Harish Sharma

Abstract Drama Tragedy

4.5  

Harish Sharma

Abstract Drama Tragedy

वैतरणी

वैतरणी

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'अरे भाई जिंदगी में कोई टाइम टेबल होता है,ये तो हमारी ही बनाई धारणा है। हम पैदा होते है, कितना जियेंगे, क्या बनेगें,क्या करेंगे? ये सब या तो घोषणाएं साबित होती है या एक आशावादी लालीपॉप,जिसके सहारे हम काम चलाते हैं। अब देखलो,बैठे ठाले फोन आ गया। अच्छा भला तो था रमेश। सब भाई बहनों से छोटा।

न कभी सिगरेट पी,न शराब। और सुबह सुबह बाथरूम में ही साइलेंट अटैक। आजकल सब कुछ कितना साइलेंटली हो रहा है। खाते से पैसे कट जाते है,साइबर क्राइम चुपचाप हो जाता है,रातो रात नए कानून बन जाते हैं,घर को लौटता आदमी लूट जाता है,पड़ोसी का लड़का आई ए एस इक्जाम क्लियर कर लेता है। घूमते हुए आदमी को घर मे चलान कट जाने का मैसेज आ जाता है और बहुत से लोग चुपचाप आत्हत्या कर लेते है या जैसे जिंदगी चल रही है, चुपचाप उसे चलने देते हैं। हम तो निमित्त मात्र ही है न। ये तो सदियों पहले भगवान कृष्ण कह गए थे अर्जुन से। रमेश को थोड़े ही पता था कि अकेला लड़का विदेश चला जायेगा तो उसकी देह को अग्नि देने तक में ऐसी मुश्किल आन खड़ी होगी।

पर देखो,मुश्किल को हल करने के लिए भी अब कितनी परंपराएं टूट जाती हैं। टूटेगी ही।

जब घर बार छोड़ दिया,देश छोड़ दिया तो कहां तक निभाओगे सँस्कृति और संस्कार। सुबह कह रहे थे कि रमेश का बेटा लौटेगा तब संस्कार कर देंगे तो बॉडी को फ्रीजर में ही रख दिया जाए। अब महानगर में घर,सभी कामकाजी। रिश्तेदार तो आ गए खबर सुनकर। सब दौड़ते है एकबारगी तो ,चाहे परिवार से एक जन ही सही। महानगरीय घरों में जगह हमेशा कम होती है। फिर चाहे वो दिल हो,दिमाग हो या नौकरी करने के अवसर। यहां लोग और समस्याएं एडजस्ट की जाती है या उन्हें झेला जाता है। और शाम को अब खबर ये है कि रमेश की अंतिम क्रिया सुबह ही कर दी जाएगी,लड़के को छुट्टी मिलने में दिक्कत है। अभी पिछले साल जब मेहता जी बाहर अपने पोता पोती के पास घूमने भेज दिए गए।

मतलब जाना नही चाहते थे पर उनके बेटे ने भेज दिया। स्टेटस मैटर करता है भाई आजकल। तो खूब फोटो खीचके भेजते रहे कि अब इस बीच पर है, अभी इस ब्रिज पर है, पोता पोती कभी अपने दादा की क्लब से फोटो भेज रहे तो कभी समुद्र से। और मेहता जी अचानक साइलेंट अटैक से वहीं विदेशी भूमि पर प्राण त्याग दिए। बड़ी असमंजस पैदा हुई। डैड बाड़ी भेजना कोई आसान काम थोड़े तो वही जान पहचान में कुछ सेटिंग हुई और संस्कार विदेशी धरती पर कर दिया। इधर रस्म पगड़ी हो गई। हमारे शहर में एक बार त्रिशंकु की कथा हुई थी जो न स्वर्ग जा सका न पृथ्वी पर लौट सका। अधर मे लटक गया। मुझे लगता है,यही हालत हमारी भी जीते जी हो गई है। पूरी जिंदगी अधर में लटके ही बीत जाती है। रमेश का अंतिम संस्कार भी ऐसे ही हो जाएगा। वीडियो बना कर लड़के को भेज दी जाएगी,वो वीडियो में शोक प्रकट कर लेगा। फिर जब कभी आया गया तो बाकी क्रियाएं हो जाएगी। कहते है गति करवाने की क्रिया जरूरी होती है,वरना आदमी वैतरणी में ही अटक जाता है। पुराण तो यही मानते है। अभी मेहता जी एक बार कह रहे थे कि वैतरणी तो ये साक्षात जीवन ही है, बस समझने की बात है,मरकर किसने क्या देखा,कौन जानता है।

तो भैया अब जैसा जिसको सही लगे, बनाता रहे प्रोग्राम। जिंदगी का अपना ही प्रोग्राम है, वो आपसे पूछकर थोड़ा कुछ तय करती है।"


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