Harish Sharma

Drama Tragedy

4.5  

Harish Sharma

Drama Tragedy

बेढब मानसून

बेढब मानसून

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पानी का स्तर धीरे धीरे बढ़ रहा था। घर की दहलीज जो कि गली से तीन स्टेप के रैंप से गली में उतरने के लिए बनी थी,से केवल एक डेढ़ इंच की दूरी पर पानी था। ये पिछले दो दिन से रुक रुक कर हो रही बारिश का परिणाम था। सीवरेज सिस्टम जैसे हार मान चुका था। अब बिजली भी चली गई। आस पास पानी ही पानी हो तो बिजली क्या पता,क्या हो जाये। 

आस पड़ोस के लोग अपने अपने घर की दहलीज पर बाहर खड़े पानी के उतरने का इन्तजार करते या पूछते-क्यों भाई साहब,क्या लग रहा है? कुछ फर्क पड़ेगा कि नहीं, आज तो सुबह से बिजली भी बंद है। पिछली गली के तीन चार घरों में तो पानी काफी भर गया था उन्हें तो वेल्फेयरव सोसायटी वालों ने कैंप में शिफ्ट करवा दिया है। यहां अपनी गली भी थोड़ा ऊंची है पर अब जैसे जैसे शहर के दरिया में जल स्तर बढ़ रहा है,अपने लिए भी मुश्किल हो जाएगा।

कोई कह रहा था-बिना पानी बिजली के कैसे चल पाएगा काम ? बरसात का पानी वैसे ही हैजा और डायरिया का घर है। 

एक ने कहा-कुदरत भी जाने किन कर्मों का बदला ले रही है, पिछली बार कोविड ने सब तहस नहस कर दिया अब ये बैठे ठाले बाढ़ आ गई। पूरा पहाड़ डूबने पर उतारू है और नदियां भी आउट ऑफ कंट्रोल है,भगवान ही सहारा अब तो।

इसी वार्तालाप में सामने बने घरों के चौबारे में किराए पर रह रहे कुछ लोग चिंतातुर होकर बस आस पास हैरान परेशान देख रहे थे। 

घर के फर्श पर मीनल को पानी की एक तह सी दिखने लगी। बैड के पांव डूबने की दुहाई दे रहे थे जैसे। मीनल की परेशानी वाजिब थी। घर के बाथरूम और वाश बेसिन की अंडर ग्राउंड नालियाँ भरे पेट की तरह जैसे और पानी निगलने से निरस्त थीं। दिन तो जैसे तैसे इस इंतजार में कट गया कि अब पानी निकले कि अब निकले। पर अब बारिश बन्द,हवा बन्द और जुलाई के महीने की उमस। मोबाइल पर कुछ खबरे जिनमे नदी का जल स्तर तथा सहायक नदी नाले सब जैसे बांध तोड़कर सबको अपने मे समेट लेने,बहा लेने पर आमादा थे।

"सब कुछ छोड़ो,कई बार तो कुछ भी बस का नही हैं ये लगता है।" एक यही विचार कौंध रहा था उसके दिमाग मे। वो मीनल के साथ सिर्फ किचन की सलेब्स जैसी घर की हर उस ऊंची चीज पर सामान टिका रहा था जहां पानी उन्हें चहूँ सके। किताबें,कागज,बर्तन,खाने पीने का सामान,हर वो सम्भालने वाली चीज जिसके निचले खाने में सामान टिका था। 

उसने थोड़ा बहुत कैश,जरूरी कागजात और कुछ जरूरी सामान पहले एक प्लास्टिक के लिफाफे में लपेटकर उसे एक और प्लास्टिक के थैले में रखा और फिर उसे बैग में डालकर एक बड़ी अलमारी के ऊपर रख दिया। 

मीनल ने उसे कहा था-क्यो न कोई गाड़ी मंगवाकर जरूरी सामान लदवा दें और किसी सुरक्षित जगह रखवा दें। 

जैसे इस वक्त दिमाग काम नही कर रहा था। उसने मीनल की घबराहट को समझा और आटे के कनस्तर को किचन की स्लैब पर टिका कर मीनल के कंधे पर हाथ रखकर कहाँ-मीनल, यार। अब पता नही कि कोई रोड सेफ होगी या नहीं निकलने के लिए। पड़ोसियों से कुछ घर किसी स्कूल में लगाये राहत कैंप में चले गए हैं। खासकर वो जिनके घर गली की सड़क से बहुत कम ऊंचे थे। फोन पर भी पता किया है,पर आस पास सभी मेन रोडस का बुरा हाल है। यहां से दस किलोमीटर पर चाचा जी के किसी रिश्तेदार का घर नई कालोनी में है। उधर अभी पानी इतना नही चढ़ा है,शायद ऊंचाई होने के कारण। चाचा जी ने उन्हें फोन किया था तो अंकल का फोन भी सुबह आया था कि आ जाओ जल्दी। यहाँ गर्मी और उमस में रहने से यही बेहतर है कि दो दिन उन्ही पर निर्भर हुआ जाए। और उनके बच्चे भी बाहर विदेश में हैं,दोनों अंकल आंटी घर पर अकेले,कोई दिक्कत नही। पानी की टँकी भी लगभग खाली हो गई है। शुक्र है कि अभी महीना पहले माँ और पिता जी गंगा जल वाला जो पांच लीटर वाला केन लाये थे,वही काम आ रहा। दो दिन में सब हालात काबू होने की बात कह तो रहा है ही प्रशासन,सरकार की ओर से आर्मी भी भेज दी गई गई है। '

तीन दिन पहले शायद किसी ने सोचा नही था कि तीन दिन बाद अपने ही घर से बेघर होना पड़ेगा।

सावन का महीना शुरू हो गया था। गर्मी और उमस में ए सी ही एक अंतिम सहारा था जो कम से कम घर मे चैन से जीने दे रहा था। किसी ने कहा था कि जिस चीज की चाहत हो, उस के बारे में सोचना चाहिए। सब गर्मी गर्मी कर रहे थे,जबकि सबको बारिश बारिश करना चाहिए था। अब क्या पता कि आकर्षण का नियम कुछ होता भी है कि दिल को तसल्ली देने के ढकोसले हैं। ऐसे तो हर गरीब पैसा पैसा सोचे तो इस आसान से फार्मूले से गरीबी का नामो निशान मिट जाए। सरकार भी, नेता भी, प्रचार करते विज्ञापन,लेखक, वक्ता सब इसी आकर्षण के फार्मूले की थाह पाकर आनन्द मगन हो जाये। 

खैर सावन में प्रतीक्षा बारिश की थी और कुछ लोगों की तरह वो भी इंस्टाग्राम,फेसबुक,व्हाट्सएप्प पर बारिश से जुड़ी रील्स, गाने शेयर करते हुए आकर्षण के नियम को परख रहा था। दो तीन दिन में होने वाली बारिश के बारे में मौसम विभाग सूचना दे रहा था। वो अपनी पत्नी मीनल के साथ बस जैसे प्रार्थना कर रहा था कि बादल आये तो बरस कर जाए,कही यूंही न गुजर जाए । 

और फिर बारिश आई,देर रात गरज के साथ। अगली सुबह सब कुछ धुला धुला, हरा, चमकदार,हवा में लहराता। दोपहर तक सब कुछ ठीक ठाक सा था। हवा भी ठंडी हो गई थी। फिर जैसे सब कुछ बन्द। हवा एकदम बन्द हो गई। उमस जैसे बढ़ने लगी। लगभग चार बजे शाम हल्की बूंदाबांदी फिर शुरू हुई तो मूसलधार बारिश में बदल गई। 

चाय के साथ पकौड़ों की संगत। मौका था, बारिश में ही ये मौका अच्छा लगता है। टीवी पर लगातार पहाड़ी क्षेत्रों से आती भू स्खलन और बाढ़ आने, बादल फटने की खबरे आने लगी। 

हमारे शहर के साथ लगते शहरों में,गांवों में नहर टूटने की खबरें भी आने लगी। अभी तक अपने शहर सब कुछ नियंत्रण में था। पिता जी फोन पर कहा था- मैदानी इलाका है अपना, यहाँ क्या खतरा।और तुम लोग भी किसी पहाड़ी एरिया से बहुत दूर हो और बाढ़ का यहाँ कोई ज्यादा इतिहास भी नही,बस आज से बीस साल पहले यहां बाढ़ आई थी शहर।वो वाकई खतरनाक थी। वैसे उसके बाद कभी ऐसा नही हुआ।

अगली सुबह जब नींद खुली तो बारिश हो रही थी। गली में एक डेढ़ फुट पानी खड़ा था। सीवरेज धीरे धीरे ही सही पानी खींच रहे थे। शहर में अब नालियाँ तो नहीं थी। शहरी विकास का मॉडल नालियों को ढके और बन्द सीवरेज सिस्टम में बदल चुका था। जो गन्द और बदबू ढकी जा सके वहीं बेहतर। इन्हें मिटाया तो नही जा सकता। ढकना भी सौंदर्यशास्त्र का एक टूल है। 

दोपहर के बाद बारिश की जो इच्छा थी,उससे मन ऊबने लगा। सावन में महादेव रौद्र रूप धारण कर रहे थे। गली का पानी अब कागज की किश्तियों वाली बाल सुलभ लोलुपता को खो चुका था।

शाम होते होते पानी की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी । कही कुछ कम नही हो रहा था। बीच मे हल्की बूंदाबांदी और परेशान कर रही थी। बाहर गली में प्रशासन और सोशल क्लबों ने अनाउंसमेंट करते हुए लोगों को खाने पीने और सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की बात कही।कुछ और पड़ोसी गाड़ियों और मोटर बोट से सुरक्षित स्थानों पर ले जाये जाने लगे। छोटे बच्चे बहुत घबराए हुए थे और उनकी चिंता में माँ बाप सब कुछ छोड़ छाड़ के उन्हें सुरक्षित रखने की जद्दोजहद में शामिल हो गए। 

उसने भी मीनल के साथ एक दो जरूरी बैग ले लिए और अपने जान पहचान वाले के पास पहुचने के लिए तैयार हो गया। पूरी गली पानी मे डूबी थी। अब उसके घर से बाहर आते ही वो दोनों भी कमर तक पानी मे उतर गए ताकि आगे खड़ी ट्रैक्टर ट्राली में बैठ सकें।

घर को सुना छोड़कर जाते हुए वे मुड़ मुड़ कर उसकी ओर ऐसे देख रहे थे, जैसे कोई बच्चा गेट पर खड़े अपने माता पिता को स्कूल जाते इस आश्वासन से देखता है कि बस कुछ देर में वो लौट आएगा।


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