तो अब भी मुझे तुम्हारे उस मोह की याद दिलाता है जिसमे कोई कटी हुई पतंग तुम फांस लेते और मुझे ललचाते कि आओ इसे मेरे कंधे से उतार लो ।
मानव भावुक हो गया उसके दिल मे जैसे जॉन एलिया का वो शेर गूंज उठा
'यारो एक गली थी, जिससे हम निकले ऐसे निकले कि जैसे दम निकले।'